एक विचार - सहज नही है किसी भी व्यवसाय को करना क्योकि हर कार्य और व्यवसाय मे दायित्व और तनाव दोनों होते है | जब हम कार्य शाला में जाते है तो वहां अनेक प्रश्न अनेक समस्याओं का जंगल होता है जिनका समाधान करने की पगडंडी भी वहींसे निकलेगी आप किसी भी व्यवसाय के प्रशासनिक क्षेत्र की इकाई में होते है | तो आप को महसूस होगा कि आप अकेले है ; आपके सहयोगी कितने आपके साथ है यह भी आप नही जान पाते | ऐसे में हमे अपने भीतर निर्णय लेने की क्षमता को विकसित करनी होगी | इसके साथ ही आपका कौशल सक्षम होना चाहिए जो हर चुनौती का सामना कर सके | प्रबंधन के साथ प्रशासन का चातुर्य भी हो | प्रबंधन और प्रशासन का चातुर्य हर क्षेत्र में अनिवार्य है | चाहे चिकित्सा -क्षेत्र हो चाहे शिक्षा का क्षेत्र हो या तकनीकी क्षेत्र हो कई बार ऐसा देखा गया है कि प्रबंधन और प्रशासन में समन्वय नही होता इससे अव्यवस्था और तनाव होता है | विभिन्न विभागों मे अधिकारियों की नियुक्ति करना ;कार्य विभाजन करना प्रबंधन है | विभिन्न विभागो में कार्य सही हो रहा यह देखना और उसके अनुसार निर्णय लेना आवश्यक है | जब हम किसी भी कार्य क्षेत्र में उतरते है तो निजी हितों को छोड़ना पड़ता है जब हम किसी पद पर है तो पदेन अनेक दायित्व जुड़ जाते है | जिस कुर्सी पर हम बैठे हैवहां एक रोशनदान है जहां से अनेक आँखें देख् रही है काम तो सही होना ही चाहिये | कौन सा व्यवसाय आराम वाला है यह सोच उचित नही है यह सोच् व्यवसाय का चयन करने के बाद खत्म हो जानी चाहिए ||
बुधवार, 29 अप्रैल 2015
vichar
गुरुवार, 23 अप्रैल 2015
DHARTI
धरती दिवस के उपलक्ष्य में लिखी कविता "कल्पना के गीत तुमने-----" उत्कृष्ट रचना है जो यह स्मरण कराती है कि धरती हमारी माँ है |माता: भूमि: पुत्रो अहम् पृथिव्या:|| धरती मेरी माता है में उसका पुत्र हूँ | धरती सदा अपनी संतान के लिए मंगल कामना करती है | यह धरती उत्सव मेलों से भरी है लेकिन मानव के स्वार्थ ने इसको विद्रूप बनाना शुरू कर दिया है | इसको चाहिए समता ममता और शुभ संकल्प के दीपों की आराधना | इसको सत्य शिव सुन्दरम् के पुष्प चाहिए || क्षमता न्याय प्रियता के गीत इसको पसंद है |यह नही चाहती कि सकीर्ण मानसिकता की कीचड़ इसके आँचल अपावन करे | जब कभी भी यह शोषण के दानव को विहंसता देखती तो हिल जाती है | यह क्रोधित होती है |इसका यह क्रोध कभी अतिवृष्टि तो कभी भूकंप के रूप में प्रकट होता है | धरती चाहती है कि इसके आँगन में श्रम की पूजा हो | श्रमिक को उसकी मेहनत फल मिलें | धरती -पुत्रों के श्रम का सम्मान होना चाहिए -- वैखरी का भाव है---
तुम धरती के बेटे . मिट्टी में रच पच कर बीजों की लहलही फ़सल का स्वर्ग बनाते |
हल की फालो की तीखी कलम बनाकर ; धरती के सीने पर महाकाव्य लिख जाते |
श्रद्धा और वंदन का भाव धरती के बेटे को समर्पित है |
तुम धरती के बेटे . मिट्टी में रच पच कर बीजों की लहलही फ़सल का स्वर्ग बनाते |
हल की फालो की तीखी कलम बनाकर ; धरती के सीने पर महाकाव्य लिख जाते |
श्रद्धा और वंदन का भाव धरती के बेटे को समर्पित है |
बुधवार, 22 अप्रैल 2015
कल्पना के गीत तुमने बहुत गाये |
लो धरा का गीत सुन लो में सुनाता ||
वक्ष से जिसके सुधा की धार बहती |
वह धरा जो पावनी मंगलमयी है||
चेतना के स्पर्श से जड को जगाती |
मातृ रूपा वत्सला मंगल मयी है ||
उस धरा -वंदन - नमन के स्वर सुनता |
लो धरा का गीत सुन लो में सुनाता ||
यह धरा है : आदमी रहता यहाँ है |
आदमी जो सृष्टि की अनुपम कला है |
आदमी है : प्यार का उत्सव यहाँ है ||
राग का आलोक ऐसा फिर कहाँ ?
मानवी उत्कर्ष की गाथा सुनाता |
लो धरा का गीत सुन लो ; में सुनाता ||
यह धरा तो उत्सवों -मेलों भरी है |
चटखती कलियां यहाँ मधुरस लुटाती |
नूपुरी झंकार की मादक हँसी भी
खेत की पकती फ़सल के गीत गाती
धरा के मधु मिलन के चिर स्वर सुनाता ---- वैखरी का भाव- कवि के. जे. भटनागर
लो-----------------------------------------आशा भटनागर
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