शनिवार, 27 दिसंबर 2014

mahamana

भारत रत्‍‌न स्व0 पंडित मदन मोहन मालवीय-  1861 में जन्मे इस लाल को पाकर इलाहाबाद की भूमि  धन्य हुईं |   मदन मोहन मालवीय भारत्तीय वसुंधरा के अनमोल रत्न है एक ऐसे रत्न जिसने आजीवन राष्ट्रीय मूल्यों की आराधना की | राष्ट्र की  अस्मिता हिन्दी के लिये सतत् संघर्ष किया | वे बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे || वे शिक्षाविद् होने  के साथ  स्वतंत्रता सेनानी :  राष्ट्रवादी ; राजनीतिज्ञ  और समाज सुधारक थे |अपना राजनैतिक जीवन उन्होंने काँग्रेस से ही शुरु किया | 1886 में राष्ट्रीय काँग्रेस में   प्रवेश किया | काँग्रेस अधिवेशान में चार बार सभापति बने |1909  में लाहौर अधिवेशन में ; दिल्ली अधिवेशन :1918;1931; कलकत्ता 1933 उन्होंने एक जगह यह कहा भी है कि मैं 50 साल से काँग्रेस के साथ हूँ | उन्होंने महात्मा गाँधी का पूरा-पूरा सहयोग किया | महामना की उपाधि महात्मा गाँधी ने ही उन्हें दी थी | हिन्दी  से उन्हें विशेष अनुराग था | हिन्दी फले-फूले इसके लिए  ही 1916 में   बसंत पंचमी  के दिन  बनारस हिंदू विश्व विद्यालय की स्थापना की | वे देश भक्ति को सर्वोच्च शक्ति मानते थे| सत्यमेव जयते नारे को राष्ट्रीय पटल पर लाने वाले मदन मोहन मालवीय थे |1936 में हिंदू महासभा में प्रवेश किया | उन्होंने  भारतीय संस्कृति के मूल तत्वों को प्रोत्साहान देने के लिए सदैव प्रयत्न किया | हिन्दी के कई समाचार पत्र ;पत्र -पत्रिकाओं का  संपादन किया |    हिन्दी के प्रबल  समर्थक थे महामना के प्रयासों से ही देवनागरी  सरकारी  कार्यालयों और न्यायालय में स्थान पा सकी | गंगा -गायत्री उनकी प्रिय थी | ऐसी विभूति को नमन |

मंगलवार, 9 दिसंबर 2014

      शब्दों का उपहार पहली बार-
 तुम मेरे प्राणों की परिमिति
 तुम मेरे  स्पंदन  की  भाषा |
 ओ मेरे उल्लास मधुर स्वर--
 तुम   मेरे जीवन  की आशा ||
    तुम मेरे श्वासो की सरगम
    तुम गतिलय मेरे गीतो की
    ओ मेरे उत्ताप-शिथिल अधि-
    मानस की  चेतना मदिर-सी |
  तुम वासना  मुक्त   मादकता
  तुम शाश्वत अनुराग-भरित-मन |
  प्राणों का कर  स्पर्श  राग से-
  तन मन में भार दिए ज्योति कण
       तुम कोमल नवनीत -  सदृश हो
       शोभा-थकित्त चकित-सी पल-पल ||
       वाणी मधुमय खग कल- कूजन |  
       मन  जैसे  पावन     गंगा जल ||
   तुम मेरे प्राणों  की   सम्बल ;
   तुम मेरे मन  की     अवलम्बन |
   अंतस्  के   गीतो    की माला --
   से  अर्पित  करता      अभिनंदन

शनिवार, 6 दिसंबर 2014

kalam

शिक्षक की कलम से- शिक्षक पद गरिमा से  पूर्ण पद है वह राष्ट्र  का भविष्य बनाता है ऐसे  भविष्य निर्माता को बहुत को हल्के से लिया जाता है विशेषकर हिन्दी और संस्कृत के शिक्षक को अत्यन्त  दयनीय  बनाकर प्रस्तुत किया जाता है यहां तक कि जितने भी धारावाहिक या चलचित्र है उनमें शिक्षक को विदूषक के रुप में प्रस्तुत किया जाता है यह अनुभव इस कलम ने विद्यार्थी काल से किया है तब भी क्षोभ होता था आज भी है इस प्रसंग कई बार समाचार पत्रो में लिखा भी है || एक बार एक साक्षात्कार में कुछ लड़कियों से जीवनसाथी के चयन के बारे में पूछा तो प्रथम वरीयता थी प्रशासनिक अधिकारी की दूसरी वरीयता चिकित्सक तीसरी इंजीनियर चौथी वरीयता में बेचारा शिक्षक  जब मेरे परिवार  में मुझ से पूछा गया तो मैंने चौथी वरीयताको अपनी प्रथम वरीयता बताया बात यहां नहीं खत्म होती शिक्षक में भी भेद  करके देखा जाता है यह हिन्दी का शिक्षक है या अँग्रेजी का |अँगरेजी का होगा स्मार्ट होगा और हिन्दी का होगा तो मोटा चश्मा पहने होगा विदूषक की कल्पना साकार की जाती है मुझे आज तक यह बात समझ में नहीं आयी कि अँगरेजी जानकर कौन सा ज्ञान बढ़ जाता है  हमारे संस्कृत साहित्य में सारा ज्ञान है और विदेशियों ने इस का अध्ययन  किया और अपनी मोहर लगा दी | योग विश्व को भारत की देन है मानसिक दासता से ग्रस्त लोगो को योग  कहने में शर्माते है योगा कहते है |अँगरेजी का मारा समाज  किधर जा रहा है एक साधारण व्यक्ति रोटी बाद में खायेगा अपने बच्चों को तथाकथित अँगरेजी स्कूल में पढाकर गर्व महसूस  करता है चाहे उसको अँगरेजी समझ ना आती हो इन्ही अंगरैज़ी  स्कूलों में एक शिक्षिका का नए तरीके से अपमान होता है और एक समाचार  बन कर रह जाता है | एक बच्ची दो  चोटी  करके काजल लगाकर आती है तो उसे सजा मिलती है| कब मेरा देश इस दलित गलित मानसिकता निकलेगा शिक्षकत्व कब आदर पायेगा कब मेरी साथ यह कहेगा गर्व से कहो  कि हम शिक्षक है हिंदी पढ़ाते  है जो अँगरेजी  से ज्यादा शक्ति शाली है जो हमारे राष्ट्र की अस्मिता है