शनिवार, 28 जून 2014

bhav

शिक्षा कैसी हो ? भारत स्वतंत्र हुआ है | तब से क्षय रोग से पीड़ित है इलाज तो हुआ लेकिन इलाज विदेशी ढंग से किया गया जो हमारी राष्ट्रीय आंकाक्षाओ के विपरीत था सांस्कृतिक मूल्य की सुगंध उसमें नही रही | शिक्षा क्या है ? शिक्षा बालक की अंतर्निहित शक्तियो को मुखर करती है उसे राष्ट्रीय सांस्कृतिक आकांक्षाओं के अनुरूप बनाती है किन्तु हम यह क्यों नही समझ पारहे है कि मैकाले ने हमारी शिक्षा के आदर्शो को प्रस्तुत नही किया है | उसने तो मेरुदंड रहित लिपिको को बनाने के लिए शिक्षा प्रारंभ की थी हमने उसे वरदान समझ लिया और स्वतंत्रता 67 वर्षो के बाद भी हमारी शिक्षा का मूल वही है | पूरे देश में शिक्षा का संरचनात्मक ढाँचाएक होना चाहिए | प्रादेशिक अथवा स्थानीय आवश्यकतानुसार थोड़ी बहुत भिन्नता हो | सभी जगह तीन वर्ष का पाठ्यक्रम होना चाहिए चाहे वो केन्द्र हो या राज्य |विश्वविद्यालय स्वायत्त हो स्व्छंद नही | शिक्षा की संरचना राष्ट्रीय आंकाक्षाओ के अनुरूप होना चाहिए उच्च शिक्षा में विशिष्ट विषयों {साहित्य दर्शन कला विज्ञान आदि} का ज्ञान पूरा होना चाहिये | छात्र इनमें से जिस भी विषय का चयन करते है उसका पूरा ज्ञान उसे मिलना चाहिए |एम ए करके भी विषय का पूरा ज्ञान नही होता है | पीएच डी करके भी शून्य ही है | हर स्तर की शिक्षा में गुणात्मक सुधार की जरूरत संख्यात्मक व्रृद्धि से शिक्षा लक्ष्य तक शिक्षा कैसी हो ? भारत स्वतंत्र हुआ है | तब से क्षय रोग से पीड़ित है इलाज तो हुआ लेकिन इलाज विदेशी ढंग से किया गया जो हमारी राष्ट्रीय आंकाक्षाओ के विपरीत था सांस्कृतिक मूल्य की सुगंध उसमें नही रही | शिक्षा क्या है ? शिक्षा बालक की अंतर्निहित शक्तियो को मुखर करती है उसे राष्ट्रीय सांस्कृतिक आकांक्षाओं के अनुरूप बनाती है किन्तु हम यह क्यों नही समझ पारहे है कि मैकाले ने हमारी शिक्षा के आदर्शो को प्रस्तुत नही किया है | उसने तो मेरुदंड रहित लिपिको को बनाने के लिए शिक्षा प्रारंभ की थी हमने उसे वरदान समझ लिया और स्वतंत्रता 67 वर्षो के बाद भी हमारी शिक्षा का मूल वही है | पूरे देश में शिक्षा का संरचनात्मक ढाँचाएक होना चाहिए | प्रादेशिक अथवा स्थानीय आवश्यकतानुसार थोड़ी बहुत भिन्नता हो | सभी जगह तीन वर्ष का पाठ्यक्रम होना चाहिए चाहे वो केन्द्र हो या राज्य |विश्वविद्यालय स्वायत्त हो स्व्छंद नही | शिक्षा की संरचना राष्ट्रीय आंकाक्षाओ के अनुरूप होना चाहिए उच्च शिक्षा में विशिष्ट विषयों {साहित्य दर्शन कला विज्ञान आदि} का ज्ञान पूरा होना चाहिये | छात्र इनमें से जिस भी विषय का चयन करते है उसका पूरा ज्ञान उसे मिलना चाहिए |एम ए करके भी विषय का पूरा ज्ञान नही होता है | पीएच डी करके भी शून्य ही है | हर स्तर की शिक्षा में गुणात्मक सुधार की जरूरत संख्यात्मक व्रृद्धि से शिक्षा लक्ष्य तक नही पहुँच पाती | ना रोजगार ना ज्ञान है | दूसरी तरफ एक ऐसा वर्ग है जो विदेशी शिक्षा का पक्षधर है छात्र यहाँ तकनीकी शिक्षा लेकर विदेश में जा कर बस जाते है प्रतिभा पलायन हो रहा है | प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा के आकाश में समस्याओं के बादल है साथ में मानसिक दासता की धूल की परत हमारे मस्तिष्क से गयी नही है| प्रधान मंत्री जी से बहुत आशा है और विश्वास भी | यह भाव एक शिक्षक का है जिसने भीतर से अनुभव किया है है

मंगलवार, 24 जून 2014

bhagvaan

Vभगवान किसे माने ना माने आज यह प्रश्न  उठा है वैसे तो प्रश्न अत्यन्त व्यक्तिगत है और मनोवैज्ञानिक है जब कोई व्यक्ति बहुत परेशानी में होता है अगर उस समय किसी भी माध्यम से हल हो जाती है तो वो माध्यम या व्यक्ति भगवान हो जाता है कोई व्यक्ति भगवान क्यों होता है जो मानवता से प्रेम करता है उसमें ईश्वरत्व स्वत: प्रस्फुटित होता है ऐसे हमारे यहां कई संत हुए है जिन्हें भगवान कहा गया है यह आस्था का विषय है लेकिन कभी कभी आस्था उन्माद में बदल जाती है तो ग़लत है कभी भी  किसी संत ने अपनी पूजा के लिए नहीं कहा वो तो दिव्य प्रकाश ज्ञान करवाता है  जिससे मानवता का कल्याण हो | राम ने मनुज रुप धारण किया लोक-कल्याण  के लिए | समाज में व्यवस्था बनी रहे और ऋत-चक्र को  ठीक  करने के  लिए   राम ने स्वस्थ मर्यादाओं का पालन किया था कृष्ण ने भी मनुज रुप धारण करके उन परंपराओं  का खण्डन किया जो समाज की उन्नति में बाधक बन रही थी वे भी ईश्वर है | असली भगवान को किसने देखा है इंसान में भगवान है इंसान में ही शैतान है जो हमें सही मार्ग दिखाता है वह भगवान है श्रद्धा  और आस्था को प्रश्नों के घेरे में क्यों रखे ?कण कण में ईश्वर है सारी सृष्टि परमात्मा मय है |मै भी  परमात्मा हूँ |तुम भी परमात्मा  हो | सारी सृष्टि परमात्मा मय है  फिर भेद कैसा | कबीर ने कहा है  
                       लाली मेरे लाल की जित देखूँ तित लाल
                      लाली देखन में भी हो गई लाल

रविवार, 22 जून 2014

aasu ashru

आँसू  - में हिन्दी हूँ वर्तमान सरकार द्वारा मुझे सम्मान दिया गया है | मेरे लिए यह गर्व की बात है] यह सम्मान तो मुझे बहुत पहले मिल जाना चाहिए था में तो असंख्य लोगो के मानस  सिंहासन पर राज करती हूँ मैने हर भाषा को अपने आँचल की छाया दी है जब भारत परतंत्र था  तो अँगरेजों ने भारत में अपनी भाषा को इसलिए आरम्भ किया था जिससे वह् पढ़े लिखे भारतीय तैयार  कर सके और अपनी भाषा के माध्यम से वह् हमारी संस्कृति को घायल कर सके और बहुत हद तक उसमें वह् सफल  भी रहे मेरी आँखों मे उस समय भी आँसू थे किन्तु  में शांत रही |मैंने अँगरेजी के अस्तित्व को अपनी छोटी बहिन मानकर स्वीकार कर लिया  वह् एक सम्पर्क भाषा के रुप में रहेगी लेकिन वो तो भारतीयों की मानसिकता पर इतनी छा गयी कि लगता है कि जैसे अँगरेजी के बिना  उनका काम ही नही चलेगा यह सोच मानसिक दासता की प्रतीक है मेरा सम्मान  राष्ट्र की अस्मिता से जुड़ा है में राष्ट्र का गौरव हूँ राष्ट्र की वाणी हूँ फिर भी जब जब मुझे राजभाषा का सम्मान देने की बात होती है तो विरोध होता है उस समय मेरी आँखें आँसूओ से भर जाती है जैसे माँ अपनी संतान के विरोध पर दु:खी होती है वो ही दु:ख  मुझे  भी  होता है |मेरी विनती है कि मुझे राजनीति से अलग रखा जाये और राष्ट्र के सम्मान के साथ जोड़ा जाए |मेरे साथ प्रादेशिक भाषाएँ पल्लवित हो तब मुझे बहुत खुशी होगी अपने संस्कृति अपनी भाषा पर तो सबको गर्व होना चाहिए | जो मेरे आँखों के आँसू पौछेगा में समझूँगी कि उसने भारत माँ को सम्मान दिया  है भारत का पूर्व भी मेरा है पश्चिम भी मेरा है उत्तर भी मेरा  है द्क्षिण भी मेरा है सब एक दूसरे का आदर करे

शनिवार, 14 जून 2014


     as ha     asfh     

desh nahi jhukane doogaa

परम् आदरणीय प्रधानमंत्री  आपने कार्यकाल के थोड़े समय में जिस  तरह की सक्रियता दिखायी है वस्तुत; सराहनीय है कम पानी में किस प्रकार की फसल हो सकती है यह सोच अच्छी है | समय रहते हुए भविष्य की योजना पर विचार करना ही चाहिए | हर क्षेत्र में आप के द्वारा दी-  जाने वाली प्रेरणा व्यक्ति की कार्य क्षमता को तो बढ़ाती है साथ में यह पुरस्कार भी है आज आपको आईएनएस विक्रमादित्य को देश को समर्पित करते  देखा बहुत अच्छा लगा देश के जवानों का कितना मनोबल बढ़ा होगा | सैन्य शक्ति मज़बूत होनी चाहिए जिससे हमारे विश्वशांति के संदेश को  कोई  कायरता ना समझे  आपकी ही कविता के बोल -"में देश नही झुकने दूँगा ----- अच्छे लगे थे |इसी प्रकार  का भाव मेरे मन में भी है जो आपकी सेवा में प्रस्तुत है  -------------------------
                                             पुत्र तेरे हम सहोदर साथ
                                            गंध मिट्टी लगी है माथ
                                            एक उपवन के खिले है फूल-
                                            एक होकर ही उठेंगे  हाथ
                                             लौह बन कर हम करेंगे शत्रु के
                                            चुनौती के स्वरों का प्रतिकार
आपकी कार्यशैली ;निर्णय  लेने की  क्षमता अद्भुत है |                         आशा भटनागर श्री गंगानगर राजस्थान
  

गुरुवार, 12 जून 2014

gourav

परम् आदरणीय प्रधानमंत्री आपके द्वारा दिए गए पाँच मंत्र वस्तुत; यह मंत्र पंच शील है स्वस्थ राजनीति में ऐसा होना उचित है
 राष्ट्र  भाषा का सम्मान होते देख् कर मुझे बहुत अच्छा लग रहा है  राष्ट्र का गौरव  अपनी भाषा मेँ ही है  |  हमे  मानसिक दासता  से मुक्त होना ही  चाहिए | सबका सम्मान करते हुए अपनी संस्कृति अपनी  भाषा का सम्मान  यह भारतीयता  के प्रतीक है लोकसभा में आपका भाषण अत्यंत सराहनीय रहा उसमें ओज ; विनम्रता आशावादिता के साथ शिव संकल्प का अदभुत समन्वय था |ग्रामीण क्षेत्र मे पीड़ित शोषित दलित वंचित को विकास की रोशनी देनेका प्रयास अच्छा है |श्रममेव जयते विकास की आधारशिला  है दूरस्थ शिक्षा के द्वारा शिक्षा के प्रचार प्रसार को हर गाँव तक पहुँचाने के कार्य में त्वरित गति की आवश्यक्ता है |श्रम की महत्ता के लिए कवि नीरज की  काव्यपंक्तियांं है-श्रम के जल से ही राह सदा सिचती है  गति की मशाल आँधी में ही सजती है |
    विकास को जन आंदोलन के रुप में प्रस्तुत करना उचित है |अध्यापक को महत्त्व देना उसकी गरिमा को समझना शायद प्रथम बार हुआ है व्यक्तिगत रुप से अच्छा लगा मेरा परिवार शिक्षा से जुड़ा है शिक्षकत्व मेरा गौरव है |आज देश में नारी मर्यादा प्रश्नों के घेरे में है  नारी सम्मान को प्राथमिकता देनी चाहिए जन प्रतिनिधि शासक नही रखवाले है इस कथन में जन मानस की गरिमा है
आपका हर शब्द श्रेष्ठ भारत की ओर संकेत करता है      आशा भटनागर श्री गंगानगर  राजस्थान

सोमवार, 9 जून 2014

pm

आज आदरणीय प्रधानमंत्री  के प्रेरक वचन सुने  मन को छुए | वस्तुत; स्किल स्केल स्पीड तीनों की विकास में बहुत आवश्यकता है भारत में प्राकृतिक संसाधनो की कमी नही है अगर कमी है तो ईमानदारी से पोषण और दोहन की | इसके लिए सशक्त मानवीय संसाधन की आवश्यकता है | भारत का ग्रामीण अंचल प्रकाश की प्रतीक्षा मे है अभी तक समाज की अंतिम सोपान तक विकास की किरण नही पहुँची है |आज भी गरीबी पाँव पसार कर बैठी है | ग्रामीण अँचल में अभी भी ऐसे है जो दलित गलित  मानसिकता में जी रहे है वह उससे निकलना नही चाहते |सबसे पहली आवश्यकता इस अँचल को मानसिक रुग्णता से ऊपर उठाना है |असली भारत तो गाँवों में बसता है| विकास के चरण यही से शुरू होना चाहिए  स्किल अनुभव की आधार भूमि पर तैयार होती है जो ज्ञात है जो अनुभव है उसका लाभ उठाते  हुए  नये विकास के चरण स्थापित  हो  जिस स्किल को अपनाया जा रहा है उसका मापदंड भी आवश्यक है वही से स्पीड बनती है तीनों लक्ष्य बहुत सुंदर है युवा ऊर्जा का पूरा सार्थक उपयोग करना उचित है |आपकी विचार धारा में आशा की किरण है | आपके विचारों में विज्ञान और  अध्यात्म  का समन्वय भारत को नया रुप देगा  | भारतीयता को चमक मिलेगी | सुंदर स्वस्थ स्वच्छ सुशासन वाला भारत होगा

शनिवार, 7 जून 2014

priyavaran

पर्यावरण दिवस - इस विषय में बहुत लिखा जा चुका है समितिया ;आयोग  रैलिया   सब कुछ ;फिर भी समस्या ज्यों की त्यों है कारण अनेक है | बढ़ती हुई जनसंख्या  अतिऔद्योगीकरण महानगरीय सभ्यता अशिक्षा अंधविश्वास आदि अनेक कारण है प्रदूषण को जन्म देने के | आज प्रदूषण हर क्षेत्र में है कहने मात्र से यह दूर् नही हो सकता ;इसके लिए आम आदमी की मानसिकता को बदलने के लिए युद्धस्तरीय  प्रयास आवश्यक है|  आज शिक्षा के हर स्तर पर पर्यावरण विषय है लेकिन वह् परीक्षा तक  सीमित है | आम आदमी की मानसिकता  को  बदलना होगा | गंगा प्रदूषण के सन्दर्भ को ले -कितना मल वो अपने सीने में दबा कर आगे बहती है क्या कोई अपनी माँ को गंदा करता है हम स्वयम्‌ तो गंगा में नहा कर पवित्र होते है  किन्तु माँ को मैला करते है | हे शिव आपकी गंगा मैली होरही है उसके सारे औषध गुण इंसानी  स्वार्थ  ने समाप्त कर दिए है  |आप   गंगा का पान करके आक धतूरे तक को हजम कर लेते थे | जल; वायु; धरा के उपकारो को पहचानो वृक्ष हमारे मित्र है ऐसे मित्र जो जहर पीते है और अमृत फल देते है | प्रकृति की गोद में जाकर बैठो  वह दुलार करेगी |  माता पृथ्वी पुत्रो अहम् पृथिव्या; यह अथर्ववेद में कहा गया है धरती माँ है इसके प्रति पोषण का भाव होना चाहिए लेकिन हम तो प्रदूषण फैला रहे है प्रकृति से बलात्कार के कारण ही प्रकृति ने अनेक बार रौद्र रुप धारण किया है केदारनाथ में पिछले वर्ष आया बर्फीला तूफान आज भी रोमांचित करता है हमे प्रकृति के संकेत को समझना चाहिए