शुक्रवार, 14 अगस्त 2015

ajaadi

आजादी कायम रहती है-देश 68वीं वर्षगाँठ मनाने जा रहा है लेकिन इसके साथ अनेक प्रश्न भी है -1-स्वतन्त्रता क्या है? 2-हमने किस प्रकार की स्वतन्त्रता प्राप्त की है? 3 -जन सामान्य की अपेक्षाओं को कितना महत्व दिया जाता है आदि प्रश्न | जो परिस्थिति दिखायी देती है उसके अनुसार यदि आकलन किया जाए तो यह कहा जा सकता है कि हमारी राजनैतिक स्वतंत्रता तो अब प्रौढ़ा हो गयी है लेकिन मन के किसी कोने से आवाज़ आती है कि हम कुछ खो रहे है | स्वतन्त्रता का अर्थ उच्छृंखलता या बंधन-हीनता या मुक्त्तता नही है |यह तो 'स्व' "तंत्र" है इसमें मनसा वाचा कर्मणा का अनुशासन होता है जो राजसत्ता से आरम्भ होकर जन-जन में जाता है |इस तंत्र में अपरिमित वर्ग के कल्याण की भावना होती है ऊपर से नीचे की ओर यह भाव धारा बहती है | इस तंत्र की व्यवस्था के लिए जनता इस आशा के साथ अपने प्रतिनिधि चुनती है कि राज्य की नीति का आधार हमारे सांस्कृतिक मूल्य हों |जीवन जीने के नैतिक मापदंड जब राज्य की नीति का आधार हो तभी विकास की गंगा बहेगी | 68 वर्ष के बाद भी विकास की गंगा की गति धीमी है यह गंगा समाज के अंतिम सोपान तक पहुँचनी चाहिए लेकिन इस गंगा में अवगाहन तो ऊपर वाले ही करते है और सारा वैभव आत्मकेंद्रित कर लेते है | नाम जनता का लेते है लेकिन अहम् तुष्टि करने में लगे रहते है जब संसद में मर्यादा भंग होती है तो लोकतंत्र आहत होता है | स्वतन्त्रता की परिभाषा बदल जाती है शब्दों की मर्यादा भंग होती है संसदीय परम्पराओ का गला घोटा जाता है स्वतंत्रता की ऐसी परिभाषा किस पुस्तक में है पता नही | किसी भी देश की आजादी तभी कायम रहती है जब उसका अभिषेक श्रम और नीति से हो |कवि नीरज ने लिखा है-आजादी कायम रहती है मेहनत से औ" काम से :और चली जाती है घर से वह गफलत आराम से;
 खून पसीने में बदले वह उसका पहरेदार है : अधिक मुनाफा खाए जो वह काफिर है गद्दार है ||