शिवरात्रि के उपलक्ष्य में- "नीड़ बन जाता " -- कर रही लीलामय आनन्द
महचिति सजग हुई सी व्यक्त
विश्व का उन्मीलन अभिराम
इसी में सब होते अनुरक्त - > कामायनी से
समस्त सृष्टि शिवमय है सर्वत्र आनन्द की वर्षा होती है | शिव की लीला का ही मधुर नर्तन सर्वत्र है शिव चेतना अव्यक्त - व्यक्त दोनोँ रूपों में है शिव पुराण में शिव ने श्री मुख से कहा है "में संसार की उत्पत्ति रक्षा और सन्हृति करने वाला हूँ" |यह लीलमय संसार जो दिखायी देता है |परम् आनन्दमय है |इसमे शिव की लीला के इन्द्रधनुषीयरंग है जिसे उन्होने शक्ति के साथ मिलकर रचा है | शिव जन मानस के श्रृंगार है थोड़ी सी पूजा से प्रसन्न होने वाले आशुतोष है भोले नाथ है | मानवता के कल्याण के लिए शिव गरल पान करके नील कंठी बने | शिव ने दी है यह शिक्षा -रे मानव लोक मंगल के लिए तो जहर पीने की वृत्ति रखनी चहिये अर्थात् सारी बुराइयों कष्टों को अपने ऊपर ले कर अन्यों के लिए मंगल कामना रखो |जो नयन [नेतृत्व ] करते है ;जिनके कंधों पर देश का दायित्व है उनके लिए तो शिव मूर्त्तिमान प्रतीक हैं |उन्हें तो शिव- चेतना से रोम- रोम रंग लेना चहिये |शिव सिर पर गंगा पवित्रता की प्रतीक हैं | चंद्रमा शीतलता का प्रतीक हैं तीसरा नेत्र अग्नि का प्रतीक है | जो कामदेव को भस्म करती है सर्प दुष्टों का प्रतीक हैं जो हर समय फन मारने की तैयारी में रहते हैं | विषपान लोक अपवादों की पीड़ा सहन करने काप्रतीक हैं | शिव नग्न रहते हैं उनका व्यक्तित्व पारदर्शी हैं धन पद सब भक्तों के लिए हैं भस्म रमाते हैं इसका अर्थ हैकि शिव वासनाओ से मुक्त है | पार्वती उनकी शक्ति है शक्ति बिना शिव शव हैं|गणेश विघ्न हर्ता है कर्तिकेय देवताओ के सेनापति है जो सत् की रक्षा के लिए तत्पर हैं | शिव के प्रतीक आज सबके वर्गो के लिए ग्रहण करने योग्य हैं | शिवमय होने पर संपूर्ण विश्व सुंदर नीड़ बन जाएगा | जिसमे लोक मंगल का दीप जलेगा
सब भेद भाव भुलाकर
दुःख -सुख को दृश्य बनाता |
मानव कह रे! "यह मै हूँ "
यह विश्व नीड़ बन जाता
महचिति सजग हुई सी व्यक्त
विश्व का उन्मीलन अभिराम
इसी में सब होते अनुरक्त - > कामायनी से
समस्त सृष्टि शिवमय है सर्वत्र आनन्द की वर्षा होती है | शिव की लीला का ही मधुर नर्तन सर्वत्र है शिव चेतना अव्यक्त - व्यक्त दोनोँ रूपों में है शिव पुराण में शिव ने श्री मुख से कहा है "में संसार की उत्पत्ति रक्षा और सन्हृति करने वाला हूँ" |यह लीलमय संसार जो दिखायी देता है |परम् आनन्दमय है |इसमे शिव की लीला के इन्द्रधनुषीयरंग है जिसे उन्होने शक्ति के साथ मिलकर रचा है | शिव जन मानस के श्रृंगार है थोड़ी सी पूजा से प्रसन्न होने वाले आशुतोष है भोले नाथ है | मानवता के कल्याण के लिए शिव गरल पान करके नील कंठी बने | शिव ने दी है यह शिक्षा -रे मानव लोक मंगल के लिए तो जहर पीने की वृत्ति रखनी चहिये अर्थात् सारी बुराइयों कष्टों को अपने ऊपर ले कर अन्यों के लिए मंगल कामना रखो |जो नयन [नेतृत्व ] करते है ;जिनके कंधों पर देश का दायित्व है उनके लिए तो शिव मूर्त्तिमान प्रतीक हैं |उन्हें तो शिव- चेतना से रोम- रोम रंग लेना चहिये |शिव सिर पर गंगा पवित्रता की प्रतीक हैं | चंद्रमा शीतलता का प्रतीक हैं तीसरा नेत्र अग्नि का प्रतीक है | जो कामदेव को भस्म करती है सर्प दुष्टों का प्रतीक हैं जो हर समय फन मारने की तैयारी में रहते हैं | विषपान लोक अपवादों की पीड़ा सहन करने काप्रतीक हैं | शिव नग्न रहते हैं उनका व्यक्तित्व पारदर्शी हैं धन पद सब भक्तों के लिए हैं भस्म रमाते हैं इसका अर्थ हैकि शिव वासनाओ से मुक्त है | पार्वती उनकी शक्ति है शक्ति बिना शिव शव हैं|गणेश विघ्न हर्ता है कर्तिकेय देवताओ के सेनापति है जो सत् की रक्षा के लिए तत्पर हैं | शिव के प्रतीक आज सबके वर्गो के लिए ग्रहण करने योग्य हैं | शिवमय होने पर संपूर्ण विश्व सुंदर नीड़ बन जाएगा | जिसमे लोक मंगल का दीप जलेगा
सब भेद भाव भुलाकर
दुःख -सुख को दृश्य बनाता |
मानव कह रे! "यह मै हूँ "
यह विश्व नीड़ बन जाता