बुधवार, 29 अक्तूबर 2014

विचार विश्लेषण - सच्चा वीर कौन ? जो सात्विक शक्ति का प्रयोग इसलिये करते है कि मानवता की अखंड मूर्ति खण्डित ना हो |लोकमंगल का धरातल  स्थिर रहे | सच्चे वीर  धीर वीर गम्भीर  होते  है  सत्व गुण सागर में उनका अन्त;करण निरंतर स्नान करता है |वे लोक कल्याण के पथ पर जब चलते  है तो प्रकृति उनकी सहचरी हो जाती  है| बादल उनको छाया देते है | चाँद तारे उनके सत्व गुण के गवाह बनते है वृक्ष उनके लिए पंखा झलते है फूल उनका पथ सजाते है सुगन्धित करते है |सच्चे वीर किसी भी कारखाने में तैयार  नही होते वे तो स्वत: भीतर ही भीतर पोषित होते है वे बात बात पर उत्तेजित डराते धमकाते  नही है वे एक बहुत बडे लक्ष्य के लिए शक्ति को सहज कर रखते है | वीर आत्मचिंतन करते है समय के अनुसार कभी पीछे हटना है  तो भी ठीक | राम   ने युद्ध करने से पहले  रावण को समझाने के लिए बहुत प्रयास किए किन्तु रावण जब  नही माना तो मूल्यों की रक्षा के लिए युद्ध किया  कृष्ण भी परिस्थिति वश युद्ध क्षेत्र  छोड़ने के कारण रणछोड़ कह्लाये कृष्ण शक्ति का अपव्यय नही करना चाहते थे |  उनको अपनी  शक्ति धर्म की रक्षा के लिए बचानी थी | सच्चे वीर भीतर  ही भीतर  ही   मार्च करते है  समय आने पर बलिदान करने में पीछे  नहीं रहते है | आज की शाम वीरों के नाम

रविवार, 5 अक्तूबर 2014

रावण अभी मरा नही --हर वर्ष विजयदशमी मानते है अधर्म पर धर्म की विजय का पर्व है यह सत् की असत्त् पर विजय का पर्व  है हर वर्ष रावण मारते है लेकिन  पता नही क्यो ऐसा लगता है कि रावण  मरा ही नही  रावण मरेगा  कैसे वह तो हमारे अन्दर छिप कर बैठा है जो मारता है वो किसी कलाकार की कृति है जिसमे महिनों श्रम करके रंग भरें है जब रावण जलता है तो उसे दुःख होना चाहिए लेकिन वह्  खुश होता है क्योकि उसकी कलाकृति  की रावण जलने से पहले खूब  प्रशंसा होती है |अब जरा विचार करे बुराई एक प्रतीक को बनाने में महीनों का श्रम लगा पैसा लगा | हजारों लोगों को साक्षी बनाकर उसे जलाया जाता है खूब ख़ुशियाँ मनाते है कि आज बुराइयों के प्रतीक रावण को जला दिया लेकिन आस पास देखा तो रावण तो हँस रहा है वो तो अभी जिंदा है  उसके सबसे बड़ा सिर तो अहंकार ही है फिर लोभ लालच मद मोह माया ईर्ष्या द्वेश वासना आसक्ति यह सब रावण के दस सिर है जब यह  सब खत्म हो तब समझो हमने रावण को जीता | राम ने जिस रावण को मारा था वह  परम् ज्ञानी और  राजनीति का प्रकांड पंडित था | तिनके ओट  में सीताजी बात करती थी | उसका  साहस नही था कि वो सीता जी के साथ कोई अमर्यादित बात करे | मात्र कुदृष्टि रखने पर  ही वह् पाप का भागी बना शिव भक्त होने पर भी उसमें अहंकार था |उसने एक समुदाय को असभ्य कह कर  राज्य  से निष्कसित कर दिया था |रावण ने अपने भाई विभीषण को लत मार कर सभा से बाहर कर दिया था  रावण निरंकुश राजतंत्र का प्रतीक था  इसीलिये  राम ने उसका वध किया |आज रावण कितने रूपों में है सबसे बुरा रुप तो वासना का है जो डेढ़ वर्ष की बच्ची  को भी हवस  का शिकार बनाता है | एक बुरा रुप वो है जो देश रुपी वृक्ष की डालें  काट  कर अपना घर भरता है गरीब की झोपड़ी  में  दिया भी नहीं जलता  भव्य स्वर्ण  भवनों में रोशनी का कोई आर पार नही  ऐश्वर्य तो उनका दास है ये गरीबों का हक् छीन कर  ऐश करना उनका अधिकार है इन रावणों  को कौन मरेगा ? सोचो| देश को आज ऐसे रक्षक राम की जरूरत है सबको राम बनने की जरूरत है|    आशा भटनागर । 
                                                             

गुरुवार, 2 अक्तूबर 2014

नमामि भक्त वत्सलम्--- भारतीय वांगमय[वांड्मय} की शोभा है राम कथा और उसके कौस्तुभ मणि  है श्री राम || वैसे तो रामकथा का  प्रथम उन्मेष वाल्मीकि रामायण से है उसके बाद से राम कथा  की सरिता अखंड रूप से प्रवाहित रही| कालिदास ने रघुवंश में भी राम कथा  है | उत्तर रामचरित भवभूति  का प्रसिद्ध नाटक है  लेकिन तुलसी ने रामचरित मानस   में रामकथा की ऐसी भागीरथी प्रवाहित  की कि जितना स्नान करो उतना कम लगता है केशव की रामचंद्रिका और फिर गुप्त जी का साकेत |साकेत में उर्मिला केन्द्र में है किन्तु साकेत में राम का जो स्वरुप प्रस्तुत किया है वह आज  सब  के लिए प्रेरक है |  राम के माध्यम से पर्यावरण के प्रति सजगता  : कर्म निष्ठ्ता : आत्म विश्वास  को   है समाज में सबका मर्यादित व्यवहार हीअपेक्षित है राम ने स्वयम् कहा कि में आर्यों के आदर्श  को बताने आया हूँ  | जो शापित है  भय ग्रस्त  है राम उनके विश्वास है | राम का मनुष्यत्व धारण करने का  उद्द्येश्य  आत्म सुख नही है  अपितु दूसरो का दुःख दूर् करना ही प्रमुख  है  वह करुणानिधि है साकेत में राम नर में ईश्वरता का आभास कराने का प्रयास कराते है |  
         राम कहते है कि भव में नव वैभव व्याप्त कराने  आया 
                          नर को ईश्वरता प्राप्त करने आया 
                         संदेश यहां मै नही स्वर्ग का  लाया 
                         इस भूतल को ही स्वर्ग बनाने आया |
जिनको रावण राज्य में असभ्य वानर कह कर अलग कर दिया था | राम  ने उन्हे गले लगाया और कहा "बहु जन वन में है बने ऋक्ष-वानर से में दूँगा अब आर्यत्व उन्हें निज़ कर से"राम ने   इन लोगों  में शिक्षा और संस्कृति के विकास की बात कही|आज की राजनीति के लिएराम का चरित्र प्रेरणा है || सामाजिक व्यवस्था  के लिए प्रकाश  की किरण है  राम इसलिए भगवान है क्योकि उन्होंने सदेव अपरिमित वर्ग के कल्याणका चिंतन किया इसीलिये राम ईश्वर है राम धर्म स्वरूप है राम का विरोध धर्म का  विरोध  है धर्म का विरोध है राम का  विरोध है  राम वो विराट  चेतना है जो सब में  रमण  करती  है अथवा सब जिसमें रमण  करते है