रविवार, 30 मार्च 2014


navratre

  भारत की सांस्कृतिक परम्परा के अनुसार चैत्र मास की शुक्ल प्रतिप्रदा से नवसम्वत्सर का आरम्भ होता है यही भारत का नववर्ष है |
यही  विक्रमसम्वत् है |चैत्र मास की शुक्ल प्रतिप्रदा का आध्यात्मिक दृष्टि  विशेष महत्त्व है |श्री राम का जन्म हुआ था | ऐसा भी माना जाता है कि  इसी मास की प्रतिप्रदा में विष्णु  ने मत्स्यावतार लिया था |
 चैत्र नवरात्रि को देवकार्य निमित्त भगवती जगदम्बा ने पर्वतराज हिमालय घर जन्म लिया था | इस प्रकार चैत्र मास के नवरात्रि देवी का जन्म -उत्सव है |सत्य शील सौंन्दर्य के आगार श्री राम के जन्म के कारण प्राकृतिक सौन्दर्य आध्यात्मिक सौंन्दर्य में बदल जाता है|इस दिन चेटीचण्ड का उत्सव मनाया जाता है ऐसे पावन दिवस पर पवित्र संकल्प के साथ के मंगल दिवस की स्थापना करे |          
                       जय भगवति देवि नमो वर दे 
                             जय पाप विनाशिनि बहुफल दे 
                        जय चन्द्र दिवाकर नेत्र धरे 
                                प्रणममि तु देवि नार्ति हरे

गुरुवार, 27 मार्च 2014

tulsi


  लोकनायक महाकवि तुलसीदास>>>>>प्रात;स्मरणीय तुलसीदास के पावन नाम से सभी परिचित है | महाकवि  तुलसीदास ने  त्रिताप से  संतप्त पथिकों के लिये सुशीतल सुधा स्त्रोतस्विनी रामभक्ति मन्दाकिनी  की धवल धारा प्रवाहित की है |तुलसीदास भारतीय सहित्य  की सर्वोतम निधि है |भक्तिकालीन रामभक्ति शाखा के प्रतिनिधि कवि तुलसी है  उनका व्यक्तित्व व्यक्तिगत अनुभवों और  युगीन  परिस्थितियों से निर्मित हुआ था |तुलसी लोकदर्शी थे :लोकनायक थे | लोकनायक अपनी संस्कृति राष्ट्र की सीमाओं से परिचित
 होकर बाहर से आकाश दीप बनकर मार्ग भी दिखाये और स्वयं आगे रहे |तुलसी ने जीवन के विविध पक्षों को अत्यन्त सूक्ष्मता से देखा था | तुलसी ने बाहर से विरोधी दिखने वाले पक्षों  का समन्वय किया| हजारीप्रसाद द्वेदी के अनुसार >भारतवर्ष का लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय का अपार धैर्य ले कर आया हो| तुलसीदास जी ने समन्वयवाद का विराट स्वरूप अपनी काव्य रचना में प्रस्तुत किया |
तुलसीदासजी ने विभिन्न क्षेत्रों में समन्वय किया >दार्शनिक समन्वय के अन्तर्गत निर्गुण-सगुण  में समन्वय करते हुए उन्होँने कहा >अगुन सगुन दुई ब्रह्म स्वरूपा |मोरे प्रौढ़ तनय सम ज्ञानी और समर्पित भक्तो को शिशु कहकर ज्ञान और भक्ति का समन्वय अद्भुत  किया  है |इसी प्रकार  निवृत्ति और प्रवृत्ति के बीच समन्वय किया | उनके राम के व्यक्तित्व  में प्रवृत्ति और निवृत्ति का स्व्स्थतम सामंजस्य मिलता है| इसी प्रकार शैव वैष्ण्व का समन्वय; एकेश्वरवाद बहुदेववाद के मध्य समन्वय करके धार्मिक समन्वय  स्थापित
किया |तुलसी लोकमंगल को पूर्णत: स्थापित करने कवि और लोकनायक है| समाज में बिख्ररी हूई अनन्त शक्तियों को एक रुप दिया
शक्ति शील सौंदर्य का समन्वय  आत्मपक्ष लोकपक्ष का समन्वय करके समाज में एक रूपता स्थापित की| साहित्यिक समन्वय में तुलसी ने रसों का समन्वय ;भाव और शिल्प का समन्वय सत्यं शिवं सुन्दरं का समन्वय किया |  राजतंत् और प्रजातंत्र के मध्य समन्वय करके राजनैतिक क्षेत्र में समरसता स्थापित की | तुलसी ने राम के श्री मुख से ही कहलाया है...जो अनीति कछु  भाषौ भाई
तो मोही बरहजहू भय बिसराई |इस प्रकार  तुलसी महाकवि थे ;काव्य स्रष्टा और जीवन दृष्टा थे


शुक्रवार, 14 मार्च 2014

उड़त गुलाल रंग भीने >... होली रंगों का त्योहार है | इन रंगों में लौकिक -अलौकिक दोनोँ रंग समाहित है| लौकिक रंग प्रेम की रस- रंग भरी फुहार छोड़ते है |दूसरी तरफ अलौकिक रंग में रंगी आत्मा प्रियतम से मिलने के लिये आकुल है | अपने हृदय रुपी आँगन में प्रेम के रंग की रंगोली सजाती है प्रेम का गुलाल लगाना चाहती है| ऐसा ही प्रेम कृष्ण ने बरसाने में बरसाया था | रंगों की फुहार से जीवन चेतना जगायी थी |आत्मा -परमात्मा का मिलन तो था ही | जीवन में आशा. उल्लास.उत्सव के महत्व का संदेश भी दिया|  
      बृज में होली रे रसिया की गूँज आज भी बृज में सुनायी देती है | खेलत कैसो गुमान सुनो वृषभानु किशोरी में सात्विक प्रेम की अभिव्यक्ति  है| कबीर की आत्मा भी परमात्मा से फाग खेलने को विकल है  ---कैसो होरी खेलूँ पिया संग दुविधा रार मचायी रे |मीरां को तो कृष्ण के  अभाव में होली खारी लगती है >किण संग खेलूँ होली ;पिया तज गये अकेली | होली आनन्द .उल्लास का पर्व है यह  संकेत परमात्मा ने दिया है|मीरां ऐसे ही आनन्द  में डूबी है|जहां बिना वाद्य के संगीत बिना स्वर के रागनिया  हो रहीं है| अनाहत की ध्वनि रोम रोम में समा रही है|इस होली के रंग में शील -संतोष का केसर है |प्रीति की पिचकारी है |यह पर्व मूल्यों की रक्षा का है|पर्व है  प्रेम के रंग में रंगने का है | स्नेह् का गुलाल लगाने का है | 

गुरुवार, 13 मार्च 2014

         खुशी के रंग मेंरे से सयुंक्त हर परिवार में खिले | सबका आँगन खुशी की रंगोली सज  जाए हम अपने  चेतना के आकाश को इतना विस्तार दें कि हमारा हर  नक्षत्र प्रकाश पा सके  |प्रकाश  से  मानवता को  इन्द्रधनुषीय रंग मिले|   

मंगलवार, 11 मार्च 2014

        खेलत  फागु  अवधपति अनुज  - सखा सब संग 
 बरषि सुमन  निरखिहि  सोभा  अमित  अनंग           
 प्रणय का रंग **************** फागुन मास एक ऐसा मास है जिसमे प्रकृति नववधू का वेश धारण  करके सबसे अधिक शोभा  प्राप्त  करती है |इस समय सारा द़ृश्य ऐसा होता है मानो प्रकृति नववधू का वेश धारण करके अपने प्रियतम ऋतुराज से मिलने जा रही हो |
        इस प्रणय रागिनी को  होली अपने रंग देती है | होली पर सृष्टि का अंगअंग प्रेम और अनुराग से भर जाता है | आत्मा-परमात्मा के मधुर मिलन का अलौकिक रूप दिखायी पड़ता है |                                                श्याम ने जो उड़ाया अबीर "औ" गुलाल
                                                             गाल पर राधिका के कहर ढा गया |                    साकेत में गुप्तजी ने लिखा है -    रागी फूलों ने पराग से भर ली अपनी झोली
                            और ओस ने केसर  उनके स्फुट सम्पुट में घोली |
                            होली     होली      होली || -------    फागुन मास के लगते ही फाग के रंग उड़ने लगते है|| होली बसन्त-उत्सव का ही एक अंग है| इसमे हम प्रकृति की रमणीयता को मानस में उतार कर उसके साथ एकाकार  होकर   उत्सव मनाते है |रंग के इस खेल में ईश्वरीय आनन्द की अनुभूति होती है | रागात्मक भावनाएँ होली के रंगों में खिल उठती है || मानवीय मूल्य साकार हो उठते है| होली के रंग जाति धर्म भाषा प्रदेश की सीमाओं को तोड़ कर मानवता के विशाल प्रांगण में रंगोली सजा देते है| इस तरह होली राष्ट्रीय .मानवीय चेतना से रंग देने वाला पर्व है  इसमे  प्रेम की मधुरता .राग का संगीत है|
          प्रणय का रंग  फागुन ने    उड़ाया
          मत्त केसर गन्ध कण कण में समाया
          नियम संयम तोड़ मुनि मन ध्वंसकरी
          शर कहां  से मदन मादन ने चलाया


             

सोमवार, 10 मार्च 2014

दुनिया को रंग  दु रंग   हमारो  रंग  केसरिया    
                       होली  की  शुभ कामनाऍ                                                    

शनिवार, 8 मार्च 2014

लोक तन्त्र  में  महिलाओं की  महत्त्व  पूर्ण  भूमिका  है । महिलाओ  को  स्वयं  आत्मविश्वास का  दीप  जलाना  होगा 

शुक्रवार, 7 मार्च 2014



          वंदन का यह दीप समर्पित   तुमको  । श्रृद्धा   का  भाव  समर्पित  तुमको                                       






प्यारी बेटियो  के  लिए ----------प्यारी बेटी  गंगा  की तरह  पवित्र होती है  । कोयल की  तरह  मीठी होती  है
सोन परी  की तरह  सुन्दर होती  है  । झिलमिल की   तरह चंचल होती  है । रिमझिम रिमझिम  शांत रहती  है   
नारी शक्ति को नमन-------हे सर्वं मंगले ! तुम महती:
        अपना दुःख अपने पर सहती |
                    कल्याणमयी वाणी कहती :
          तुम क्षमा निलय में हो रहती ---प्रसादजी ने उपर्युक्त पंक्तियों में नारी को कल्याण स्वरूपा कह कर नमन किया है | आज नारी सशक्तिकरण की बात बार-बार कही जा रही है |साहित्य मे तो यह बात हमेशा कही गयी है | एक नहीं दो-दो मात्राये नर से भारी नारी कह कर नारी को शक्ति प्रदान की गयी है |प्रश्न यह है कि जब नारी को देवी:श्रद्धा कहा गया तो फिर नारी कब और क्यों अक्षम हो गयी? समय -समय पर नारी की स्थिति में परिवर्तन हुआ है | मनु- स्मृति में कहा गया है कि जहां नारी की पूजा होती है वहां देवताओं का निवास होता है धीरे- धीरे नारी की स्थिति बदलने लगी | रामायण काल में धोबी के कहने मात्र से सीता -निष्कासन से नारी की गरिमा के आगे प्रश्न लग गया ?महाभारत काल में नारी के चीर -हरण करने  का प्रयास किया गया | मध्य काल में नारी भोग्या बन कर राह गयी | पुन ; जागरण काल में  नारी के  उत्थान के प्रयास हुए |आधुनिक काल में नारी ने स्वयं की पह्चान बनायी |लेकिन नारी यहां भी अक्षम रही | मैँ नीर भरी  दुःख  बदली कह कर दर्द को व्यक्त किया |आज स्थिति यह कि महानगरीय नारी विद्रोह कर रही है | ग्रामीण अँचल में चेतना की किरण क्षीण है| मध्यम वर्ग की नारी अभी भी संघर्ष रत है ऐसी ही नारी को  कलम  नमन करती है || प्रसाद्जी के शब्दों में------------  नारी ‍‍‍! तुम केवल श्रद्धा हो                   
                                             विश्वास रजत पग तल में  
                                              पीयूष स्त्रोत सी बहा करो
                                              जीवन के सुन्दर समतल मॆं       
                                             
महिला  दिवस  पर  नारी  शक्ति  को  नमन 

गुरुवार, 6 मार्च 2014

                     
                       तुम मेरे प्राणों की परिमिति 
                       तुम मेरे स्पन्दन की भाषा | 
                       ओ मेरे उल्लास मधुर स्वर-
                        तुम मेरे जीवन  की आशा |
                            तुम मेरे श्वासो की सरगम |
                            तुम गतिलय मेरे गीतो की || 
                            ओ मेरे उत्ताप -शिथिल अधि-
                             मानस की चेतना मदिर -सी
                        तुम वासना  मुक्त    मादकता 
                        तुम शाश्वत- अनुराग -भरित-मन 
                        प्राणों का कर स्पर्श  राग  से -
                        तन मन में भर दिये ज्योति कण || 
                            तुम कोमल नवनीत सदृश हो |
                            शोभा -थकित चकित-सी पलपल||
                            वाणी मधुमय खग कल कूजन |
                            मन जैसे  पावन    गंगा  जल||
                        तुम मेरे प्राणों  की  सम्बल .
                         तुम मेरे मन की अवलम्बन |
                         अन्तस्‌ के गीतो की माला ---
                         से अर्पित करता अभिनन्दन ||
                      
                                                
  

              
      

बुधवार, 5 मार्च 2014

सांस्कृतिक प्रदूषण +++++++
              सम+कृति इन दो शब्दों के योग से संस्कृति शब्द बना है |सम=अच्छी तरह कृति ‌‌‌=किये गये| हृद्य को पवित्र करने                वाली  साधनाओ को संस्कृति कहते है | मानव -मानस- सागर में अनेक प्रकार की भावनाओं का उत्थान -पतन चलता है |भावनाएँ दो प्रकार की होती है- -रागमयी और द्वेषमयी | रागमयी भावनाएँ हृदय से हृदय को जोड़ती है |द्वेषमयी भावनाएँ परस्पर ईर्ष्या घृणा अलगाव पैदा करती है |रागमयी भावनाएँ ही संस्कृति को पुष्ट करती है |दर्शन.धर्म. साहित्य.कला.आचार-विचार >ये संस्कृति के अंग है 
      दर्शन जीवन को देखने की दृष्टि के साथ-साथ सृष्टि जीवन के मूल प्रश्नों पर विचार और समधान प्रस्तुत करता है |दर्शन ही बताता है कि एक ही ब्रह्म है जो सृष्टि के कण-कण में व्याप्त है| धर्म उन नियमों का समूह है जो व्यष्टि-समष्टि के कल्याण के लिए है | धर्म अंत :अनुशासन है | साहित्य और कला भावना और सौन्दर्य के माध्यम से मानवता का दीप जलाती है || हम सब मोती एक लड़ के है > कह कर विश्व बन्धुत्व की भावना की जोत  साहित्य  ने  जलायी है |
       आज ये सारी  भावनाएँ  समाप्त होती जा रही है| भौतिकता की ओर बढ़ते कदमो के कारण जीवन चेतना खत्म हो रही है |
मूल्यहीनता ; निर्वासन और आओ हम अतीत को भूले --यह ही सोच बनती जा रही है | व्यष्टि - हित प्रमुख है | आचार व्यवहार सब मात्र औपचारिकता है | धर्म दर्शन की मूल भावना भौतिकता में कहीं खो गयी है||यही सांस्कृतिक प्रदूषण है || 
     मत सीमित आकार करो रे 
      जीवन का  श्रृंगार करो  रे ||   इसी भावना से  प्रदूषण खत्म  हो सकता है    
              

   

मंगलवार, 4 मार्च 2014

एक  प्रश्न >क्या हम  स्वराज्य  में  रह  रहें  है ? 
यह प्रश्न  है  जो  मानस  के  सागर  में ज्वार बन   कर  उमड़ता  है ।  किसी  गरीब  क़ी  आह  निकलता  है  -कहाँ  है स्वराज्य ? भौतिकता की  नीली रोशनी  ने हमारे  चारो  तरफ एक ऐसी  रेखा खीच दी  है जिसे  पार करने में  हमे हीनता  का आभास होता है  ।  अपनी  भाषा  बोलने में   संकोच  और   हीनता   तो  फिर कैसा  स्वराज्य? 
राजनीति  में  साधन  -साध्य की  एकता  होनी  चाहिए   |  देश के विकास  में तभी  गति  आ सकती  है