सावन में शिवत्व है सावन में प्रकृति की सुगंध है अम्बुआ की डार पर झूले सजते हैं तो मान - मनुहार भी होती है कृष्ण राधा का सात्विक प्रेम सावन को आध्यत्मिक रंग में रंग ता है ! `राधे झूलन पधारो घिर आयी बदरिया` कहकर कृष्ण राधा को मनाते हैं ! सावन मे प्रेम तत्व का लाल रंग दमकता है जो सृष्टि में सृजन का आधार है ! यही लालरंग गौरी का सिन्दूर है जिससे सावन सजता है बिछुओ की रुनझुन पायल की छम छम गीत गाते है आनंद के मीठे मल्हार के !आम के बागो में झूले सावन की शोभा बढ़ाते हैं तो कजरी चंग की शोभा बनती है महेन्दी की महक चूड़ियों खनखनाहट सात्विक श्रृंगार का प्रतीक बनती हैं मैके की याद में सावन के झूले कभी कभी धीमे पड़ते है तो कभी बहिन राखी की उमंगमें नृत्य करती है मैके की सुगंध से सावन सजता है ! सकारत्मक ऊर्जा देकर सबको प्रकृति की हरीतिमा से मिलाता है
vaikhri
गुरुवार, 1 अगस्त 2019
बुधवार, 4 जुलाई 2018
bhavna
भावनाएँ फूलो की पंखुड़ियों की तरह कोमल होती हैं
ममता - वात्सल्य इनसे ही पोषित होते हैं !
भावनाएँ रिश्तो को राग सूत्र में बांधती हैं !
राखी के बंधन में है भावनाओ से रससिक्त
रेशम की डोर ! भाईदूज के रोली टीके में है बहिन की भावना
जो मायके के द्वार को सदा अपने लिए खुला पातीहै यह भावना
ही है जो अपरिचित दिलो को सदा के लिए स्नेहसिक्त गठजोड़ में बांध ती है
पर्व; मेले ; त्यौहार सब भावनाओ से जुड़े है ! नीड़ निर्माण भी भावनाओ से जुड़ा है
पायल को वंशी से जोड़ ने वाली भावना ही तो है यह भावना ही थी जिसके कारण
मीरां जहर का प्याला पी गयी और वो तो अमृत बनगया भावनाओ से राग
राग से सृष्टि जुड़ी है भावना के बिना तो सब शुष्क मरुस्थल है बंद खिड़की
बंद दरवाजे बस यही जीवन की परिभाषा रह गयी है
ममता - वात्सल्य इनसे ही पोषित होते हैं !
भावनाएँ रिश्तो को राग सूत्र में बांधती हैं !
राखी के बंधन में है भावनाओ से रससिक्त
रेशम की डोर ! भाईदूज के रोली टीके में है बहिन की भावना
जो मायके के द्वार को सदा अपने लिए खुला पातीहै यह भावना
ही है जो अपरिचित दिलो को सदा के लिए स्नेहसिक्त गठजोड़ में बांध ती है
पर्व; मेले ; त्यौहार सब भावनाओ से जुड़े है ! नीड़ निर्माण भी भावनाओ से जुड़ा है
पायल को वंशी से जोड़ ने वाली भावना ही तो है यह भावना ही थी जिसके कारण
मीरां जहर का प्याला पी गयी और वो तो अमृत बनगया भावनाओ से राग
राग से सृष्टि जुड़ी है भावना के बिना तो सब शुष्क मरुस्थल है बंद खिड़की
बंद दरवाजे बस यही जीवन की परिभाषा रह गयी है
बुधवार, 2 अगस्त 2017
मंगलवार, 1 अगस्त 2017
गुरुवार, 18 मई 2017
हमारा व्यक्तित्व कैसे बनता है क्या आपका पद आपके व्यक्तित्व को बनाता है क्या महेंगे कपड़े या आभूषण बंगला कार अन्य भौतिक सुविधाएँ आपके व्यक्तित्व का निर्माण करती है ! एक शब्द में कलम लिखेगी `नहीं`! आपके व्यक्तित्व को बनाता है आपका सौम्य व्यवहार अपने पद के प्रति समर्पण ! कोई पद कोई कार्य छोटा बड़ा नही होता अपनी कार्य शैली से छोटे पद को भी rain bow का फ्रेम दे सकते है ! इस लेखनी केसंपर्क ऐसे कई व्यक्तित्व आये है जो बहुत बड़े पद पर रहकर भी बहुत विनीत और कर्त्तव्य- निष्ठ है ! कई ऐसे भी है जो अपनी कार्य शैली से नही अपितु बाह्य तड़क भड़क से प्रभावित करते है उन्हें अपनी भाषा में बात करने में शर्म महसूस होती है ! अँगरेजी बोलेंगे चाहे ग़लत हो और लोग उनसे प्रभावित भी होते है ! हम अपने भावों विचारों को अपनी भाषा में सशक्त और प्रभाव शाली ढंग से व्यक्त कर सकते है ! भौतिक सुविधाएँ हमारा साधन है साध्य नही है साध्य तो हमारे पद की गरिमा और उससे जुड़े कर्तव्य है पद के अनुरूप ही वेश- भूषा का चयन हो इसी से व्यक्तित्व का बाह्य स्वरूप निखरता है व्यक्तित्त्व बनता है आत्म -विस्तार से! अब आत्म विस्तार कैसे हो यह अलग प्रश्न है !कई लोग समान व्यवसाय के ही लोगो से ही मिलना पसंद करते है उन्होंने अपने चारों तरफ़ एक होरा बनाया होता है जिसे अहम् ego कहा जा सकता है उससे बाहर निकलने में उन्हें हीनता महसूस करते है यह उनके संकीर्ण व्यक्तित्व का परिचायक है "समय नही मिलता है" यह एक कारण उनके पास होता है जोलोग अहम् को तोड़कर सामाजिक गतिशीलता में रूचि रखते है उनका ही आत्म विस्तार होता है वो समाज में अधिक पसंद किए जाते है ! अच्छा व्यक्तित्व मनोदैहिक गुणों का संगठित रुप है इसमे अनेक पक्ष है जिसका अध्ययन मनोविज्ञान करता है ! यहां में प्रसादजी की कामायनी
की कुछ पंक्तियां उद्द्धृत करना चाहूँगी-"सब भेद भाव भुलवा कर दु;ख-सुख को दृश्य बनाता ;
मानव कह रे !"यह मै हूँ "यह विश्व नीड़ बन जाता |
की कुछ पंक्तियां उद्द्धृत करना चाहूँगी-"सब भेद भाव भुलवा कर दु;ख-सुख को दृश्य बनाता ;
मानव कह रे !"यह मै हूँ "यह विश्व नीड़ बन जाता |
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