सोमवार, 16 फ़रवरी 2015

niid

शिवरात्रि के उपलक्ष्य में- "नीड़ बन जाता " -- कर रही  लीलामय   आनन्द
                                     महचिति सजग हुई सी व्यक्त
                                      विश्व का उन्मीलन  अभिराम
                                     इसी में  सब   होते  अनुरक्त - > कामायनी से
समस्त सृष्टि शिवमय है सर्वत्र आनन्द की वर्षा होती है | शिव की लीला का ही मधुर नर्तन सर्वत्र है शिव चेतना अव्यक्त - व्यक्त दोनोँ रूपों में है शिव पुराण  में शिव ने श्री मुख से कहा है "में संसार की उत्पत्ति रक्षा और सन्हृति  करने वाला हूँ" |यह लीलमय संसार जो दिखायी देता है |परम् आनन्दमय है |इसमे शिव की  लीला के इन्द्रधनुषीयरंग है  जिसे उन्होने शक्ति के साथ मिलकर रचा है |   शिव जन मानस के श्रृंगार  है थोड़ी सी पूजा से  प्रसन्न होने वाले आशुतोष है भोले नाथ है | मानवता के कल्याण के लिए शिव गरल पान करके  नील कंठी बने | शिव ने दी है यह शिक्षा -रे मानव  लोक मंगल के लिए  तो  जहर पीने की वृत्ति रखनी चहिये  अर्थात् सारी बुराइयों कष्टों  को अपने ऊपर ले कर अन्यों के लिए मंगल कामना रखो |जो नयन [नेतृत्व ] करते है ;जिनके कंधों पर देश का दायित्व है उनके लिए तो शिव मूर्त्तिमान  प्रतीक हैं |उन्हें तो शिव- चेतना से रोम- रोम रंग लेना चहिये |शिव सिर पर गंगा पवित्रता की प्रतीक हैं | चंद्रमा शीतलता का प्रतीक हैं तीसरा नेत्र अग्नि का प्रतीक है | जो कामदेव को भस्म  करती है सर्प दुष्टों का प्रतीक हैं  जो हर समय फन मारने की तैयारी में रहते हैं | विषपान लोक अपवादों की पीड़ा सहन करने काप्रतीक हैं |  शिव नग्न रहते हैं  उनका व्यक्तित्व पारदर्शी हैं धन पद सब भक्तों के लिए हैं भस्म रमाते हैं इसका अर्थ हैकि शिव वासनाओ से मुक्त है | पार्वती उनकी शक्ति है शक्ति बिना शिव शव हैं|गणेश विघ्न हर्ता है कर्तिकेय  देवताओ के सेनापति है जो सत् की रक्षा के लिए तत्पर हैं | शिव के प्रतीक आज सबके वर्गो  के लिए ग्रहण  करने योग्य हैं | शिवमय होने पर  संपूर्ण विश्व सुंदर नीड़ बन जाएगा  | जिसमे लोक मंगल का दीप  जलेगा
     सब भेद भाव   भुलाकर
     दुःख -सुख को दृश्य बनाता |
     मानव कह रे!  "यह मै हूँ "
     यह विश्व नीड़ बन जाता

                         
                                   

गुरुवार, 12 फ़रवरी 2015

 डा. के. जे. भटनागर की कविता "उत्सव" का विश्लेषण - इस कविता में कवि ने संसार के मंगलमय स्वरूप को प्रस्तुत किया है | सारी सृष्टि में मधुर रागिनी सरस धारा बहती रहती है | परम पिता परमात्मा की मधुर लीला में डूबने का क्षण है सारी सृष्टि मे शिव चेतना की  व्याप्त है ; इसमे बहती है लोक मंगल की गंगा  || सारी सृष्टि में विराट् चेतना  का वैभव है राधा की पायल की प्रणव ध्वनि  कण-कण में व्याप्त है यह सब में प्राण  चेतना भरती है उसमें जो लीन होजाता है वह परम आनन्द को प्राप्त होता है | भीतर से उत्पन्न आनन्द  ही सत्य है  | यही रागात्मक वृत्तियों का जनक है लेकिन भौतिकता जड़ अस्थायी भावों को जन्म दे रही है ये भाव वासना परक है और कुछ दिनों में मृतप्राय: हो जाते  है कवि विराट् चेतना का आह्वान करता है जिससे वैदिक मंत्रों के समान उठते श्वासो की सरगम साध सके जिससे आत्मा -परमात्मा  का साक्षात्कार हो सके |यही सच्चा प्रणय है  प्रेम तो परमात्मा का रुप जो कभी राधा की पायल में दिखता है तो कभी  मीरां के इक तारे में दिखता है | कवि की पूरी कविता  मेरे नोट उत्सव  में उल्लखित हैं अवश्य पढे

utasav


 मंगल उत्सव -----| रचयिता के. जे. भटनागर 
  यह मंगल उत्सव का क्षण है |
     उस मधुमय की लीला   चेतन  |
     उस विराट् का  वैभव   नर्तन |
     उसके पदचापो की    अस्फुट 
     ध्वनि मिश्रित पायल की रुनझुन |
  कण-कण अणु-अणु में बिखरी जो :
   सुन तन्मय होने का   क्षण है || यह-----
       नीरस   शोभा हीन  जगत्   के 
     ये भौतिक  बंधन   जड़  लगते |
     रूखे   ह्रदयहीन  बंधों    के 
     निर्मम भावों  के  शव   ढोते ||
 उस उल्लास   मधुर    सागर में 
 डूब डूब  तिरने का  मन  है || यह--------
    तुम आओ :   विराट् बाहों में
    लो मुझको सायास बाँध  लो
    आलोकों के मधु वैभव मे
श्वासो के उदगीथ साध   लो 
 प्रिय के मधुर  मिलन के क्षण में 
    जाग-जाग सोने का  मन  है | यह------शब्द रंग -आशा भटनागर