जब से स्मॄति ईरानी को मानवीय संसाधन विकास मंत्रालय दिया है | तब से उनकी योग्यता प्रश्नो के घेरे में है शिक्षा का आयाम बहुत विस्तृत है शिक्षा की परिभाषा को लेकर अनेक विद्वानों ने अपने मत दिए है| शिक्षा अपने विस्तृत आयाम में अज्ञान से ज्ञान की ओर सतत चलने वाली प्रक्रिया है यह जीवन पर्यन्त चलती है एम ए पीएच डी करके भी लोग ज्ञान की सतह तक नही पहुँच पाते |कबीर ने तो ढाई आखर (प्रेम) में सारी शिक्षा समाहित कर दी थी | उन्होँने तो कोई औपचारिक शिक्षा नही ली थी फिर भी उनकी विचार धारा एक दर्शन बन गई साहित्य बन गई क्रांति की लहर बन गई | हिन्दी में ऐसे अनेक साहित्यकार हुए है जिनके पास औपचारिक शिक्षा कम या नही के बराबर थी |उनके पास जीवन दृष्टि थी जन मानस को स्पर्श करने की क्षमता थी शिक्षा मंत्री केपास कित्तनी डिग्री है यह महत्त्व की बात नही है मह्त्त्व इस बात का है कि समाज के एक एक व्यक्ति तक शिक्षा का प्रकाश पहुँचे | अभी तक हम ऐसे शिक्षा को भोग रहे है जो युवाओं को पथ भ्रमित कर रही है शिक्षित बेरोजगार युवक आज की शिक्षा की देन है कई आयोग बने समितिया बनी शिक्षा में सुधार हुआ भी लेकिन शिक्षा उच्च वर्ग की होकर रह गई तकनीकी क्रांति आयी लेकिन प्रतिभा पलायन होने लगा | हमारी प्रतिभाओं का उपयोग विदेशों में हो रहा है अभी तक कितने शिक्षाविद आए कितने शिक्षा मंत्री आए -गये यह पुस्तकों में लिखे अक्षर कहते है कि उन्होंने शिक्षा का गिरता स्तर कितना उठाया है यह किसी झुग्गी में रहने वाले से पूछो | शिक्षा मंत्री के पास कितनी डिग्ग्री है इससे शिक्षा का स्तर नही सुधरेगा स्तर में सुधार सोच से होगा शिक्षा का माध्यम शिक्षा का भारतीयकरण शिक्षा का रोजगार - उन्मुख होना यह सब नयी सोच -चिंतन से होगा स्मॄति जी से ऐसी आशा है ----आशा भटनागर श्री गंगानगर
गुरुवार, 29 मई 2014
shiksha
बुधवार, 21 मई 2014
sansad
कल संसद भवन में श्री नरेंद्र मोदी जी को भाजपा और एनडीए के द्वारा बहुमत दल का नेता चुने जाने के सन्दर्भ में आयोजित कार्यक्रम पूर्ण अनुशासित सारगर्भित और भावुकता पूर्ण था | जनतंत्र के मन्दिर संसद को जिस तरह नमन किया वो मंगल कारी भविष्य की ओर संकेत है | संसदजन -भावनाओंं का दर्पण है इसको नमन करना अत्यन्त शुभ है संसद ही से विकास के सारे संकल्प पूरे होते है संसद से ही सच्ची समता के द्वार खुलते है संसद के प्रांगण में ही जन की क्षमता के दीप प्रज्वलित किए जा सकते है यहीं से मानव -ममता गंगा बह सकती है भारत माता का मन्दिर तो यही है जहां सबको पवित्र भावना से जाना चाहिए
रविवार, 18 मई 2014
vichar push
विचार पुष्प - राजनैतिक दल जनतंत्र के प्रहरी होते है | जन भावनाओं के दर्पण होते है | पिछले वर्षो में यह् देखा जां रहा था कि जैसे कुछ राजनीतिज्ञ जन भावनाओं के साथ खेल रहे है | जनता जैसे उनकी मुठ्ठी में हो | जन मानस बार बार पूछ रहा था कि स्वराज्य कहां है | उसके चारों तरफ जातिवाद का एक बड़ा परदा खीँच गया था लेकिन इस बार बौद्धिक वर्ग कोयल की तरह अमराइयों में नही बैठा अपितु वह् स्वयम् भी सचेत हुआ और अन्यों को भी सचेत किया | इस वर्ग ने दो बार लोकतंत्र को घायल होते देखा था | इसी वर्ग ने जन मानस समस्याओं की आग में झुलसते देखा | मीडिया जो जनतंत्र का सशक्त प्रहरी है उसने भी अहम् भूमिका निभाई | समस्याओं से जनता का ध्यान हटाने के लिए व्यक्तिगत आक्षेप बहुत हुए किन्तु इन सबसे ऊपर उठ कर जनमत ने अपने दयित्व का निर्वाह किया और राजनीति के आकाश में अद्भुत नक्षत्र का नजारा दिखा | देश एक अच्छे परिवर्तन की ओर बढेगा | इस परिवर्तन की कई दिनों से प्रतीक्षा थी
विचार पुष्प - राजनैतिक दल जनतंत्र के प्रहरी होते है | जन भावनाओं के दर्पण होते है | पिछले वर्षो में यह् देखा जां रहा था कि जैसे कुछ राजनीतिज्ञ जन भावनाओं के साथ खेल रहे है | जनता जैसे उनकी मुठ्ठी में हो | जन मानस बार बार पूछ रहा था कि स्वराज्य कहां है | उसके चारों तरफ जातिवाद का एक बड़ा परदा खीँच गया था लेकिन इस बार बौद्धिक वर्ग कोयल की तरह अमराइयों में नही बैठा अपितु वह् स्वयम् भी सचेत हुआ और अन्यों को भी सचेत किया | इस वर्ग ने दो बार लोकतंत्र को घायल होते देखा था | इसी वर्ग ने जन मानस समस्याओं की आग में झुलसते देखा | मीडिया जो जनतंत्र का सशक्त प्रहरी है उसने भी अहम् भूमिका निभाई | समस्याओं से जनता का ध्यान हटाने के लिए व्यक्तिगत आक्षेप बहुत हुए किन्तु इन सबसे ऊपर उठ कर जनमत ने अपने दयित्व का निर्वाह किया और राजनीति के आकाश में अद्भुत नक्षत्र का नजारा दिखा | देश एक अच्छे परिवर्तन की ओर बढेगा | इस परिवर्तन की कई दिनों से प्रतीक्षा थी
सोमवार, 12 मई 2014
niti ke deep
भारत माता की आकांक्षा है जो भी भारत के ताज को संभालता है उसे मेरे जन -मानस को यह विश्वास दिलाना होगा कि इस देश से भ्रष्टाचार खत्म होगा प्रत्येक व्यक्ति की मूल आवश्यकताएँ पूरी होगी | देश का मुखिया मुख के समान होना चाहिए जिस प्रकार मुख भोजन ग्रहण करता है और उससे सारे अंगो का पोषण करता है | वे सा ही देश का मुखिया को करना चाहिये | अब समय नीति न्याय के दीपो से दीपावली मानना चाहता है
रविवार, 11 मई 2014
vaarta
रबीश कुमार जी की वार्ता का विश्लेषण > दूरदर्शन एन डी टीवी पर आँचलिक उपन्यासकार (साहित्य कार) काशीनाथजी ने कहा है कि दाराशिकोह के गुरु रामानंद थे जबकि ऐसा नही है ध्यातव्य है कि दाराशिकोह के गुरु पंडितराज जग्गनाथ थे | रामानंद और दाराशिकोह के समय में तीनसौ वर्षो का अन्तर है रामानंद तो कबीर के गुरु थे
mamatv
ममत्व> माँ अपने नन्हे से शिशु को जब अपनी गोद में लेकर सुलाती है तो ममत्व लोरी के रुप में प्रकट होता है अपने लाड़ले को सुलाने के लिए वह् पारियों को बुलाती है | लोरी गाओ - लोरी गाओ
फूल दोल में उसे झुलाओ
निदिया की प्रिय पारियोंआओ
मुन्ना का मुख चूम सुलाओ
माता जसोदा जब कृष्ण को पालने में झूलाते हुये लोरी गाती है हूलराती है दुलराती है उसके लाल को जो कुछ अच्छा लगता है वो सब करती है |पालनेे में ही माता बच्चे को वो सब संस्कार दे देती है जो बालक को परिष्कृत करते है
बालक की मूल प्रवृत्तियों का परिशोधन माँ के ममत्व से ही होता है | आज की भाग दौड़ में ममत्व घायल हो रहा है | माँ बनना ईश्वर का वरदान है |नारी की पूर्णता है| नारी अपने ममत्व के आँचल से ही संतति का रक्षण और परिशोधन कर सकती है | माँ पालने में बालक को वो संस्कार दे सकती है जिसे आज राष्ट्र माँग रहा है | माँ का ममत्व उसे सिखा सकता है "इला न देणी आपणी हालरिये हुलराय पूत सिखावै पालने मरण बड़ाई माय |
फूल दोल में उसे झुलाओ
निदिया की प्रिय पारियोंआओ
मुन्ना का मुख चूम सुलाओ
माता जसोदा जब कृष्ण को पालने में झूलाते हुये लोरी गाती है हूलराती है दुलराती है उसके लाल को जो कुछ अच्छा लगता है वो सब करती है |पालनेे में ही माता बच्चे को वो सब संस्कार दे देती है जो बालक को परिष्कृत करते है
बालक की मूल प्रवृत्तियों का परिशोधन माँ के ममत्व से ही होता है | आज की भाग दौड़ में ममत्व घायल हो रहा है | माँ बनना ईश्वर का वरदान है |नारी की पूर्णता है| नारी अपने ममत्व के आँचल से ही संतति का रक्षण और परिशोधन कर सकती है | माँ पालने में बालक को वो संस्कार दे सकती है जिसे आज राष्ट्र माँग रहा है | माँ का ममत्व उसे सिखा सकता है "इला न देणी आपणी हालरिये हुलराय पूत सिखावै पालने मरण बड़ाई माय |
शनिवार, 10 मई 2014
vandan
मातृ -शक्ति को नमन -- हे सर्वं मंगले !तुम महती
सबका दु;खअपने पर सहती
कल्याणमयी वाणी कहती
तुम क्षमा निलय में हो रहती
भारत मे नारी मातृ -शक्ति के रुप में सदैव स्तुत्य रही है |उसने हमेशा अद्भुत क्षमताओं का परिचय दिया है | वात्सल्य और ममता की साकार मूर्त्ति नारी सृष्टि के अँकुर को नौ माह गर्भ में रखती है और इस अँकुर के प्रस्फुटन की पीड़ा को होठों में दबाकर उसे जन्म देती है | उसका पालन पोषण करती है | अपने बच्चों में समस्त संस्कारों को अभिसिंचित करने वाली माँ बालक की प्रथम शिक्षिका होती है |अपनी संतान का कल्याण चाहने वाली कल्याणी है | माँ के रुप में नारी का त्याग भी शब्दातीत है | पन्ना धाय के त्याग की गौरव गाथा आज भी इतिहास में अमर है | उदयसिह को अपने पुत्र की तरह ही पन्ना धाय ने पाला था जब मेवाड़ के इस कुलदीपक के प्राण संकट में थे तो इस वीर माता ने अपने पुत्र चन्दन को मृत्यु को समर्पित कर दिया |मेंवाड़ के कुलदीपक को बचाने के लिए दीपक का दान कर दिया | यह अद्भुत दीपदान था |जन्म देने वाली माँ से पालने वाली माँ का मह्रत्त्ब कम नही होता |कृष्ण को जन्म देवकी ने दिया था पाला माँ जसोदा ने था | कृष्ण के लिये दोनों परम आदरणीय थी | मातृ दिवस पर ममत्व की प्रति मूर्त्ति का वंदन
सबका दु;खअपने पर सहती
कल्याणमयी वाणी कहती
तुम क्षमा निलय में हो रहती
भारत मे नारी मातृ -शक्ति के रुप में सदैव स्तुत्य रही है |उसने हमेशा अद्भुत क्षमताओं का परिचय दिया है | वात्सल्य और ममता की साकार मूर्त्ति नारी सृष्टि के अँकुर को नौ माह गर्भ में रखती है और इस अँकुर के प्रस्फुटन की पीड़ा को होठों में दबाकर उसे जन्म देती है | उसका पालन पोषण करती है | अपने बच्चों में समस्त संस्कारों को अभिसिंचित करने वाली माँ बालक की प्रथम शिक्षिका होती है |अपनी संतान का कल्याण चाहने वाली कल्याणी है | माँ के रुप में नारी का त्याग भी शब्दातीत है | पन्ना धाय के त्याग की गौरव गाथा आज भी इतिहास में अमर है | उदयसिह को अपने पुत्र की तरह ही पन्ना धाय ने पाला था जब मेवाड़ के इस कुलदीपक के प्राण संकट में थे तो इस वीर माता ने अपने पुत्र चन्दन को मृत्यु को समर्पित कर दिया |मेंवाड़ के कुलदीपक को बचाने के लिए दीपक का दान कर दिया | यह अद्भुत दीपदान था |जन्म देने वाली माँ से पालने वाली माँ का मह्रत्त्ब कम नही होता |कृष्ण को जन्म देवकी ने दिया था पाला माँ जसोदा ने था | कृष्ण के लिये दोनों परम आदरणीय थी | मातृ दिवस पर ममत्व की प्रति मूर्त्ति का वंदन
बुधवार, 7 मई 2014
dard
भारत माता का दर्द -मेरे देश की यह कैसी राजनीति है मूल्यहीनता का नग्न नृत्य देख् रही हूँ| भ्रष्टाचार ताली बजा कर हँस रहा है| मेरे भोले भाले जन मानस को ठगा जा रहा है| नीति को जब रोका जायेगा तो क्रांति संभव है जब अधर्म धर्म पर हावी होगा तो महा भारत को कैसे रोका जा सकता है |राजनीति की चौसर पर जब नीति के लज्जा वसन उतारे जायेगे तो एक बार फिर करुक्षेत्र क़े मैदान में कृष्ण की गीता क़े स्वर गूँजेगे अर्जुन के गांडीव की टॅकार गूँजेगी और भीम की गदा घूमेगी | यदि सत्य के अभिमन्यु को असत्य के चक्रव्यूह में फँसा कर मारा जायेगा तो फिर महाभारत के पन्ने खुलेगे | में भारत माता अपनी संतानों का यह रुख देख् कर परेशान हूँ
रविवार, 4 मई 2014
prakrtik sampda
भारत देश है मेरा >भाग3-- धरती सबकी माँ > ------>>भारत में अनन्त प्राकृतिक सम्पदा है उसका उचित दोहन अनिवार्य है तभी सामाजिक न्याय स्थापित हो सकता है | दोहन सही हो फिर वितरण सही हो | मात्र शक्तिशाली हो कर स्वयं के लिए संग्रहण करना उचित नही है | इस प्रकार की नीति क्रांति लाती है | कवि दिनकर जी ने लिखा है> है सबको मृति का पोषक रस पीने का - जब तक समाज की अन्तिम सीढ़ी पर स्थित व्यक्ति को लाभांश न पहुँचे तब तक विकास पूरा नही होता |भारत को स्वतन्त्र हुए 67 वर्ष हो गये है फिर भी आम आदमी पूछता है कि अटका कहां स्वराज्य? भारत में अभी भी कई गाँव ऐसे है जो विकास की प्रतीक्षा में है | नगर तो महानगर बन गये है लेकिन इन महानगरों में ऐसी झोपड़ी भी है जो चेतना के दीपक की प्रतीक्षा में है | शिक्षा का प्रकाश भी इनसे अभी भी रूठा हुआ है | ऐसे में ग्रामीण अंचल अज्ञान के अंधकार में जी रहा है वह अपने आस् पास के वातावरण से अपरिचित ही है उसमें सामाजिक चेतना का अभाव है | यह अभी भी अंधविश्वास आड्म्बर रूढिवादिता की दल-द्ल में फंसा है |दलित गलित मान्यताओं में उलझा हुआ कमजोर मानवीय संसाधन सिद्ध हो रहा है | कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि वह स्वयम् अपने शोषण का दीप जला रहा है |जिनको वो भगवान मानता है वो ही उसकी इस हालत के लिए जिम्मेदार है वो ही उसको अनंत सम्पदा से दूर् रखता है |धरती पुत्र अपनी माँ के अंचल दूर् है | उनके श्रम का शोषण हो रहा है ऐसा देख् कर तो धरा की नींव भी हिल जाती है| इस लेख्निनी की कामना है कि---विजय हो श्रम की श्रमिक की -गुनगुनाता लो धरा के गीत सुनलो में सुनाता ||
शुक्रवार, 2 मई 2014
bhasha
स्वतंत्रता के इतने वर्षो बाद भी हम मानसिक दासता में क्यो जी रहे है ? अपने देश में अपनी राष्ट्रभाषा बोलने पर सजा क्यो | इस मानसिकता को देख कर तो ऐसा लगाता है कि हम स्वतन्त्र नही है | जो राष्ट्रभाषा का अपमान करते है उनके लिए राष्ट्रीय पर्वो का भी क्या महत्व है राष्ट्रभाषा का प्रश्न राष्ट्र की अस्मिता जुड़ा है | भारत माता के भाल की बिंदी है हिन्दी | ज़ो इसका अपमान करना बहुत अफसोस की बात है
स्वतंत्रता के इतने वर्षो बाद भी हम मानसिक दासता में क्यो जी रहे है ? अपने देश में अपनी राष्ट्रभाषा बोलने पर सजा क्यो | इस मानसिकता को देख कर तो ऐसा लगाता है कि हम स्वतन्त्र नही है | जो राष्ट्रभाषा का अपमान करते है उनके लिए राष्ट्रीय पर्वो का भी क्या महत्व है राष्ट्रभाषा का प्रश्न राष्ट्र की अस्मिता जुड़ा है | भारत माता के भाल की बिंदी है हिन्दी | ज़ो इसका अपमान करना बहुत अफसोस की बात है
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