शनिवार, 27 दिसंबर 2014

mahamana

भारत रत्‍‌न स्व0 पंडित मदन मोहन मालवीय-  1861 में जन्मे इस लाल को पाकर इलाहाबाद की भूमि  धन्य हुईं |   मदन मोहन मालवीय भारत्तीय वसुंधरा के अनमोल रत्न है एक ऐसे रत्न जिसने आजीवन राष्ट्रीय मूल्यों की आराधना की | राष्ट्र की  अस्मिता हिन्दी के लिये सतत् संघर्ष किया | वे बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे || वे शिक्षाविद् होने  के साथ  स्वतंत्रता सेनानी :  राष्ट्रवादी ; राजनीतिज्ञ  और समाज सुधारक थे |अपना राजनैतिक जीवन उन्होंने काँग्रेस से ही शुरु किया | 1886 में राष्ट्रीय काँग्रेस में   प्रवेश किया | काँग्रेस अधिवेशान में चार बार सभापति बने |1909  में लाहौर अधिवेशन में ; दिल्ली अधिवेशन :1918;1931; कलकत्ता 1933 उन्होंने एक जगह यह कहा भी है कि मैं 50 साल से काँग्रेस के साथ हूँ | उन्होंने महात्मा गाँधी का पूरा-पूरा सहयोग किया | महामना की उपाधि महात्मा गाँधी ने ही उन्हें दी थी | हिन्दी  से उन्हें विशेष अनुराग था | हिन्दी फले-फूले इसके लिए  ही 1916 में   बसंत पंचमी  के दिन  बनारस हिंदू विश्व विद्यालय की स्थापना की | वे देश भक्ति को सर्वोच्च शक्ति मानते थे| सत्यमेव जयते नारे को राष्ट्रीय पटल पर लाने वाले मदन मोहन मालवीय थे |1936 में हिंदू महासभा में प्रवेश किया | उन्होंने  भारतीय संस्कृति के मूल तत्वों को प्रोत्साहान देने के लिए सदैव प्रयत्न किया | हिन्दी के कई समाचार पत्र ;पत्र -पत्रिकाओं का  संपादन किया |    हिन्दी के प्रबल  समर्थक थे महामना के प्रयासों से ही देवनागरी  सरकारी  कार्यालयों और न्यायालय में स्थान पा सकी | गंगा -गायत्री उनकी प्रिय थी | ऐसी विभूति को नमन |

मंगलवार, 9 दिसंबर 2014

      शब्दों का उपहार पहली बार-
 तुम मेरे प्राणों की परिमिति
 तुम मेरे  स्पंदन  की  भाषा |
 ओ मेरे उल्लास मधुर स्वर--
 तुम   मेरे जीवन  की आशा ||
    तुम मेरे श्वासो की सरगम
    तुम गतिलय मेरे गीतो की
    ओ मेरे उत्ताप-शिथिल अधि-
    मानस की  चेतना मदिर-सी |
  तुम वासना  मुक्त   मादकता
  तुम शाश्वत अनुराग-भरित-मन |
  प्राणों का कर  स्पर्श  राग से-
  तन मन में भार दिए ज्योति कण
       तुम कोमल नवनीत -  सदृश हो
       शोभा-थकित्त चकित-सी पल-पल ||
       वाणी मधुमय खग कल- कूजन |  
       मन  जैसे  पावन     गंगा जल ||
   तुम मेरे प्राणों  की   सम्बल ;
   तुम मेरे मन  की     अवलम्बन |
   अंतस्  के   गीतो    की माला --
   से  अर्पित  करता      अभिनंदन

शनिवार, 6 दिसंबर 2014

kalam

शिक्षक की कलम से- शिक्षक पद गरिमा से  पूर्ण पद है वह राष्ट्र  का भविष्य बनाता है ऐसे  भविष्य निर्माता को बहुत को हल्के से लिया जाता है विशेषकर हिन्दी और संस्कृत के शिक्षक को अत्यन्त  दयनीय  बनाकर प्रस्तुत किया जाता है यहां तक कि जितने भी धारावाहिक या चलचित्र है उनमें शिक्षक को विदूषक के रुप में प्रस्तुत किया जाता है यह अनुभव इस कलम ने विद्यार्थी काल से किया है तब भी क्षोभ होता था आज भी है इस प्रसंग कई बार समाचार पत्रो में लिखा भी है || एक बार एक साक्षात्कार में कुछ लड़कियों से जीवनसाथी के चयन के बारे में पूछा तो प्रथम वरीयता थी प्रशासनिक अधिकारी की दूसरी वरीयता चिकित्सक तीसरी इंजीनियर चौथी वरीयता में बेचारा शिक्षक  जब मेरे परिवार  में मुझ से पूछा गया तो मैंने चौथी वरीयताको अपनी प्रथम वरीयता बताया बात यहां नहीं खत्म होती शिक्षक में भी भेद  करके देखा जाता है यह हिन्दी का शिक्षक है या अँग्रेजी का |अँगरेजी का होगा स्मार्ट होगा और हिन्दी का होगा तो मोटा चश्मा पहने होगा विदूषक की कल्पना साकार की जाती है मुझे आज तक यह बात समझ में नहीं आयी कि अँगरेजी जानकर कौन सा ज्ञान बढ़ जाता है  हमारे संस्कृत साहित्य में सारा ज्ञान है और विदेशियों ने इस का अध्ययन  किया और अपनी मोहर लगा दी | योग विश्व को भारत की देन है मानसिक दासता से ग्रस्त लोगो को योग  कहने में शर्माते है योगा कहते है |अँगरेजी का मारा समाज  किधर जा रहा है एक साधारण व्यक्ति रोटी बाद में खायेगा अपने बच्चों को तथाकथित अँगरेजी स्कूल में पढाकर गर्व महसूस  करता है चाहे उसको अँगरेजी समझ ना आती हो इन्ही अंगरैज़ी  स्कूलों में एक शिक्षिका का नए तरीके से अपमान होता है और एक समाचार  बन कर रह जाता है | एक बच्ची दो  चोटी  करके काजल लगाकर आती है तो उसे सजा मिलती है| कब मेरा देश इस दलित गलित मानसिकता निकलेगा शिक्षकत्व कब आदर पायेगा कब मेरी साथ यह कहेगा गर्व से कहो  कि हम शिक्षक है हिंदी पढ़ाते  है जो अँगरेजी  से ज्यादा शक्ति शाली है जो हमारे राष्ट्र की अस्मिता है

रविवार, 23 नवंबर 2014

yoga

योग- किसी भी देश की  प्राथमिक आवश्यकता  स्वस्थ मानवीय संसाधन है| तन और मन से स्वस्थ नागरिक देश की प्रथम आवश्यकता है | तभी प्राकृतिक संसाधनों का सही दोहन सम्भव है| शारीरिक और मानसिक क्रियाओं का संतुलन ही स्व में स्थित रख सकता है इसमे योग की भूमिका महत्व पूर्ण है |योग पर् बहुत चर्चा हो चुकी है |योग के प्रति विश्व भर में बहुत आकर्षण है इसी कारण  यह दर्शन विशेष रूप से प्रतिष्ठित है  भारत में 6:दर्शन विशेष है -वेदांत:  सांख्य: न्याय : वैशेषिक: मीमांसा:और योग | योग भारत की श्रेष्ठतम  अध्यात्म निधि है इसकी व्याख्या पतंजलि की पुस्तक योग सूत्र में मिलती है  ||  योग की परिभाषा है-  योग: चित्तवृत्ति निरोध: | चित्तवृत्ति के वशीकरण को कहते है चंचल मन को वासनाओ को रोकता  है ऐसा योग राज योग  है यही मन की चंचल वृत्ति को रोकता है योग के 8अंग होते है | 1 यम अर्थात् संयम - इसके पाँच प्रकार है- 1अहिंसा 2सत्य 3 अस्तेय 4 ब्रह्मचर्य 5अपरिग्रह | 2 नियम भी पाँच है शौच :संतोष:तप स्वाध्याय:: ईश्वर प्रणिधान| 3 आसन शरीर  का अनुशासन है| 4 प्रणायाम श्वासो का अनुशासन  है 5 प्रत्याहार भीतर से भोजन करना है प्रत्याहार भीतर से आनंद की खोज है6 धारणा -इष्ट में चेतना को केन्द्रित करना है |7 ध्यान मेडिटेशन है  धारणा  की अखंड धारा को ध्यान कहते है |8-समाधि आत्मा का परमात्मा से एकाकार होने का प्रयास |इसके दो स्व्ररुप है -1 निर्विकल्प- जिसमें केवल तू ही तू का आभास होता है अखंड अद्वेत का आभास 2सविकल्प मै ही तू ही का आभास | हठयोग अलग है इसमे मेरुदंड के भीतर निम्न भाग में कुण्डलिनी शक्ति होती है जो सर्पिणी के आकार की होती है जिसे साधना से ऊर्ध्वमुखी किया जाता है क्रमश: 7 चक्र  पार किए जाते है- 1 मूलाधार 2 स्वाधिष्ठान 3मणिपूर    4 अनाहत 5विशुद्ध 6 आज्ञाचक्र 7मस्तिष्क के पीछे के भाग में1000 पँखुड़ी वाला उलटे कमल की आकृति का सह्स्रार चक्र होता है इस में अनन्त प्रकाश होता है अनाहत नाद होता है यहां अमृत झरता है यह हठयोग है |

गुरुवार, 13 नवंबर 2014

bachpan

बाल दिवस पर विशेष -बचपन --  बचपन गुलाब है बचपन गेंदे का खिलता फूल है  बचपन में मौलश्री  खिलती है  बचपन में जुही की सुगंध   है सारा का सारा बचपन हार सिंगार  है यही बचपन भारत के  भविष्य के आँगन में रंगोली सजायेगा इसको सहजना आपका हमारा सबका कर्तव्य है किन्तु ऐसा हो नही हो रहा है कहीँ गुलाब निराश हताश सड़क पर सोने को मजबूर या फिर पेट की आग बुझाने के लिये रोटी के  लिये भीख माँगने को  मजबूर |बालश्रम पर अनेकानेक: विचार: कानून है लेकिन  बालक की रोटी की क्या व्यवस्था है इसकी भी मूल आवश्यकता है जमाने के साथ चलने की  इस बचपन की भी इच्छा है इसीलिये बचपन कहीँ बर्तन साफ़ करता है तो कहीँ मज़दूरी करता है उसपर भी फटकार | जब कहीँ  से कुछ नही मिलता तो ग़लत रास्ते पर चल पड़ता है कहीँ होमवर्क ना करने पर इतनी सजा पाता है कि रोंगटे खड़े हो जाते है | शिक्षा मन्दिर मौलश्री की सुरक्षा नही कर पर रहे है जूही अपनी सुगंध तलाश रही है | केवल बाल दिवस  मनाना समस्या का समाधान नहीं है  नेहरू जी ने देश के भविष्य को अपना जन्मदिन समर्पित किया था राजनीति को नही  | मेरा समस्त बौद्धिक वर्ग से निवेदन है कि मनुष्य के पिता को बचाने  का संकल्प ले | किसी ड्रेकुला से कली को बचाने का संकल्प ले | बचपन मनुष्य का पिता है क्योकि पाँच साल की उमर में उसका भविष्य बन जाता है| परिवार विद्यालय समाज सेवी संस्थाओं पर यह दायित्व आ जाता है कि वे इस बात पर ध्यान दे कि उनके संस्कारों को बनाने के लिए जो भोजन परसा जाता है वह शुद्ध हो | खिलते बचपन  को नमस्कार  हँसते झिलमिलतारे जैसे बचपन को नमस्कार

बुधवार, 29 अक्तूबर 2014

विचार विश्लेषण - सच्चा वीर कौन ? जो सात्विक शक्ति का प्रयोग इसलिये करते है कि मानवता की अखंड मूर्ति खण्डित ना हो |लोकमंगल का धरातल  स्थिर रहे | सच्चे वीर  धीर वीर गम्भीर  होते  है  सत्व गुण सागर में उनका अन्त;करण निरंतर स्नान करता है |वे लोक कल्याण के पथ पर जब चलते  है तो प्रकृति उनकी सहचरी हो जाती  है| बादल उनको छाया देते है | चाँद तारे उनके सत्व गुण के गवाह बनते है वृक्ष उनके लिए पंखा झलते है फूल उनका पथ सजाते है सुगन्धित करते है |सच्चे वीर किसी भी कारखाने में तैयार  नही होते वे तो स्वत: भीतर ही भीतर पोषित होते है वे बात बात पर उत्तेजित डराते धमकाते  नही है वे एक बहुत बडे लक्ष्य के लिए शक्ति को सहज कर रखते है | वीर आत्मचिंतन करते है समय के अनुसार कभी पीछे हटना है  तो भी ठीक | राम   ने युद्ध करने से पहले  रावण को समझाने के लिए बहुत प्रयास किए किन्तु रावण जब  नही माना तो मूल्यों की रक्षा के लिए युद्ध किया  कृष्ण भी परिस्थिति वश युद्ध क्षेत्र  छोड़ने के कारण रणछोड़ कह्लाये कृष्ण शक्ति का अपव्यय नही करना चाहते थे |  उनको अपनी  शक्ति धर्म की रक्षा के लिए बचानी थी | सच्चे वीर भीतर  ही भीतर  ही   मार्च करते है  समय आने पर बलिदान करने में पीछे  नहीं रहते है | आज की शाम वीरों के नाम

रविवार, 5 अक्तूबर 2014

रावण अभी मरा नही --हर वर्ष विजयदशमी मानते है अधर्म पर धर्म की विजय का पर्व है यह सत् की असत्त् पर विजय का पर्व  है हर वर्ष रावण मारते है लेकिन  पता नही क्यो ऐसा लगता है कि रावण  मरा ही नही  रावण मरेगा  कैसे वह तो हमारे अन्दर छिप कर बैठा है जो मारता है वो किसी कलाकार की कृति है जिसमे महिनों श्रम करके रंग भरें है जब रावण जलता है तो उसे दुःख होना चाहिए लेकिन वह्  खुश होता है क्योकि उसकी कलाकृति  की रावण जलने से पहले खूब  प्रशंसा होती है |अब जरा विचार करे बुराई एक प्रतीक को बनाने में महीनों का श्रम लगा पैसा लगा | हजारों लोगों को साक्षी बनाकर उसे जलाया जाता है खूब ख़ुशियाँ मनाते है कि आज बुराइयों के प्रतीक रावण को जला दिया लेकिन आस पास देखा तो रावण तो हँस रहा है वो तो अभी जिंदा है  उसके सबसे बड़ा सिर तो अहंकार ही है फिर लोभ लालच मद मोह माया ईर्ष्या द्वेश वासना आसक्ति यह सब रावण के दस सिर है जब यह  सब खत्म हो तब समझो हमने रावण को जीता | राम ने जिस रावण को मारा था वह  परम् ज्ञानी और  राजनीति का प्रकांड पंडित था | तिनके ओट  में सीताजी बात करती थी | उसका  साहस नही था कि वो सीता जी के साथ कोई अमर्यादित बात करे | मात्र कुदृष्टि रखने पर  ही वह् पाप का भागी बना शिव भक्त होने पर भी उसमें अहंकार था |उसने एक समुदाय को असभ्य कह कर  राज्य  से निष्कसित कर दिया था |रावण ने अपने भाई विभीषण को लत मार कर सभा से बाहर कर दिया था  रावण निरंकुश राजतंत्र का प्रतीक था  इसीलिये  राम ने उसका वध किया |आज रावण कितने रूपों में है सबसे बुरा रुप तो वासना का है जो डेढ़ वर्ष की बच्ची  को भी हवस  का शिकार बनाता है | एक बुरा रुप वो है जो देश रुपी वृक्ष की डालें  काट  कर अपना घर भरता है गरीब की झोपड़ी  में  दिया भी नहीं जलता  भव्य स्वर्ण  भवनों में रोशनी का कोई आर पार नही  ऐश्वर्य तो उनका दास है ये गरीबों का हक् छीन कर  ऐश करना उनका अधिकार है इन रावणों  को कौन मरेगा ? सोचो| देश को आज ऐसे रक्षक राम की जरूरत है सबको राम बनने की जरूरत है|    आशा भटनागर । 
                                                             

गुरुवार, 2 अक्तूबर 2014

नमामि भक्त वत्सलम्--- भारतीय वांगमय[वांड्मय} की शोभा है राम कथा और उसके कौस्तुभ मणि  है श्री राम || वैसे तो रामकथा का  प्रथम उन्मेष वाल्मीकि रामायण से है उसके बाद से राम कथा  की सरिता अखंड रूप से प्रवाहित रही| कालिदास ने रघुवंश में भी राम कथा  है | उत्तर रामचरित भवभूति  का प्रसिद्ध नाटक है  लेकिन तुलसी ने रामचरित मानस   में रामकथा की ऐसी भागीरथी प्रवाहित  की कि जितना स्नान करो उतना कम लगता है केशव की रामचंद्रिका और फिर गुप्त जी का साकेत |साकेत में उर्मिला केन्द्र में है किन्तु साकेत में राम का जो स्वरुप प्रस्तुत किया है वह आज  सब  के लिए प्रेरक है |  राम के माध्यम से पर्यावरण के प्रति सजगता  : कर्म निष्ठ्ता : आत्म विश्वास  को   है समाज में सबका मर्यादित व्यवहार हीअपेक्षित है राम ने स्वयम् कहा कि में आर्यों के आदर्श  को बताने आया हूँ  | जो शापित है  भय ग्रस्त  है राम उनके विश्वास है | राम का मनुष्यत्व धारण करने का  उद्द्येश्य  आत्म सुख नही है  अपितु दूसरो का दुःख दूर् करना ही प्रमुख  है  वह करुणानिधि है साकेत में राम नर में ईश्वरता का आभास कराने का प्रयास कराते है |  
         राम कहते है कि भव में नव वैभव व्याप्त कराने  आया 
                          नर को ईश्वरता प्राप्त करने आया 
                         संदेश यहां मै नही स्वर्ग का  लाया 
                         इस भूतल को ही स्वर्ग बनाने आया |
जिनको रावण राज्य में असभ्य वानर कह कर अलग कर दिया था | राम  ने उन्हे गले लगाया और कहा "बहु जन वन में है बने ऋक्ष-वानर से में दूँगा अब आर्यत्व उन्हें निज़ कर से"राम ने   इन लोगों  में शिक्षा और संस्कृति के विकास की बात कही|आज की राजनीति के लिएराम का चरित्र प्रेरणा है || सामाजिक व्यवस्था  के लिए प्रकाश  की किरण है  राम इसलिए भगवान है क्योकि उन्होंने सदेव अपरिमित वर्ग के कल्याणका चिंतन किया इसीलिये राम ईश्वर है राम धर्म स्वरूप है राम का विरोध धर्म का  विरोध  है धर्म का विरोध है राम का  विरोध है  राम वो विराट  चेतना है जो सब में  रमण  करती  है अथवा सब जिसमें रमण  करते है  

         

सोमवार, 29 सितंबर 2014

kanyapoojan

कन्या पूजन की सार्थकता -अब अष्टमी आ रही है घर -घर से कन्याओं  को पुकारा जायेगा बहुत अच्छा हे यह सब |   मानस के सागर में अनेक प्रश्न  ज्वार भाटे की तरह उठते रहते है क्या वास्तव में हम कन्या पूजन के अधिकारी  है? क्या बालिका जो अभी नन्हीं सी कली है उसको खिलने का अवसर समाज  में मिलता  है | कितनी सुरक्षित है वह? प्रतिदिन दूरदर्शन कहता है कि नाबालिक हवस का शिकार हुई | स्कूल हो ; पार्क  हो सड़क हो सब जगह  हवस उसका पीछा करती रहती है | आज कन्या पूजन है कल वही कन्या हवस  का शिकार होगी | मध्यकाल में सुरा सुंदरी का चलन प्रारम्भ हुआ था तब समाज में अनेक विकृतियां उत्पन्न हुई थी अनेक महान विभूतियों  के प्रयासों से  भारत  में चेतना का सूर्य उदित हुआ अभी उसका पूरा प्रकाश फैला भी नही है कि भारत के व्योम पर काले बादल दिखने लगे है  बाल विवाह :कन्या भ्रूण हत्या: जैसी समस्याएँ पुन; जीवित होगी| जब तक बालिका का कंचिका का कौमार्य सुरक्षित नही है तब तक कन्या पूजन का कोई अर्थ नही | अष्टमी  एक संकल्प दिवस 'कन्या सुरक्षा  दिवस"  के रुप में आयोजित  होना चाहिए | सरकारी स्तर पर कितने प्रयास हो आवश्यकता है मन के भीतर के शिव संकल्प की | ऐसा नही हुआ तो हर घर में दुर्गा होगी जो अनेक रुप में रक्तबीज जैसे राक्षस का संहार करेगी | कन्या तो गंगा है कन्या सोन परी सी परिवार को सजाती है रिमझिम सी शांत  भी रहती है झिलमिल तारा सी चमकती है | सभी बौद्धिक वर्ग  से निवेदन है कि कन्या पूजन को सार्थक करे  

शनिवार, 27 सितंबर 2014

shakti poojan

शक्ति पूजा - एक विश्लेषण  आज कल शक्ति पूजा के दिन है ये नौ दिन आश्विन मास के नवरात्रि {नव  शक्तियों से संयुक्त ] आश्विन  मास  नवरात्रि भगवती का शयन काल है राम  की  शक्ति साधना से यह शयन - नवरात्र पूर्ण चैतन्य हुआ | इस प्रसंग को महाप्राण  कवि निराला ने अपने शिखर काव्य राम की शक्ति पूजा में अधिक मुखरित  किया है | इस  कथा  का    उल्लेख   परम्परागत  राम काव्यो में नहीं है | इस कथा का मूल स्रोत  देवी भागवत शिवमहिम्न स्तोत्र तथा कृत्तिवास रामायण  में है | राम की शक्ति  पूजा में निराला जी  ने अपनी तूलिका से  इस कथा  को   नया रंग दिया है | राम रावण का युद्ध चरम पर है |मेघनाथ   आदि का वध  हो चुका है | उस दिन  के युद्ध में राम अमोघ बाण  लक्ष्य भ्रष्ट होते है अथवा रावण को गोद में लिए श्यामा देवी राम को क्रोध से देखती है |राम के बाण मार्ग मे ही भस्म हो जाते है | हनुमान जी को छोड़  कर अन्य सब  मूर्छित प्राय; हो जाते है उस दिन का युद्ध समाप्ति पर है राम सीता मुक्ति कैसे होगी यह सोचकर निराश है |अवसाद की मुद्रा में राम को देख कर विभीषण आदि राम को चैतन्य करने का प्रयास  करते है |राम कह उठते है-"अन्याय जिधर है उधर है शक्ति'' तब जामवंत उन्हें दुर्गा की उपासना करने को कहते है | राम  108 इंदीवर से माँ की पूजा का संकल्प ले कर पूजा में लीन हो जाते है उनकी चेतना; कुण्डलिनी शक्ति मूलाधार स्वाधिष्ठान मणिपूर;अनाहत ;दिव्य आज्ञा चक्रों  को पार करके सहस्रार चक्र  तक पहुँचती है साधना का चरम क्षण  है तभी रात्रि के दूसरे पहर में श्यामा देवी हँस कर अन्तिम फूल चुरा ले जाती है राम  अन्तिम पुरश्चरण  के लिए फूल खोजते है ना मिलने पर विकल हो जाते है तभी अंत;चेतना में प्रकाश होता है कि  माता मुझे राजीव नयन कहतीं थी  अभी दो नेत्र रुपी कमल शेष है  इस संकल्प के साथ अपना दक्षिण नयन रुपी कमल अर्पित करने के लिए उद्यत होते है तभी देवी प्रकट होकर  आशीर्वाद देती है -होगी जय होगी जय हे पुरुषोत्तम नवीन कह महाशक्ति राम के वदन  में हुई लीन- --  कहने का अभिप्राय यह है  क़ि  राम ने साधना से स्वयं के आत्म विश्वास  को चैतन्य किया |शक्ति पूजा से अभिप्राय यह ही है कि अपने भीतर  की शक्ति  को जाग्रत करें | देवी पूजन सात्विक शक्ति का आह्वान  है असत् पक्ष के विनाश के लिए सत् की स्थापना केलिये  सात्विक शक्ति को चैतन्य करना आवश्यक है और आत्म बल सुदृढ़ करना जरूरी है | निराला  के शब्दों  में -जन रंजन-चरण कमल धन्य सिंह गर्जित | 
                             यह मेरा प्रतीक मात ! समझा में इंगित |    
                             इसी  भाव  से करूँगा  अभिनन्दित                              

रविवार, 14 सितंबर 2014

samman

 हिन्दी का राजभाषा के रुप में एक विश्लेषण - ---  . आज  हिन्दी दिवस है |  राष्ट्र की अस्मिता को नमन | इस सन्दर्भ में अनेक  विद्वानों के विचार जानने का अवसर मिला | इसी प्रसंग में उल्लेख है - विश्व में हिन्दी की स्थिति चौथे स्थान पर नही है अपितु दूसरे स्थान पर है जो उसका स्थान चौथे नम्बर बताते है वे हिन्दी की बोलियों  मैथिली  भोजपुरी  राजस्थानी  आदि  को बोलने वालों   की संख्या को अलग करके देखते है जबकि ये हिन्दी अभिन्न अंग है किसी भाषा के अंतर्गत उसका  एक मानक रुप होता है |हिन्दी की 5 विभाषाऍ है और 18 बोलियां है | ये सब हिन्दी के परिवार में ही है | अ‍ॅग्रेजी के समर्थक हिन्दी के सामने अन्य भाषाओं को खड़ा कर देते है और राजनैतिक विवाद खड़ा हो जाता है | भारत की सभी भाषाऍ सम्माननीय ; समृद्ध और प्रिय है | वे हिन्दी की ही बहिनें है इन सबका विकास होना चाहिए लेकिन संविधान के अनुच्छेद  343 में राजभाषा और संपर्क भाषा के रुप में हिन्दी को स्वीकार किया है | राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी  अन्य भाषाओं के शब्द रुपी मोती ग्रहण करे | यदि  हिन्दी भाषी अन्य भाषाओं  को  पाठ्यक्रम  में पढ़ें भी तो प्रति दिन के  व्यवहार में ना आने के कारण भूल जायेंगे | हिन्दी राजभाषा  है उसको वैसा ही आदर मिलना चाहिए | राष्ट्र भाषा भावनाओं से जुड़ी है इसका विकास और पल्लवन जनता और साहित्यकारों द्वारा होता है सबसे शुभ दिन वो होगा जब  हिन्दी को  राजभाषा और राष्ट्रभाषा का सम्मान  मिलेगा | कलम उस दिन की प्रतीक्षा मे है 

hind divas

हिन्दी दिवस पर विशेष --14 सितम्बर राष्ट्र भाषा  -राजभाषा  हिन्दी के लिए स्मरण -दिवस | 14 सिताम्बर 1949 का शुभ दिन जब भारत की संविधान सभा  ने एक सावर  से अनुच्छेद 343 को स्वीकृति दी थी | जिसका पाठ इस प्रकार है >हिन्दी संघ की राजभाषा होगी देवनागरी उसकी लिपि होगी | इसके नीचे उपबन्ध में लिखा गया था {15 वर्ष तक अंग्रेजी का प्रयोग यथावत् चलता रहेगा }हिन्दी के राजभाषा के स्वरुप की मान्यता के लिए निम्न तथ्य ध्यातव्य है- ---------1-भारत में 11प्रदेशों में हिन्दी मातृ भाषा के रुप में बोली जाती है 2 (चीनी भाषा) के बाद सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है 3- हिन्दी बोलने वालो की संख्या 60% से अधिक है और जानने वालो की संख्या कहीं अधिक है इसके बाद 6% तेलगु बोलने वाले ; अन्य 6% से भी कम है ; अंग्रे़जी बोलने वालों की संख्या ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌1/2% है अल्पज्ञान रखने मात्र 4% है |4- हिन्दी राजभाषा और राष्ट्र भाषा  के रुप में राष्ट्रगान राष्ट्र ध्वज की तरह ही भारत के  स्वाभिमान  का प्रतीक है | भारत के बाहर भी विविध देशो में भी 100 से अधिक - विश्व विद्यालयों में हिन्दी  अध्ययन - अध्यापन होता है | 5-हिन्दी मे लगभग 9लाख है जो अँग्रेजी से कुछ कम है | 6-  - हिन्दी की लिपि  देवनागरी को विश्व  में कंप्यूटर  के लिए सर्वाधिक वैज्ञानिक लिपि के रुप में अमेरिका आदि  में स्वीकार किया है| इस प्रकार सर्वं गुण संपन्न भाषा की हम अपने देश में घोर अवज्ञा कर रहे है |यह हमारा परम  दुर्भाग्य है कि भारत के विदेश मंत्रालय से विदेशों में एक भी पत्र 1914 से पूर्व  हिन्दी में नही गया |संयुक्त राष्ट्र संघ  में भी संपर्क भाषा के रुप  में भी स्थान दिलाने का प्रयास नही किया गया | कितने विस्मय की बात है कि स्वतन्त्रता के 67 वर्षो में किसी भी प्रधान मंत्री ने विदेश में जाकर हिन्दी में जाकर बात नही की | अटल बिहारी जी  दो बार संयुक्त .रा.संघ हिन्दी में बोले थे | प्रफुल्लता है कि नवागत सरकार ने पहली बार देश विदेश में हिंदी मे बोलने का संकल्प लिया | किसी भी उन्नत देश में  उच्च शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा नही है जबकि हमारे भारत में उच्च  शिक्षा का  माध्यम  अंग्रेजी है | हिन्दी दिवस पर  हिन्दी के लिए स्वस्थ  राष्ट्रीय संकल्प की आवश्यकता है | प्रधान मंत्री की जापान और नेपाल यात्रा से ऐसी आशा जगी है कि हिन्दी को राजभाषा-राष्ट्रभाषा के रुप में उसकी अस्मिता प्राप्त होगी  आशा भटनागर 84 पी ब्लॉक श्री गंगानगर राजस्थान
      

शनिवार, 13 सितंबर 2014

hindi divas

हिन्दी दिवस पर विशेष --14 सितम्बर राष्ट्र भाषा  -राजभाषा  हिन्दी के लिए स्मरण -दिवस | 14 सिताम्बर 1949 का शुभ दिन जब भारत की संविधान सभा  ने एक सावर  से अनुच्छेद 347 को स्वीकृति दी थी | जिसका पाठ इस प्रकार है >हिन्दी संघ की राजभाषा होगी देवनागरी उसकी लिपि होगी | इसके नीचे उपबन्ध में लिखा गया था {15 वर्ष तक अंग्रेजी का प्रयोग यथावत् चलता रहेगा }हिन्दी के राजभाषा के स्वरुप की मान्यता के लिए निम्न तथ्य ध्यातव्य है- ---------1-भारत में 11प्रदेशों में हिन्दी मातृ भाषा के रुप में बोली जाती है 2 (चीनी भाषा) के बाद सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है 3- हिन्दी बोलने वालो की संख्या 60% से अधिक है और जानने वालो की संख्या कहीं अधिक है इसके बाद 6% तेलगु बोलने वाले ; अन्य 6% से भी कम है ; अंग्रे़जी बोलने वालों की संख्या ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌1/2% है अल्पज्ञान रखने मात्र 4% है |4- हिन्दी राजभाषा और राष्ट्र भाषा  के रुप में राष्ट्रगान राष्ट्र ध्वज की तरह ही भारत के  स्वाभिमान  का प्रतीक है | भारत के बाहर भी विविध देशो में भी 100 से अधिक - विश्व विद्यालयों में हिन्दी  अध्ययन - अध्यापन होता है | 5-हिन्दी मे लगभग 9लाख है जो अँग्रेजी से कुछ कम है | 6-  - हिन्दी की लिपि  देवनागरी को विश्व  में कंप्यूटर  के लिए सर्वाधिक वैज्ञानिक लिपि के रुप में अमेरिका आदि  में स्वीकार किया है| इस प्रकार सर्वं गुण संपन्न भाषा की हम अपने देश में घोर अवज्ञा कर रहे है |यह हमारा परम  दुर्भाग्य है कि भारत के विदेश मंत्रालय से विदेशों में एक भी पत्र 1914 से पूर्व  हिन्दी में नही गया |संयुक्त राष्ट्र संघ  में भी संपर्क भाषा के रुप  में भी स्थान दिलाने का प्रयास नही किया गया | कितने विस्मय की बात है कि स्वतन्त्रता के 67 वर्षो में किसी भी प्रधान मंत्री ने विदेश में जाकर हिन्दी में जाकर बात नही की | अटल बिहारी जी  दो बार संयुक्त .रा.संघ हिन्दी में बोले थे | प्रफुल्लता है कि नवागत सरकार ने पहली बार देश विदेश में हिंदी मे बोलने का संकल्प लिया | किसी भी उन्नत देश में  उच्च शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा नही है जबकि हमारे भारत में उच्च  शिक्षा का  माध्यम  अंग्रेजी है | हिन्दी दिवस पर  हिन्दी के लिए स्वस्थ  राष्ट्रीय संकल्प की आवश्यकता है | प्रधान मंत्री की जापान और नेपाल यात्रा से ऐसी आशा जगी है कि हिन्दी को राजभाषा-राष्ट्रभाषा के रुप में उसकी अस्मिता प्राप्त होगी  आशा भटनागर 84 पी ब्लॉक श्री गंगानगर राजस्थान
     

बुधवार, 10 सितंबर 2014

darpan

भाव दर्पण -भारत माता का मंच पर प्रवेश चारों तरफ देखकर कुछ परेशान होती है चारो तरफ पानी ही पानी बादलो की गर्जन सुन कर माँ परेशान होकर कहती है यह कैसा कोलाहल यह कैसी गरजन दामिनि क्रोधित हो कर क्यों दमक रही है दूर् कहीँ प्रकृति को देख् कर भारतमाँ वहाँ जाकर पूछती है प्रकृति तुम क्यों इतनी भीगी हुई हो | प्रकृति.>देखो माँ तुम्हारा स्वर्ग चंदा सा कश्मीर  कैसे पानीपानी हो रहा है |लगातार हो रही वारिश  से मेरा अंग अंग भीग र हा है मेरी तो छोडो जन सैलाब सैलाब में बह रहा है लाखो लोग बेघर हो गए है | भारत माँ>>यह तबाही में भी देख रही हूँ |पहले उत्तराखंड  मेरा मुकुट भीगा ना मालुम कितने लोगो ने जल समाधि लेली और अब मेरा स्वर्ग मेरा चंदा सा कश्मीर -प्रकृति एक बात बताओ कहीं यह सब तुम्हारी नाराजगी के कारण तो नही  |  ऐसा ही है प्रकृति ने उत्तर दिया | मनुष्य  बहुत स्वार्थी हो गया है दोहन की जगह  शोषण कर रहा है मेरे सीने पर कुल्हाड़ी मार मार कर घाव कर दिए है | मुझे अपने अमृत से सीचने वाली नदियों मे विष घोल रहा है |प्रकृति तुम ठीक कह रही हो मनुष्य ने अपना मनुष्यत्व खो दिया है भारत माता ने उत्तर दिया |भारत माता ने कहा ऐसे कठिन समय मेरे सैनिक पुत्रो जिस कर्मठता और साहस परिचय का  दिया  है  |उससे में खुश हूँ |उनको में नमन करती हूँ | प्रकृति तुम उदास मत हो मेरा वर्तमान सजग है |उसने तिरंगे को साक्षी  मानकर जो संकल्प  लिए है उससे मै आशन्वित हूँ | मेरा भारत सुंदर भी होगा स्वस्थ भी होगा | प्रकृति ने भारत माता से कहा >में आपसे बहुत खुश हूँ मेरा सुख दुःख आप का ही है मेरा सौंदर्य भी आपका है में आपको नमन करती हूँ | भारत माता ने कहा > तुम आश्वस्त रहो आने वाला कल तुम्हारी झोली में खुशियों के फूल डालेगा  |  अब में भी चलती हूँ | तुम्हारी सुंदर साँझ को नमन

सोमवार, 8 सितंबर 2014

saksharta

चूनर  ऐसी  भेजना रे  बाबुल जिसमें क ख ग के सितारे जड़ें हों
कॉपी स्लेट ऐसे भेजना रे बाबुल जिसमे अ आ इ लिखा हो रे बाबुल
पतियाँ मैँ तेरी बांच ना सकूँ रे बाबुल लालटेन मुझे भेजना रे बाबुल
में पतियाँ  तुझे  कैसे लिखूँ रे बाबुल डस्टर [झाड्न] चॉक भेजना रे बाबुल
                         यह माँग है उस बालिका की जो आगे बढ़ना चाहती है पढ़ना चाहती है |
 साक्षरता दिवस पर बेटी बचाओ बेटी पढाओ का संकल्प लेकर सन्तति संस्कृति की संरक्षिका के हाथों में चेतना की मशाल थमाये

शुक्रवार, 5 सितंबर 2014

शिक्षक दिवस पर प्रधान मंत्री  को छात्र-छात्राओं के मध्य देखकर अच्छा लगा | सारे वातावरण में आत्मीयता  का रंग था | लग रहा था प्रधानमंत्री  नही अपितु उनका कोई संरक्षक बोल रहा है या फिर बहुत बड़ी क्क्षा में अनुभवी शिक्षक बोल रहा हो  जिसने शिक्षा मनोविज्ञान  का  गहराई से अध्ययन किया हो  अपने भावों को सरस वातावरण मे प्रस्तुत किया | तकनीकी  शिक्षा के साथ-साथ पुस्तक अध्ययन पर  बाल दिया |स्वाध्याय शिक्षा का मह्त्त्व पूर्ण अंग है जिसको आज कल भूलाया जा रहां है | आजकल  गाइड पर आधारित ज्ञान  दिया  जाता है  बच्चे प्रश्नों के उत्तर रट लेते है  text book  पर उनका ध्यान कम ही  होता है अत; प्रधान मंत्री का  स्वाध्याय पर जोर देना उचित है  |  अपने जीवन के मधुर क्षणों को बच्चो में बाँट कर वातावरण  रसासिक्त कर दिया | बच्चो के प्रश्नों के उत्तर सहज रुप में दिए |प्रधान मंत्री और बच्चो के मध्य ऐसी स्वस्थ अंत;क्रिया कई वर्षो बाद देखने को मिली है      || प्रधान मंत्री के द्वारा बच्चों के साथ अंत: क्रिया करना देश के भावी नागरिक को तैय्यार करने की ओर बढ़ता कदम है इसे राजनीति के परिप्रेक्ष्य में नही देखना चाहिये |इससे शिक्षक की गरिमा कम नही हो सकती | शिक्षक की अपनी गरिमा है जिसका  निर्वाह एक अच्छा शिक्षक  करना जनता है | शिक्षक की कलम में बहुत शक्ति होती है |

मंगलवार, 2 सितंबर 2014

शिक्षक दिवस पर विशेष- अनुभव के पृष्ठों को आधार बनाकर कलम यह लिखना चाहती है कि शिक्षक होना गर्व की बात है |यदि किसी शिक्षक को अपने विषय का पूरा ज्ञान है और तथ्यों को  अभिव्यक्त करने की क्षमता  है तो इससे अच्छा व्यवसाय और कोई नही | शिक्षा का दान महादान है शिक्षक ऐसा दान करके दिव्य पुण्य अर्जित करता है फिर ज्ञान बाँटने से और बढ़ता है एक अच्छे  शिक्षक को विद्यार्थी ईश्वर के समान  पूजते है | प्रश्न यह है कि कितने प्रतिशत लोग इस व्यवसाय को गम्भीरता से लेते है | भारत की नयी पीढ़ी ग्लैमर पसंद करती  है ऐसा ही व्यवसाय पसंद करती है फिर विदेश जाने अभिलाषा तीव्र होती जारही है इस प्रकार  के व्यवसाय में पैसा तो मिलता है लेकिन तनाव भी मिलता है  शैक्षिक व्यवसाय में भी धनार्जन के अनेक द्वार खुले गए है | शिक्षा में नयी तकनीकी का विकास हुआ है |अनुसंधान  अन्वेषण के भी विकल्प  है | बात है जिज्ञासा  की |  शिक्षक व्यवसाय से जुड़ने वाले विभिन्न लोग है  पहले वो जो  उच्च महत्वाकांक्षी होते है | उच्च पद  प्राप्त करने के इच्छा रखते है किन्तु प्रयास  करने के बाद भी जब उनका चयन नही होता तो विवश हो कर इस व्यवसाय में आते है निराशा के भाव से कार्य करते है कुछ ऐसे भी है जो मात्र वेतन में रूचि रखते है जैसे चल रहा है वैसे ठीक है | शिक्षक बनने का संकल्प लेना आसान नही है  शिक्षक बनने से पूर्व ज्ञान  की कसौटी पर अपने को कस लेना चाहिए |आत्म चिंतन करना चाहिए | शिक्षक एक कालांश में लगभग 60 विद्यार्थियों का  भविष्य तय करता है यह उस का नैतिक दायित्व है कि विद्यार्थियों की जिज्ञासा शमन करे | शिक्षक अपना और अपने व्यवसाय का सम्मान करे |उसे गर्व होना चाहिए कि वह् देश के भविष्य का निर्माता है | समाज उसके ज्ञान के प्रकाश को आगे बढ़ कर नमन करेगा |यह कलम सभी शिक्षको सम्मान देते हुए शिक्षक दिवस पर शुभ कामना देती है 

बुधवार, 20 अगस्त 2014

mahabharat

महाभारत- एक लघु विश्लेषण-महाभारत हिमालय के आँगन में नये धर्म रूपी  सूर्य के उदय के लिये लड़ा गया महायुद्ध था |ऋत्त -   - चक्र को व्यवस्थित करने के लिए महाक्रांति का शंखनाद था | राजतंत्र अंधा और विवेकहीन होकर सिंहासन पर बैठता है तो समझो   समर का आगाज हो गया | कभी-कभी ऐसी प्रतिज्ञाऐं राजतंत्र से बँध जाती है जो धर्म के सूर्य को अस्त होता देखती रहतीं है पर कुछ कर नहीं कर पाती | अधर्म का अंधकार उन्हें कुछ देखने ही नही देता |अन्याय शोषण अनाचार जब हँसता है और नीति रोती है तो युद्ध होता है |भीष्म की प्रतिज्ञा  धृतराष्ट्र की मह्त्व -आकांक्षा और पुत्र मोह ने सत्य को क्रांति के लिए विवश किया | जब धर्म सत्य न्याय विवेक ज्ञान लाक्षगृह में भेजे थे तब महाभारत के लिए कुरुक्षेत्र का मैदान तैयार हो चुका था | बस वह् सोच रहा था कि किसी तरह  युद्ध ना हो तो  अच्छा है इसमे अधर्म तो मरता ही है धर्म भी अश्रु बहाता है   लेकिन जब अधर्म धैर्य हीन और अविवेकी होता है तो महाभारत  निश्चित हो जाता है |  जब  द्यूत क्रीड़ा में छ्ल कपट के पासे डाले जाते है तब चक्र सुदर्शन धर्म को बचाने की तैयारी कर लेता है |और -और प्रतीक्षा -कब अधर्म समझे लेकिन ऐसा हुआ नही |अधर्म ने लज्जा का आवरण हटाने का प्रयास किया तब चक्र सुदर्शन ने लज्जा के चीर को बचाया और मन में युदाध का संकल्प ले लिया | चक्र  ने फिर विनीत स्वर पाँच गॉव अधर्म  से माँगें  |  माँगने पर अधर्म ने सूई  के बराबर भूमि देने को मना कर दिया तो चक्र ने धर्म की रक्षा के लिए युद्ध की घोषणा कर दी महाभारत धर्म  और न्याय की स्थापना के लिए  हुआ | जब जब अधर्म नग्न नृत्य करेगा महाभारत को कोई नही रोक सकता ||

मंगलवार, 19 अगस्त 2014

ashadeep

 जीवन के रंग भविष्य के संग- प्रधानमंत्री  ने अबतक चले आ रहे योजना आयोग को समाप्त  करके एक नए आयोग की संरचना की घोषणा करने पर विचार किया है  उचित है क्योकि जितनी पुरानी स्वतंत्रता है  लगभग उतना ही पुराना है आयोग | भारत जब स्वतन्त्र हुआ था तब समस्याओं का स्वरूप कुछ और था अब  कुछ और है |भारत कृषि प्रधान देश है अधिकतार उद्योग कृषि पर  निर्भर है कृषि के विकास के पर पहले भी योजनाओं में ध्यान दियागया और हरित्‌ क्रांति के रुप में  विकास  हुआ |विकास तो अन्य क्षेत्र में भी हुआ है किन्तु 68 वर्षो में जितना विकास होना चाहिए था उतना नही ;भारत 75%से भी जनसंख्या खेती पर निर्भर है |खेती मानसून पर  मानसून कभी खुश तो कभी नाराज कहीँ  अनावृष्टि तो  कहीँ अतिवृष्टि ऐसे में सिंचाई साधनों के विकास पर बल देने की जरुरत है  नदियो का समन्वय समुद्र के पानी के पानी के परिशोधन की तकनीक विकसित हो | जब किसान खाली हो उसके लिये लघु योजनाओं को चलाना उत्तम है मानवीय संसाधन को सक्षम बनाने के लिये शिक्षा के हर क्षेत्र में गुणात्मक विकास हो |प्रकृति का उचित दोहन हो | छोटी -छोटी योजनाएँ  हो जो कम समय में पूर्ण होकर फल दायी हो जिससे अन्तिम छोर तक विकास का प्रकाश पहुँचे | झोपड़ी में एक बल्व तो जले महानगरों में  तो भव्य प्रकाश है | नया आयोग आशा का दीप बने जिसके प्रकाश में भविष्य के संग जीवन के रंगो की रंगोली सजे || इस पर आगे भी विचार लिखे जायेगे||   योजना आयोग  के स्थान पर बनने  वाले संस्थान के लिए  आशा दीप नाम   प्रस्तावित करती  हूँ |    
           आशा भटनागर

             

             
              

रविवार, 17 अगस्त 2014

krishan

मूल्य संचेतना के प्रतीक श्री कृष्ण- --कृष्ण पूर्ण मानवता की चरम कल्पना है | भारतीय परम्परा में कृष्ण 16 कलाओं के अवतार है सबके आकर्षण के केन्द्र कृष्ण  समग्र चेतना संपन्न विराट् मानव है  उनका व्यक्तित्व अनिर्वचनीय शब्दातीत और हर प्रकार की  व्याख्या से परे है  || इसका कारण है उनके व्यक्तित्व में  निषेध तत्त्व नही है | उनके जीवन से जुड़ी सम्पूर्ण कथाएं मिथक हैं ;प्रतीक  हैं | उन प्रतीको  की  सहज व्याख्या अनिवार्य हैं अन्यथा मिथ्या अभिप्राय लिए जाते हैं  || कृष्ण ने सारी सड़ी गली परम्पराओ मर्यादाओं को  तोड़ा और उनका पुनरुद्धार किया | इन्द्र के गर्व को खंडित करके वैज्ञानिक संचेतना के साथ गोवर्धन पर्वत उठाया था | इसका  अभिप्राय यह है कि वर्षा पर ही  निर्भर रहना उचित नही है  और वर्षा के अतिरिक्त गो-वर्धन [गायों के  सम्वर्धन }  पर बल दिया | जिससे अर्थ व्यवस्था में  सुधार हो | माखन लीला ; मटकी फोड्ना यह सब सामाजिक क्रांति के प्रतीक है  जो श्रम करता है उसका फल उसे ही  मिलना चाहिए | खेल-खेल में  क्रांति  का   उद्घोष   करना कृष्ण का नया क्रांति पथ था |आत्मा परमात्मा के बीच कोई भेद नही है इस तथ्य को समझाने के लिए चीर हरण लीला का प्रतीक प्रस्तुत किया || गोपियाँ प्राय: शुद्ध जीवात्माएँ है | उनके ऊपर का अन्तिम वासना रूपी वस्त्र को हटाना ही चीर हरण था | शांति के सारे उपाय करने के बाद राजतंत्र का गर्व को खण्डित करने के लिए कंस का वध किया और जरासंध का वध कराया |पूरा महाभारत का युद्ध मूल्य प्रतिषठापना के लिए ही हुआ था जिसके महानायक और सारथी कृष्ण ही थे शांति के सारे उपाय करने के बाद जब दुर्योधन ने "सूच्यग्रम् नैव  दास्यामि विना युद्धेनकेशव " कहा तब कृष्ण ने महायुद्ध का शंखनाद किया और अर्जुन से कहा युद्धस्व विगतज्वर:-- अब बिना अन्तर्द्वन्द के युद्ध करना है कृष्ण धर्म के सारथी बने | कृष्ण स्वस्थ राजनीतिज्ञ स्वस्थ  कूटनीतिज्ञ  बनकर मूल्य संचेतना के प्रतीक बने | सामाजिक मूल्यों की रक्षा के लिए अंधविश्वास रूढियों का खंडन किया पर्यावरण शुद्धि के लिए कालिये नाग रुपी प्रदूषण को खत्म किया उनकी सारी रासलीला कुछ प्रतीकों के साथ सांस्कृतिक चेतना की प्रतीक थी |

गुरुवार, 14 अगस्त 2014

sundar h bharat mera

सुंदर है भारत मेरा -- ओ मेरे भारत के माथे सुंदर मुकुट विराजे |
                                    इसको नमन करें||
भारत माँ  का मुख रे उज्ज्वल चंदा - सा दमकावै |
झलमल  हीरों की  माला सा  गंगाजल   झलकावै ||
                रे भइया इसको नमन करें ||
 छ:ऋतुएं अप्सरियों- सी सतरंगी  साड़ी  पहने |
 नर्त्तन करतीं आतीं पहने नव फूलों के गहने ||
                रे--------------------------||
 फूलों की घाटियॉ खगों के कलरव से भर जातीं |
 गाते मेघ मल्हार ; कोकिला पंचम स्वर में गाती ||
              रे------------------------------||
 गेहूँ की बालियॉ ज्वार मक्का के दाने झरते ||
 खेतों में रंगों -गंधों के वैभव   सपने भरते ||
              रे-------------------------||
 पर्वों की धरती यह -होली फाग सुनाती आवै |
 दीपो की माला से अम्बर  को ललचाती जावै ||
            रे----------------------------- ||    राष्ट्र को समर्पित

बुधवार, 13 अगस्त 2014

geet

 आज फिर गीत गुन गुनाना है-------------------------------
    आज फिर गीत गुन गुनाना है
        राग फिर प्यार का सुनाना है
     बाँध  ममता  की डोर में फिर से-
     आज बिछडो का दिल  मिलाना है ||
           कभी सतलुज  की धार रूठी  हो-
           गर्म हो ब्रहमपुत्र का जल भी ||
           आज  गंगा के उजले  अँचल में-
           सारी नदियों का जल  बहना है ||
       ह्म सभी मोती एक लड के है
       हमको  लड़ के यहां न रह्ना है
       तार सप्तक बजेंगे वीणा में-
       स्वर तो फिर एक झन झनाना है |
           वत्सला मेरी भारती माता -
           इसके अंचल का कर्ज़ बाकी है |
           चन्दनी गंध से भरी माटी-
          इसको फिर शीश पर चढ़ाना है ||





                           
  

मंगलवार, 12 अगस्त 2014

matushree

हे मात्तु श्री |तुझको प्रणाम>> हे वन्दनीय :अभिनंद्नीय
                       हे मातुश्री ! तुझको प्रणाम ||
                             तू धरती माँ ! तू वसुधा है |
                             तेरा अ‍ॅचल है  हरा  भरा |
                             दोहन  की कला सीखनी है--
                             जिससे अमृत नित रहे झरा |
                             तेरे पय से  पोषित   होकर
                             कर सकें जगत् में धन्य नाम |
                                हम करते   है  संकल्प मात
                                एकता  बनेगी लौह  शक्ति |
                               शत-शत करोड़ कंठो के स्वर
                                बन एक करेंगे मुखर भक्ति ||
                                सन्नद्ध रहेंगे  हम  तत्पर
                               तेरी रक्षा  को    अष्टयाम ||

सोमवार, 11 अगस्त 2014

PRNAM

हे ! अभिनन्दनीय भारत तुझे प्रणाम- भारत 68वां स्वतन्त्रता  दिवस मनाने जा रहा है 15 अगस्त के प्रात: की सूर्य की पहली किरण हमारे तिरंगे का स्वागत करके कहेगी - हे ‍!  अभिनन्दनीय भारत तुझे प्रणाम | हर वर्ष की भाँति के इस बार भी लाल किले से तिरंगा  लहरा कर  भारत की स्वतंत्रता का संदेश विश्व को मिलेगा |  हम स्वतंत्र है अर्थात् अपने तंत्र के अधीन्   हमारा अपना शासन -यह भाव जन -जन तक पहुँचाने की आवश्यकता है |अब वो समय आगया है |भारत का जन मानस "स्व" "तंत्र" के सही अर्थों को  जाने | 68 वर्षो में भी  अभी  तक   यह   हमें लगता क्यों नहीं कि हम स्वतन्त्र  है ? इसका  कारण स्पष्ट  है कि  दलित गलित  मानसिकता- --  ;लार्ड मेंकाले का प्रभाव जो  हमारे  मानस पर छाया हुआ है | हम अपनी संस्कृति  ; अपनी भाषा ; परम्पराओ ; आदर्शों से दूर् होते जारहे है |इस बार सत्ता परिवर्तन हुआ है | कलम  नई सरकार  से ऐसी आशा करती है कि देश को  लार्ड मेंकाले की नीली छाया से बचाये | आज सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति संचेतना आवश्यक है | हर क्षेत्र का आधार नैतिक चक्र हो |भौतिक -आध्यात्मिक मूल्यों का  समन्वय हो राज्य की नीति शुद्ध और पारदर्शी हो | जन कल्याण की भावना की गंगा से ओत प्रोत हो |आर्थिक उन्नति के लिए भौतिक संसाधन और मानवीय संसाधनों की प्रगति आवश्यक है आध्यात्मिकता के गर्भ से उत्त्पन्न विवेक के सूर्य की भी आवश्यक है | मानस ऐसे ही भारत का अभिनंदन करना चाहता है   -                                           चेतना नयी हो; नये पथ का वरण
                                                     आगे ही आगे हों बढ़ते चरण |
                                                     अंधता के कूप में पड़े सड़े  गले
                                                     जन -मन में सतत ज्योति का झरण |
                                                      मानव -संकल्पों के मुक्ति -दंड से-
                                                      जड़ता के भूत को भगाते रहो तुम |   राष्ट्र को समर्पित भाव
                                                 

रविवार, 10 अगस्त 2014

asmita

68वां स्वतन्त्रता दिवस -इस बार  भारत 68वां स्वतन्त्रता दिवस मनाने जारहा है | दस वर्षो बाद कुछ नया दिखेगा | लाल किले से प्रधान मंत्री मोदी ध्वजा रोहण करेगें || लगता  है इस बार भारतीय संस्कृति का तिरंगा लहरायेगा | तिरंगा  भारत की  अस्मिता का प्रतीक है | इसमे केसरिया  रंग तेजस्विता का प्रतीक है | हरा रंग हरियाली का प्रतीक है  ; खुशहाली का प्रतीक है श्वेत रंग शान्ति का प्रतीक है |चक्र प्रगति का प्रतीक है || इस बार लाल किले से इस बात का मूल्यांकन होगा कि 68वर्षो में हमने कितनी  प्रगति की है ? भविष्य के लिए कुछ संकल्प होंगे यह आवश्यक भी है क्योकि भारत को नये संकल्पों के वितान की आवश्यकता है  | आशा हैैं कि एक बार फिर  लाल किले से विवेकानंद की स्वर लहरी गूँजेगी | भारत और भारतीय संस्कृति  का उज्ज्वलतम रुप विश्व के मानचित्र पर अंकित होगा |दस वर्षो के बाद भारत एक बार फिर अँगड़ाई ले रहा है || जनमानस  को नयी सरकार से बहुत उम्मीद है | आज आम आदमी यह चाहता है कि उसे यह लगे कि वह  ऐसे वास्तविक रूप से स्वतंत्र है  || हमने राजनैतिक स्वतन्त्रता तो प्राप्त कर ली  लेकिन  मानसिक दासता से   अभी स्वतन्त्र नही है |  माननीय प्रधानमंत्री से ऐसी आशा है कि वह् भारत को इस दासता से  मुक्ति दिलायेंगे || भारत -स्वाभिमान का यह तिरंगा लहर -लहर कर  कहे कि मेरी अपनी संस्कृति है  "अपनी भाषा है  इसके साथ कोई समझौता नही | तिरंगा हमारा मान है शान है वैख्ररी का भाव कुछ इसी प्रकार से है यह भाव हमारी  प्रेरणा  है  - 'चेतना से मन जगमगाते रहो तुम              
                भारती का कण -कण जगाते रहो तुम ||
 भावो  की लहरे  उठती रहेगी  जो राष्ट्र  को समर्पित रहेंगी |

शनिवार, 9 अगस्त 2014

9a 1944

वन्दन का यह दीप समर्पित करते तुमको | श्रद्धा का यह गीत समर्पित करते तुमको ||
                            यह वन्दन 9अगस्त1942 के भारत छोडो आन्दोलन में शहीद हु़ए वीरों के लिए है || ऐसे नीव के प्रस्तरो  के लिए वैख्ररी का यह भाव  समर्पित है|    
                               बहिनें रोली तिलक लगाती :
                               दो आँखें  आँसू  बरसाती |
                               माँ अपने कम्पित हाथों से 
                               निज दुलार को पथ दिखलाती 
                               मातृभूमि के अ‍ॅचल में   चिर-
                               निद्रा में  सोता   बलिदानी |  
                                     जब तक अमर ज्योति जगती है |
                                     तब तक गीत  लिखे   जायेंगे || 
                             

शुक्रवार, 8 अगस्त 2014

bharti

भारती माँ भारती  माँ भारती ;माँ भारती  | 
              हम उठाएँ सूर्य मस्तक  पर-हमें तेरी शपथ है |
              हम उठाएँ हिम-शिखर भुज-दण्ड में -तेरी शपथ है ||
          हम करें भ्रूभंग नभ हो त्रस्त ; गर्जन शांत  करले |
          हम बढ़े तो सिर झुका - सागर विनय का मौन धर ले |
  फूल तारे  अहर्निश तेरी उतारें आरती |
  भारती माँ भारती माँ भारती ;माँ भारती ||
              चेतना नूतन भरे .संकल्प से मन दीप्त कर ले | 
              वज्र-  सा सीना करें  हम धमनियों में लौह  भर ले | 
              सतत आगे बढें .शांति-विकास का हो लक्ष्य नूतन | 
               एक हो सारी धरा सहभागिता  का करें वन्दन ||  
    विजयश्री मणिमाल . मोती   हीरको को वारती |
    भारती .माँ : भारती :माँ भारती  :  माँ भारती                   राष्ट्र  को समर्पित | 68वे स्वतंत्रता दिवस का अभिनंदन                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                               
भारती माँ भारती  माँ भारती ;माँ भारती  |
              हम उठाएँ सूर्य मस्तक  पर-हमें तेरी शपथ है |
              हम उठाएँ हिम-शिखर भुज-दण्ड में -तेरी शपथ है ||
          हम करें भ्रूभंग नभ हो त्रस्त ; गर्जन शांत  करले |
          हम बढ़े तो सिर झुका - सागर विनय का मौन धर ले |
  फूल तारे  अहर्निश तेरी उतारें आरती |
  भारती माँ भारती माँ भारती ;माँ भारती ||
              चेतना नूतन भरे .संकल्प से मन दीप्त कर ले |
              वज्र-  सा सीना करें  हम धमनियों में लौह  भर ले |
              सतत आगे बढें .शांति-विकास का हो लक्ष्य नूतन |
               एक हो सारी धरा सहभागिता  का करें वन्दन ||
    विजयश्री मणिमाल . मोती   हीरको को वारती |
    भारती .माँ : भारती :माँ भारती  :  माँ भारती                   राष्ट्र  को समर्पित | 68वे स्वतंत्रता दिवस का अभिनंदन                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                               

गुरुवार, 7 अगस्त 2014

   अनुच्छेद 1   -- हिन्द युवा धनो |                          अनुच्छेद-2 -तुम पियो गरल वही अमृत बने विकास का |
               ज्योति पुत्र साधकों !                                   तुम हँसो रुदन बने - प्रफुल्ल गीत हास का ||
                                                                                  चेतना नयी भरो                              
       - भारती  वसुन्धरा को उज्ज्वल विहान दो                    तामसी निशा हरो |
            तुम  चलो ललाट पर  दहकता  ज्वाल खण्ड हो              जन-जन  सह भाग ऐक्य के वितान तानदो 
              श्वास की झकोर क्षिप्र वेग मे प्रचण्ड  हो |
                   तुम जगो धरा जगे |                             अनुच्छेद -3-तुम बढ़ो तो सिर झुका पहाड़ राह् छोड़ दें |  
                 तुम चढो गगन कॅपे                                     भीत हो समुद्र की हिलोल शोर छोड़ दें ||
                दीप्ति के विराट शिखर को नवल उठान दो                    वक्ष वज्र सा करो
                                                                                                लौह शिरा में भरो |
                                                               शांति के कपोत  नभ भरें अभय महान् दो |
                                                              भारती वसुन्धरा को उज्ज्वल विहान दो

 

मंगलवार, 5 अगस्त 2014

लो यह  दिन भी बीता  शाम ----3 -ममता  की डोर - बंधे पक्षी घर आये |
                          दूर आरती-वंदन के  स्वर   लहाराये || 
                          हो गया अधीर कर्मसंकुल मन जग का 
                          बहुरंगी सपनों के   मदनजाल   छाये||
                          विकलप्राण विरही की पीड़ा के घाव खुले |
                          संध्या की  मदिर दृष्टि वाम  हो  गयी
                                  लो यह-------------------------वैख्ररी से संकलित

सोमवार, 4 अगस्त 2014

sham

लो यह दिन भी बीता-------2 किरणों के पांखी ने सोनेके पंख धरे |
                       इंद्र्जाल फैला वह गया जाने किस मग रे |
                       रक्तिम -सी काई मे सूरज  के पग फिसले--|
                       पश्चिम के सागर में डूब गया तल गहरे ||
                       किरणों के जाल हुए व्यर्थ खोज लाने में |
                       हर कोशिश दिन की  नाकाम हो  गयी ||
                  लो यह-----------------------------------------------

                                 

रविवार, 3 अगस्त 2014

mitrta

मित्रता एक सात्विक भाव है जो मानस सागर की गहराइयों से उठकर  मस्तिष्क के आकाश का स्पर्श करता है आज ऐसा भाव कम देखने को मिलता है आज मित्रता का आधार स्वार्थ है या वासना | राम ने वनवास के समय पशु पक्षी  नर वानर सब उनके थे |मित्रता के इसी भाव से कृष्ण अर्जुन के सारथी  बने  सुदामा के चरण अश्रु जल से धोये  मित्र भाव ने चावल के दाने पर सारा सुख दे दिया  द्रौपदी को सखी  माना और उसकी लाज बचाई | मित्र की परख कष्ट की कसौटी पर ही होती है विश्व मित्रता दिवस पर यही कामना है कि सारी वसुधा एक परिवार बन जाए | सभी मित्रों को  नमन 

शनिवार, 2 अगस्त 2014

jyotit

सूर्य की पहली किरण को नमस्कार  सबके लिए आज का दिन शुभ हो |
  सरस्वती  वंदन ----मंगलमयि ! वर् दो
                      सत्त्व पूर्ण मधुमय किरणो से भरे रंगे स्वर दो |
                     टूटे ध्वांत जटिल  मायाक्रम ;
                     छँटे निराशाजन्यमलिन भ्रम |
                      स्नेहदीप्त उल्लास -मधुरिमा से जीवन भर दो |
                       यौवन-उष्मा मुकुलित हों तन |
                       तव उदार ममता पूरित मन |
                     बुद्धि धवल अद्ध्यात्म ज्योति से ज्योतित कर दो |
               

sham

लो यह दिन भी बीता  शाम हो गयी
सूरज का रथ आया थक संध्या  के द्वारे |
 उन्मद हो द्वारिक ने पाटल के दल वारे ||                    
आगम  से प्रियतम के मुग्धा सी सन्ध्या के --
 ठगे  ठगे नैन  जैसे  रह   गये  उघारे ||
 लज्जा की लाली-सी दौड़ गयी दूर् तलक ;
प्रीति खुली  मुग्धा   बदनाम हो   गयी |
लो यह दिन भी बीता शाम हो गयी ||
                             पूना की शाम कुछ ऐसी ही है

शुक्रवार, 1 अगस्त 2014

aabhas

प्रकृति गोद भरती फूलों से-
पर्वत सजते हिम -किरीट से |
नदियॉ प्रिय-आलिंगन करतीं -
कोकिल चातक चुहिल किलकते |
रजनी के अँचल में रजनी--
गन्धा -से  तारक  मुस्काते |
     जब तक झरने झरते  जाते          गीत की सरगम के साथ  शुभ सुबह
     तब तक गीत लिखे जायेगे

गुरुवार, 31 जुलाई 2014

aabhas

धरती की माटी  चंदन है -
   इसको माथे -शीश चढ़ालो |
यह वृंदावन भूमि अयोध्या ;
   यह काशी कैलाश धाम लो ||
  ये मेले त्यौहार दिवाली--
होली गंगा के नहान ये |
 जब तक मधुर रंग धरती के-
 तब तक गीत लिखे जायेंगे || पूना की रिमझिम में संस्कृति  की झलक है
      

बुधवार, 30 जुलाई 2014

aabhas


 प्रकृति में संगीत है लय है | रिमझिम रिमझिम जैसा वाद्य है | इसी की प्रेरणा से कवि की लेखनी से अक्षर रंग लेते है  और मानस में राग जगाते  है और फिर अलौकिक शक्ति का  आभास  होता है-- प्रिय की छवि आनन-आनन में
                                          द्वार द्वार  में मन्दिर अनुपम |
                                           राग राग में प्रिय  की  सुमिरन
                                           गीत   गीत में  उसका  वंदन |
                                                       साँसो में प्रिय की पुकार के---
                                                       क्रन्दन का    बोझिलापन है |
                                                       जब तक प्रिय का विरह चिरन्तन-
                                                        तब तक गीत  लिखे   जायेंगे
                                    प्रात: वंदन के साथ  ------------
 


     








                                                     
                                                   








                                                     
                                                   

मंगलवार, 29 जुलाई 2014

pyas

 मन में ऐसी प्यास भरो रे----जैसी प्यास पपीहे के प्राणों में :
                      तड़पन भर जाती है ----------|
                      प्रिय की  सुधा - वृष्टि मे रच-पच
                      गीत  मधुर  पी-पी   जाती   है |
                      ऐसी प्यास कि जिसको गंगा जल  -
                        न तॄप्ति  का कण दे पाता |
                      ऐसी प्यास कि जिससे टूक -टूक |
                             हो जाये जग से नाता
                                  मीठी स्वप्निल अगन  जगाए
                                  मन में ----------------------- परम् पिता परमात्मा का वंदन शुभ सुबह
                      

गुरुवार, 10 जुलाई 2014

bujat

मोदी सरकार के द्वारा प्रस्तुत बजट अच्छा है | इसमे विकास की नई आशा है| प्रधान मंत्री ने अपने आशा वादी दर्शन को इस बजट का आधार बनाया है |  बजट में रक्षा :   चिकित्सा  सुविधा ; स्मार्ट शहर कृषि  एवम  वरिष्ठ  नगरिको का ध्यान रखते हुए  बहुत बड़ी  राशि का  प्रावधान रखना  स्तुत्य है  |  महिला सुरक्षा पर लगभग 150 हजार करोड़ और बेटी बचाओ बेटी पढाओ पर  लगभग 100 हजार करोड़  का प्रावधान श्लाघनीय है | स्मार्ट सिटी के साथ  सस्ते घर की योजना भी अच्छी है नमामि गंगे योजना पर दो हजार करोड़ की योजना अत्यन्त   शुभ है| इसके साथ ही नदियों को जोड़ने की योजना श्रेयस्कर है इससे कई समस्याओं का हल होगा |
                    चिकित्सा सम्बन्धी सुविधा दी जाने के सन्दर्भ में मेदंता  के मुख्य प्रबन्धक  डॉक्टर त्रेहन ने प्रशंसा की है | रोज़मर्रा की वस्तुयें  सस्ती करने की योजना उचित है कोस्मेटिक का महंगा होना कोई अर्थ  नही रखता है  | गाँवों  का विकास  बिजली  पानी की सुविधा  देने की योजना  भारत माता को नमन है क्योकि  भारत माता ग्राम वासिनी है | बजट  में  हर पहलू का स्पर्श किया है | विकास के कई द्वार खोले है सारे दरवाजो से देश विकास  का विकास हो इसी संकल्प  को लेकर प्रधान मंत्री की टीम आगे बढ़ेगी |टेक्निकल शिक्षा पर बल दिया है | देश के सभी बच्चों के  लिए  शौचालय पेय जाल सुविधा देने का प्रावधान उत्तम  है| सर्वं शिक्षा अभियान पर 28635 करोड़ रुपये  का प्रावधान मंगलकारी सोच है |  स्वच्छ भारत स्वच्छ मानवीय संसाधन  आज की अपेक्षा है |कुल मिलाकर बजट अच्छा है सरकार को बधाई 

शुक्रवार, 4 जुलाई 2014


sanchetna

राजनीति में मूल्य संचेतना >राजनीति एक प्रकार से राज्य नीति है  जो देश की  व्यवस्था को चलाने  के लिए  पतवार का काम   करती  है लेकिन अब राजनीति एक लक्षणा बन गयी है |परस्पर  विवाद तो राजनीति है परस्पर मतभेद  राजनीति है कहने का अभिप्राय  है कि आरोप प्रत्यारोप  आलोचना प्रत्यालोचना         राजनीति है | इसी रंग में रंगी है राजनीति  किन्तु इससे राजनीति [राज्य की नीति] का  वास्तविक स्वरूप धूमिल हो रहा है स्वच्छ राजनीति जो देश के संचालन का मापदंड है |उसको मूल्यों का आधार चाहिए | मूल्य नैतिक मापदंड है जो विवेक का सूर्य  प्रकाशित करते   है जो ह्मारे जीवन को संयमित करता है मूल्य एक प्रकार का ऋत् चक्र  है जिसका पालन राम ने भी किया था | राम ने विराट नैतिक चक्र की रक्षा के लिए राक्षसो का वध किया बालि  का वध किया |रावण का वध किया कृष्ण ने भी जब अधर्म अविवेक को राज्य की नीति पर हावी  होते देखा तो अर्जुन को धर्म की रक्षार्थ  युद्ध की प्रेरणा दी | आज भारतीय व्योम   पर अनेकनेक समस्याएॅ    है  इसका कारण यही है कि विराट नैतिक चक्र की आवेह्लना  हो रही है  स्वार्थ के  लिए प्रकृति से अनाचार  सामाजिक मर्यादाओ की हत्या : मै ही सुखी रहूँ  बस |ऐसी धारणा ही राज्य की नीति को विद्रुप करती है                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                               
> राजनीति में मूल्य संचेतना >राजनीति एक प्रकार से राज्य नीति है जो देश की व्यवस्था को चलाने के लिए पतवार का कम करती है लेकिन अब राजनीति एक लक्षणा बन गयी है |परस्पर विवाद तो राजनीति है परस्पर मतभेद तो राजनीति है कहने का अभिप्राय है कि व्यंग आरोप प्रत्यारोप राजनीति है | इसी रंग में रंगी है राजनीति किन्तु इससे राजनीति [राज्य की नीति] का वास्तविक स्वरूप धूमिल हो रहा है स्वच्छ राजनीति जो देश के संचालन का मापदंड है |उसको मूल्यों का आधार चाहिए | मूल्य नैतिक मापदंड है जो विवेक का सूर्य प्रकाशित करते है जो ह्मारे जीवन को संयमित करता है मूल्य एक प्रकार का ऋत् चक्र है जिसका पालन राम ने भी किया था | राम ने विराट नैतिक चक्र की रक्षा के लिए राक्षसो का वध किया बाली का वध किया |रावण का वध किया कृष्ण ने भी जब अधर्म अविवेक को राज्य की नीति पर हावी होते देखा तो अर्जुन को धर्म की रक्षार्थ युद्ध की प्रेरणा दी | आज भारतीय व्योम पर अनेकनेक समस्याए ही इसका कारण यही है कि विराट नैतिक चक्र की आवेह्लना हो रही है स्वार्थ के लिए प्रकृति से अनाचार सामाजिक मर्यादाओ की हत्या : मै ही सुखी रहू बस |ऐसी धारणा ही राज्य की नीति को विद्रुप करती है >

शनिवार, 28 जून 2014

bhav

शिक्षा कैसी हो ? भारत स्वतंत्र हुआ है | तब से क्षय रोग से पीड़ित है इलाज तो हुआ लेकिन इलाज विदेशी ढंग से किया गया जो हमारी राष्ट्रीय आंकाक्षाओ के विपरीत था सांस्कृतिक मूल्य की सुगंध उसमें नही रही | शिक्षा क्या है ? शिक्षा बालक की अंतर्निहित शक्तियो को मुखर करती है उसे राष्ट्रीय सांस्कृतिक आकांक्षाओं के अनुरूप बनाती है किन्तु हम यह क्यों नही समझ पारहे है कि मैकाले ने हमारी शिक्षा के आदर्शो को प्रस्तुत नही किया है | उसने तो मेरुदंड रहित लिपिको को बनाने के लिए शिक्षा प्रारंभ की थी हमने उसे वरदान समझ लिया और स्वतंत्रता 67 वर्षो के बाद भी हमारी शिक्षा का मूल वही है | पूरे देश में शिक्षा का संरचनात्मक ढाँचाएक होना चाहिए | प्रादेशिक अथवा स्थानीय आवश्यकतानुसार थोड़ी बहुत भिन्नता हो | सभी जगह तीन वर्ष का पाठ्यक्रम होना चाहिए चाहे वो केन्द्र हो या राज्य |विश्वविद्यालय स्वायत्त हो स्व्छंद नही | शिक्षा की संरचना राष्ट्रीय आंकाक्षाओ के अनुरूप होना चाहिए उच्च शिक्षा में विशिष्ट विषयों {साहित्य दर्शन कला विज्ञान आदि} का ज्ञान पूरा होना चाहिये | छात्र इनमें से जिस भी विषय का चयन करते है उसका पूरा ज्ञान उसे मिलना चाहिए |एम ए करके भी विषय का पूरा ज्ञान नही होता है | पीएच डी करके भी शून्य ही है | हर स्तर की शिक्षा में गुणात्मक सुधार की जरूरत संख्यात्मक व्रृद्धि से शिक्षा लक्ष्य तक शिक्षा कैसी हो ? भारत स्वतंत्र हुआ है | तब से क्षय रोग से पीड़ित है इलाज तो हुआ लेकिन इलाज विदेशी ढंग से किया गया जो हमारी राष्ट्रीय आंकाक्षाओ के विपरीत था सांस्कृतिक मूल्य की सुगंध उसमें नही रही | शिक्षा क्या है ? शिक्षा बालक की अंतर्निहित शक्तियो को मुखर करती है उसे राष्ट्रीय सांस्कृतिक आकांक्षाओं के अनुरूप बनाती है किन्तु हम यह क्यों नही समझ पारहे है कि मैकाले ने हमारी शिक्षा के आदर्शो को प्रस्तुत नही किया है | उसने तो मेरुदंड रहित लिपिको को बनाने के लिए शिक्षा प्रारंभ की थी हमने उसे वरदान समझ लिया और स्वतंत्रता 67 वर्षो के बाद भी हमारी शिक्षा का मूल वही है | पूरे देश में शिक्षा का संरचनात्मक ढाँचाएक होना चाहिए | प्रादेशिक अथवा स्थानीय आवश्यकतानुसार थोड़ी बहुत भिन्नता हो | सभी जगह तीन वर्ष का पाठ्यक्रम होना चाहिए चाहे वो केन्द्र हो या राज्य |विश्वविद्यालय स्वायत्त हो स्व्छंद नही | शिक्षा की संरचना राष्ट्रीय आंकाक्षाओ के अनुरूप होना चाहिए उच्च शिक्षा में विशिष्ट विषयों {साहित्य दर्शन कला विज्ञान आदि} का ज्ञान पूरा होना चाहिये | छात्र इनमें से जिस भी विषय का चयन करते है उसका पूरा ज्ञान उसे मिलना चाहिए |एम ए करके भी विषय का पूरा ज्ञान नही होता है | पीएच डी करके भी शून्य ही है | हर स्तर की शिक्षा में गुणात्मक सुधार की जरूरत संख्यात्मक व्रृद्धि से शिक्षा लक्ष्य तक नही पहुँच पाती | ना रोजगार ना ज्ञान है | दूसरी तरफ एक ऐसा वर्ग है जो विदेशी शिक्षा का पक्षधर है छात्र यहाँ तकनीकी शिक्षा लेकर विदेश में जा कर बस जाते है प्रतिभा पलायन हो रहा है | प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा के आकाश में समस्याओं के बादल है साथ में मानसिक दासता की धूल की परत हमारे मस्तिष्क से गयी नही है| प्रधान मंत्री जी से बहुत आशा है और विश्वास भी | यह भाव एक शिक्षक का है जिसने भीतर से अनुभव किया है है

मंगलवार, 24 जून 2014

bhagvaan

Vभगवान किसे माने ना माने आज यह प्रश्न  उठा है वैसे तो प्रश्न अत्यन्त व्यक्तिगत है और मनोवैज्ञानिक है जब कोई व्यक्ति बहुत परेशानी में होता है अगर उस समय किसी भी माध्यम से हल हो जाती है तो वो माध्यम या व्यक्ति भगवान हो जाता है कोई व्यक्ति भगवान क्यों होता है जो मानवता से प्रेम करता है उसमें ईश्वरत्व स्वत: प्रस्फुटित होता है ऐसे हमारे यहां कई संत हुए है जिन्हें भगवान कहा गया है यह आस्था का विषय है लेकिन कभी कभी आस्था उन्माद में बदल जाती है तो ग़लत है कभी भी  किसी संत ने अपनी पूजा के लिए नहीं कहा वो तो दिव्य प्रकाश ज्ञान करवाता है  जिससे मानवता का कल्याण हो | राम ने मनुज रुप धारण किया लोक-कल्याण  के लिए | समाज में व्यवस्था बनी रहे और ऋत-चक्र को  ठीक  करने के  लिए   राम ने स्वस्थ मर्यादाओं का पालन किया था कृष्ण ने भी मनुज रुप धारण करके उन परंपराओं  का खण्डन किया जो समाज की उन्नति में बाधक बन रही थी वे भी ईश्वर है | असली भगवान को किसने देखा है इंसान में भगवान है इंसान में ही शैतान है जो हमें सही मार्ग दिखाता है वह भगवान है श्रद्धा  और आस्था को प्रश्नों के घेरे में क्यों रखे ?कण कण में ईश्वर है सारी सृष्टि परमात्मा मय है |मै भी  परमात्मा हूँ |तुम भी परमात्मा  हो | सारी सृष्टि परमात्मा मय है  फिर भेद कैसा | कबीर ने कहा है  
                       लाली मेरे लाल की जित देखूँ तित लाल
                      लाली देखन में भी हो गई लाल

रविवार, 22 जून 2014

aasu ashru

आँसू  - में हिन्दी हूँ वर्तमान सरकार द्वारा मुझे सम्मान दिया गया है | मेरे लिए यह गर्व की बात है] यह सम्मान तो मुझे बहुत पहले मिल जाना चाहिए था में तो असंख्य लोगो के मानस  सिंहासन पर राज करती हूँ मैने हर भाषा को अपने आँचल की छाया दी है जब भारत परतंत्र था  तो अँगरेजों ने भारत में अपनी भाषा को इसलिए आरम्भ किया था जिससे वह् पढ़े लिखे भारतीय तैयार  कर सके और अपनी भाषा के माध्यम से वह् हमारी संस्कृति को घायल कर सके और बहुत हद तक उसमें वह् सफल  भी रहे मेरी आँखों मे उस समय भी आँसू थे किन्तु  में शांत रही |मैंने अँगरेजी के अस्तित्व को अपनी छोटी बहिन मानकर स्वीकार कर लिया  वह् एक सम्पर्क भाषा के रुप में रहेगी लेकिन वो तो भारतीयों की मानसिकता पर इतनी छा गयी कि लगता है कि जैसे अँगरेजी के बिना  उनका काम ही नही चलेगा यह सोच मानसिक दासता की प्रतीक है मेरा सम्मान  राष्ट्र की अस्मिता से जुड़ा है में राष्ट्र का गौरव हूँ राष्ट्र की वाणी हूँ फिर भी जब जब मुझे राजभाषा का सम्मान देने की बात होती है तो विरोध होता है उस समय मेरी आँखें आँसूओ से भर जाती है जैसे माँ अपनी संतान के विरोध पर दु:खी होती है वो ही दु:ख  मुझे  भी  होता है |मेरी विनती है कि मुझे राजनीति से अलग रखा जाये और राष्ट्र के सम्मान के साथ जोड़ा जाए |मेरे साथ प्रादेशिक भाषाएँ पल्लवित हो तब मुझे बहुत खुशी होगी अपने संस्कृति अपनी भाषा पर तो सबको गर्व होना चाहिए | जो मेरे आँखों के आँसू पौछेगा में समझूँगी कि उसने भारत माँ को सम्मान दिया  है भारत का पूर्व भी मेरा है पश्चिम भी मेरा है उत्तर भी मेरा  है द्क्षिण भी मेरा है सब एक दूसरे का आदर करे

शनिवार, 14 जून 2014


     as ha     asfh     

desh nahi jhukane doogaa

परम् आदरणीय प्रधानमंत्री  आपने कार्यकाल के थोड़े समय में जिस  तरह की सक्रियता दिखायी है वस्तुत; सराहनीय है कम पानी में किस प्रकार की फसल हो सकती है यह सोच अच्छी है | समय रहते हुए भविष्य की योजना पर विचार करना ही चाहिए | हर क्षेत्र में आप के द्वारा दी-  जाने वाली प्रेरणा व्यक्ति की कार्य क्षमता को तो बढ़ाती है साथ में यह पुरस्कार भी है आज आपको आईएनएस विक्रमादित्य को देश को समर्पित करते  देखा बहुत अच्छा लगा देश के जवानों का कितना मनोबल बढ़ा होगा | सैन्य शक्ति मज़बूत होनी चाहिए जिससे हमारे विश्वशांति के संदेश को  कोई  कायरता ना समझे  आपकी ही कविता के बोल -"में देश नही झुकने दूँगा ----- अच्छे लगे थे |इसी प्रकार  का भाव मेरे मन में भी है जो आपकी सेवा में प्रस्तुत है  -------------------------
                                             पुत्र तेरे हम सहोदर साथ
                                            गंध मिट्टी लगी है माथ
                                            एक उपवन के खिले है फूल-
                                            एक होकर ही उठेंगे  हाथ
                                             लौह बन कर हम करेंगे शत्रु के
                                            चुनौती के स्वरों का प्रतिकार
आपकी कार्यशैली ;निर्णय  लेने की  क्षमता अद्भुत है |                         आशा भटनागर श्री गंगानगर राजस्थान
  

गुरुवार, 12 जून 2014

gourav

परम् आदरणीय प्रधानमंत्री आपके द्वारा दिए गए पाँच मंत्र वस्तुत; यह मंत्र पंच शील है स्वस्थ राजनीति में ऐसा होना उचित है
 राष्ट्र  भाषा का सम्मान होते देख् कर मुझे बहुत अच्छा लग रहा है  राष्ट्र का गौरव  अपनी भाषा मेँ ही है  |  हमे  मानसिक दासता  से मुक्त होना ही  चाहिए | सबका सम्मान करते हुए अपनी संस्कृति अपनी  भाषा का सम्मान  यह भारतीयता  के प्रतीक है लोकसभा में आपका भाषण अत्यंत सराहनीय रहा उसमें ओज ; विनम्रता आशावादिता के साथ शिव संकल्प का अदभुत समन्वय था |ग्रामीण क्षेत्र मे पीड़ित शोषित दलित वंचित को विकास की रोशनी देनेका प्रयास अच्छा है |श्रममेव जयते विकास की आधारशिला  है दूरस्थ शिक्षा के द्वारा शिक्षा के प्रचार प्रसार को हर गाँव तक पहुँचाने के कार्य में त्वरित गति की आवश्यक्ता है |श्रम की महत्ता के लिए कवि नीरज की  काव्यपंक्तियांं है-श्रम के जल से ही राह सदा सिचती है  गति की मशाल आँधी में ही सजती है |
    विकास को जन आंदोलन के रुप में प्रस्तुत करना उचित है |अध्यापक को महत्त्व देना उसकी गरिमा को समझना शायद प्रथम बार हुआ है व्यक्तिगत रुप से अच्छा लगा मेरा परिवार शिक्षा से जुड़ा है शिक्षकत्व मेरा गौरव है |आज देश में नारी मर्यादा प्रश्नों के घेरे में है  नारी सम्मान को प्राथमिकता देनी चाहिए जन प्रतिनिधि शासक नही रखवाले है इस कथन में जन मानस की गरिमा है
आपका हर शब्द श्रेष्ठ भारत की ओर संकेत करता है      आशा भटनागर श्री गंगानगर  राजस्थान

सोमवार, 9 जून 2014

pm

आज आदरणीय प्रधानमंत्री  के प्रेरक वचन सुने  मन को छुए | वस्तुत; स्किल स्केल स्पीड तीनों की विकास में बहुत आवश्यकता है भारत में प्राकृतिक संसाधनो की कमी नही है अगर कमी है तो ईमानदारी से पोषण और दोहन की | इसके लिए सशक्त मानवीय संसाधन की आवश्यकता है | भारत का ग्रामीण अंचल प्रकाश की प्रतीक्षा मे है अभी तक समाज की अंतिम सोपान तक विकास की किरण नही पहुँची है |आज भी गरीबी पाँव पसार कर बैठी है | ग्रामीण अँचल में अभी भी ऐसे है जो दलित गलित  मानसिकता में जी रहे है वह उससे निकलना नही चाहते |सबसे पहली आवश्यकता इस अँचल को मानसिक रुग्णता से ऊपर उठाना है |असली भारत तो गाँवों में बसता है| विकास के चरण यही से शुरू होना चाहिए  स्किल अनुभव की आधार भूमि पर तैयार होती है जो ज्ञात है जो अनुभव है उसका लाभ उठाते  हुए  नये विकास के चरण स्थापित  हो  जिस स्किल को अपनाया जा रहा है उसका मापदंड भी आवश्यक है वही से स्पीड बनती है तीनों लक्ष्य बहुत सुंदर है युवा ऊर्जा का पूरा सार्थक उपयोग करना उचित है |आपकी विचार धारा में आशा की किरण है | आपके विचारों में विज्ञान और  अध्यात्म  का समन्वय भारत को नया रुप देगा  | भारतीयता को चमक मिलेगी | सुंदर स्वस्थ स्वच्छ सुशासन वाला भारत होगा

शनिवार, 7 जून 2014

priyavaran

पर्यावरण दिवस - इस विषय में बहुत लिखा जा चुका है समितिया ;आयोग  रैलिया   सब कुछ ;फिर भी समस्या ज्यों की त्यों है कारण अनेक है | बढ़ती हुई जनसंख्या  अतिऔद्योगीकरण महानगरीय सभ्यता अशिक्षा अंधविश्वास आदि अनेक कारण है प्रदूषण को जन्म देने के | आज प्रदूषण हर क्षेत्र में है कहने मात्र से यह दूर् नही हो सकता ;इसके लिए आम आदमी की मानसिकता को बदलने के लिए युद्धस्तरीय  प्रयास आवश्यक है|  आज शिक्षा के हर स्तर पर पर्यावरण विषय है लेकिन वह् परीक्षा तक  सीमित है | आम आदमी की मानसिकता  को  बदलना होगा | गंगा प्रदूषण के सन्दर्भ को ले -कितना मल वो अपने सीने में दबा कर आगे बहती है क्या कोई अपनी माँ को गंदा करता है हम स्वयम्‌ तो गंगा में नहा कर पवित्र होते है  किन्तु माँ को मैला करते है | हे शिव आपकी गंगा मैली होरही है उसके सारे औषध गुण इंसानी  स्वार्थ  ने समाप्त कर दिए है  |आप   गंगा का पान करके आक धतूरे तक को हजम कर लेते थे | जल; वायु; धरा के उपकारो को पहचानो वृक्ष हमारे मित्र है ऐसे मित्र जो जहर पीते है और अमृत फल देते है | प्रकृति की गोद में जाकर बैठो  वह दुलार करेगी |  माता पृथ्वी पुत्रो अहम् पृथिव्या; यह अथर्ववेद में कहा गया है धरती माँ है इसके प्रति पोषण का भाव होना चाहिए लेकिन हम तो प्रदूषण फैला रहे है प्रकृति से बलात्कार के कारण ही प्रकृति ने अनेक बार रौद्र रुप धारण किया है केदारनाथ में पिछले वर्ष आया बर्फीला तूफान आज भी रोमांचित करता है हमे प्रकृति के संकेत को समझना चाहिए

गुरुवार, 29 मई 2014

shiksha

जब से स्मॄति ईरानी को मानवीय संसाधन विकास मंत्रालय  दिया है |  तब से उनकी योग्यता प्रश्नो के  घेरे में है शिक्षा का आयाम बहुत विस्तृत है शिक्षा की परिभाषा को लेकर अनेक विद्वानों  ने अपने मत दिए है| शिक्षा अपने विस्तृत आयाम में अज्ञान से ज्ञान की  ओर सतत चलने वाली प्रक्रिया  है  यह जीवन पर्यन्त चलती है एम ए पीएच डी करके भी  लोग ज्ञान की सतह तक नही पहुँच पाते |कबीर ने तो ढाई आखर (प्रेम) में सारी शिक्षा समाहित कर दी थी | उन्होँने तो कोई औपचारिक शिक्षा नही ली थी फिर भी उनकी विचार धारा एक दर्शन बन गई  साहित्य बन गई  क्रांति की लहर  बन गई | हिन्दी में ऐसे  अनेक साहित्यकार हुए है जिनके पास औपचारिक शिक्षा कम या नही के बराबर थी |उनके पास जीवन दृष्टि थी जन मानस को स्पर्श  करने की क्षमता थी 
शिक्षा मंत्री केपास कित्तनी डिग्री है यह महत्त्व  की बात नही है मह्त्त्व इस बात का है कि समाज के एक एक व्यक्ति तक शिक्षा का प्रकाश पहुँचे | अभी तक हम ऐसे शिक्षा को भोग रहे है जो युवाओं को पथ भ्रमित कर रही है शिक्षित बेरोजगार युवक आज  की शिक्षा की  देन है कई आयोग बने  समितिया बनी शिक्षा में सुधार हुआ भी लेकिन शिक्षा उच्च वर्ग की होकर रह गई  तकनीकी क्रांति आयी लेकिन प्रतिभा पलायन होने लगा | हमारी प्रतिभाओं का उपयोग विदेशों में हो रहा है अभी तक कितने शिक्षाविद आए कितने शिक्षा मंत्री आए -गये यह पुस्तकों में लिखे अक्षर कहते है  कि  उन्होंने शिक्षा का गिरता स्तर  कितना उठाया  है  यह किसी  झुग्गी में रहने वाले से पूछो | शिक्षा मंत्री के पास कितनी  डिग्ग्री है इससे शिक्षा का स्तर नही सुधरेगा  स्तर में सुधार सोच से होगा  शिक्षा का माध्यम  शिक्षा का भारतीयकरण  शिक्षा का रोजगार - उन्मुख होना  यह सब नयी सोच  -चिंतन  से होगा  स्मॄति जी से ऐसी आशा है  ----आशा भटनागर श्री गंगानगर      

बुधवार, 21 मई 2014

sansad

कल संसद भवन में श्री नरेंद्र मोदी जी को भाजपा और एनडीए के द्वारा बहुमत दल का नेता चुने जाने के सन्दर्भ में आयोजित कार्यक्रम  पूर्ण  अनुशासित सारगर्भित और भावुकता  पूर्ण था | जनतंत्र के मन्दिर संसद को जिस तरह नमन किया वो मंगल कारी भविष्य की ओर संकेत है | संसदजन -भावनाओंं का दर्पण है  इसको नमन करना अत्यन्त शुभ है संसद ही से विकास के सारे संकल्प पूरे होते  है संसद से ही सच्ची समता के द्वार खुलते है  संसद के प्रांगण में  ही जन  की क्षमता के दीप प्रज्वलित किए जा सकते है यहीं से मानव -ममता गंगा बह सकती है  भारत माता का मन्दिर  तो यही  है जहां सबको पवित्र भावना से जाना चाहिए 

रविवार, 18 मई 2014

vichar push

विचार पुष्प - राजनैतिक दल जनतंत्र के प्रहरी होते है | जन भावनाओं के दर्पण होते है | पिछले वर्षो में यह्  देखा जां रहा था कि जैसे कुछ राजनीतिज्ञ  जन भावनाओं के साथ खेल रहे है | जनता जैसे उनकी मुठ्ठी में हो | जन मानस  बार बार पूछ रहा था कि स्वराज्य कहां है | उसके चारों तरफ  जातिवाद का एक बड़ा परदा खीँच गया था लेकिन इस बार बौद्धिक वर्ग कोयल की तरह अमराइयों में नही बैठा अपितु वह् स्वयम्‌ भी सचेत हुआ और अन्यों को भी सचेत किया | इस वर्ग ने दो बार लोकतंत्र को घायल होते देखा था | इसी वर्ग ने जन मानस समस्याओं की आग में  झुलसते   देखा | मीडिया जो जनतंत्र का सशक्त प्रहरी है  उसने भी अहम् भूमिका निभाई | समस्याओं से जनता का ध्यान हटाने के लिए व्यक्तिगत  आक्षेप बहुत हुए किन्तु  इन सबसे ऊपर उठ कर   जनमत ने अपने दयित्व का निर्वाह किया  और  राजनीति के आकाश में  अद्भुत  नक्षत्र का नजारा दिखा | देश एक अच्छे  परिवर्तन की ओर  बढेगा  | इस परिवर्तन की कई दिनों से प्रतीक्षा थी
विचार पुष्प - राजनैतिक दल जनतंत्र के प्रहरी होते है | जन भावनाओं के दर्पण होते है | पिछले वर्षो में यह्  देखा जां रहा था कि जैसे कुछ राजनीतिज्ञ  जन भावनाओं के साथ खेल रहे है | जनता जैसे उनकी मुठ्ठी में हो | जन मानस  बार बार पूछ रहा था कि स्वराज्य कहां है | उसके चारों तरफ  जातिवाद का एक बड़ा परदा खीँच गया था लेकिन इस बार बौद्धिक वर्ग कोयल की तरह अमराइयों में नही बैठा अपितु वह् स्वयम्‌ भी सचेत हुआ और अन्यों को भी सचेत किया | इस वर्ग ने दो बार लोकतंत्र को घायल होते देखा था | इसी वर्ग ने जन मानस समस्याओं की आग में  झुलसते   देखा | मीडिया जो जनतंत्र का सशक्त प्रहरी है  उसने भी अहम् भूमिका निभाई | समस्याओं से जनता का ध्यान हटाने के लिए व्यक्तिगत  आक्षेप बहुत हुए किन्तु  इन सबसे ऊपर उठ कर   जनमत ने अपने दयित्व का निर्वाह किया  और  राजनीति के आकाश में  अद्भुत  नक्षत्र का नजारा दिखा | देश एक अच्छे  परिवर्तन की ओर  बढेगा  | इस परिवर्तन की कई दिनों से प्रतीक्षा थी

सोमवार, 12 मई 2014

niti ke deep

भारत माता की आकांक्षा है जो भी भारत के ताज को संभालता है उसे मेरे जन -मानस को यह विश्वास दिलाना होगा कि इस देश से भ्रष्टाचार खत्म होगा प्रत्येक व्यक्ति की मूल आवश्यकताएँ  पूरी होगी |  देश का मुखिया मुख के समान होना चाहिए जिस प्रकार मुख  भोजन ग्रहण करता है  और उससे सारे अंगो का पोषण करता है |  वे सा ही देश का मुखिया को करना चाहिये  |  अब समय नीति न्याय के दीपो से दीपावली मानना चाहता है 

रविवार, 11 मई 2014

vaarta

रबीश कुमार जी की वार्ता का विश्लेषण > दूरदर्शन एन डी टीवी पर आँचलिक उपन्यासकार (साहित्य कार) काशीनाथजी ने कहा है कि दाराशिकोह के गुरु रामानंद थे जबकि ऐसा नही है  ध्यातव्य है कि दाराशिकोह के गुरु पंडितराज जग्गनाथ थे | रामानंद और दाराशिकोह   के  समय में  तीनसौ वर्षो का अन्तर है रामानंद तो कबीर के गुरु थे