महाभारत- एक लघु विश्लेषण-महाभारत हिमालय के आँगन में नये धर्म रूपी सूर्य के उदय के लिये लड़ा गया महायुद्ध था |ऋत्त - - चक्र को व्यवस्थित करने के लिए महाक्रांति का शंखनाद था | राजतंत्र अंधा और विवेकहीन होकर सिंहासन पर बैठता है तो समझो समर का आगाज हो गया | कभी-कभी ऐसी प्रतिज्ञाऐं राजतंत्र से बँध जाती है जो धर्म के सूर्य को अस्त होता देखती रहतीं है पर कुछ कर नहीं कर पाती | अधर्म का अंधकार उन्हें कुछ देखने ही नही देता |अन्याय शोषण अनाचार जब हँसता है और नीति रोती है तो युद्ध होता है |भीष्म की प्रतिज्ञा धृतराष्ट्र की मह्त्व -आकांक्षा और पुत्र मोह ने सत्य को क्रांति के लिए विवश किया | जब धर्म सत्य न्याय विवेक ज्ञान लाक्षगृह में भेजे थे तब महाभारत के लिए कुरुक्षेत्र का मैदान तैयार हो चुका था | बस वह् सोच रहा था कि किसी तरह युद्ध ना हो तो अच्छा है इसमे अधर्म तो मरता ही है धर्म भी अश्रु बहाता है लेकिन जब अधर्म धैर्य हीन और अविवेकी होता है तो महाभारत निश्चित हो जाता है | जब द्यूत क्रीड़ा में छ्ल कपट के पासे डाले जाते है तब चक्र सुदर्शन धर्म को बचाने की तैयारी कर लेता है |और -और प्रतीक्षा -कब अधर्म समझे लेकिन ऐसा हुआ नही |अधर्म ने लज्जा का आवरण हटाने का प्रयास किया तब चक्र सुदर्शन ने लज्जा के चीर को बचाया और मन में युदाध का संकल्प ले लिया | चक्र ने फिर विनीत स्वर पाँच गॉव अधर्म से माँगें | माँगने पर अधर्म ने सूई के बराबर भूमि देने को मना कर दिया तो चक्र ने धर्म की रक्षा के लिए युद्ध की घोषणा कर दी महाभारत धर्म और न्याय की स्थापना के लिए हुआ | जब जब अधर्म नग्न नृत्य करेगा महाभारत को कोई नही रोक सकता ||
बुधवार, 20 अगस्त 2014
मंगलवार, 19 अगस्त 2014
ashadeep
जीवन के रंग भविष्य के संग- प्रधानमंत्री ने अबतक चले आ रहे योजना आयोग को समाप्त करके एक नए आयोग की संरचना की घोषणा करने पर विचार किया है उचित है क्योकि जितनी पुरानी स्वतंत्रता है लगभग उतना ही पुराना है आयोग | भारत जब स्वतन्त्र हुआ था तब समस्याओं का स्वरूप कुछ और था अब कुछ और है |भारत कृषि प्रधान देश है अधिकतार उद्योग कृषि पर निर्भर है कृषि के विकास के पर पहले भी योजनाओं में ध्यान दियागया और हरित् क्रांति के रुप में विकास हुआ |विकास तो अन्य क्षेत्र में भी हुआ है किन्तु 68 वर्षो में जितना विकास होना चाहिए था उतना नही ;भारत 75%से भी जनसंख्या खेती पर निर्भर है |खेती मानसून पर मानसून कभी खुश तो कभी नाराज कहीँ अनावृष्टि तो कहीँ अतिवृष्टि ऐसे में सिंचाई साधनों के विकास पर बल देने की जरुरत है नदियो का समन्वय समुद्र के पानी के पानी के परिशोधन की तकनीक विकसित हो | जब किसान खाली हो उसके लिये लघु योजनाओं को चलाना उत्तम है मानवीय संसाधन को सक्षम बनाने के लिये शिक्षा के हर क्षेत्र में गुणात्मक विकास हो |प्रकृति का उचित दोहन हो | छोटी -छोटी योजनाएँ हो जो कम समय में पूर्ण होकर फल दायी हो जिससे अन्तिम छोर तक विकास का प्रकाश पहुँचे | झोपड़ी में एक बल्व तो जले महानगरों में तो भव्य प्रकाश है | नया आयोग आशा का दीप बने जिसके प्रकाश में भविष्य के संग जीवन के रंगो की रंगोली सजे || इस पर आगे भी विचार लिखे जायेगे|| योजना आयोग के स्थान पर बनने वाले संस्थान के लिए आशा दीप नाम प्रस्तावित करती हूँ |
आशा भटनागर
आशा भटनागर
रविवार, 17 अगस्त 2014
krishan
मूल्य संचेतना के प्रतीक श्री कृष्ण- --कृष्ण पूर्ण मानवता की चरम कल्पना है | भारतीय परम्परा में कृष्ण 16 कलाओं के अवतार है सबके आकर्षण के केन्द्र कृष्ण समग्र चेतना संपन्न विराट् मानव है उनका व्यक्तित्व अनिर्वचनीय शब्दातीत और हर प्रकार की व्याख्या से परे है || इसका कारण है उनके व्यक्तित्व में निषेध तत्त्व नही है | उनके जीवन से जुड़ी सम्पूर्ण कथाएं मिथक हैं ;प्रतीक हैं | उन प्रतीको की सहज व्याख्या अनिवार्य हैं अन्यथा मिथ्या अभिप्राय लिए जाते हैं || कृष्ण ने सारी सड़ी गली परम्पराओ मर्यादाओं को तोड़ा और उनका पुनरुद्धार किया | इन्द्र के गर्व को खंडित करके वैज्ञानिक संचेतना के साथ गोवर्धन पर्वत उठाया था | इसका अभिप्राय यह है कि वर्षा पर ही निर्भर रहना उचित नही है और वर्षा के अतिरिक्त गो-वर्धन [गायों के सम्वर्धन } पर बल दिया | जिससे अर्थ व्यवस्था में सुधार हो | माखन लीला ; मटकी फोड्ना यह सब सामाजिक क्रांति के प्रतीक है जो श्रम करता है उसका फल उसे ही मिलना चाहिए | खेल-खेल में क्रांति का उद्घोष करना कृष्ण का नया क्रांति पथ था |आत्मा परमात्मा के बीच कोई भेद नही है इस तथ्य को समझाने के लिए चीर हरण लीला का प्रतीक प्रस्तुत किया || गोपियाँ प्राय: शुद्ध जीवात्माएँ है | उनके ऊपर का अन्तिम वासना रूपी वस्त्र को हटाना ही चीर हरण था | शांति के सारे उपाय करने के बाद राजतंत्र का गर्व को खण्डित करने के लिए कंस का वध किया और जरासंध का वध कराया |पूरा महाभारत का युद्ध मूल्य प्रतिषठापना के लिए ही हुआ था जिसके महानायक और सारथी कृष्ण ही थे शांति के सारे उपाय करने के बाद जब दुर्योधन ने "सूच्यग्रम् नैव दास्यामि विना युद्धेनकेशव " कहा तब कृष्ण ने महायुद्ध का शंखनाद किया और अर्जुन से कहा युद्धस्व विगतज्वर:-- अब बिना अन्तर्द्वन्द के युद्ध करना है कृष्ण धर्म के सारथी बने | कृष्ण स्वस्थ राजनीतिज्ञ स्वस्थ कूटनीतिज्ञ बनकर मूल्य संचेतना के प्रतीक बने | सामाजिक मूल्यों की रक्षा के लिए अंधविश्वास रूढियों का खंडन किया पर्यावरण शुद्धि के लिए कालिये नाग रुपी प्रदूषण को खत्म किया उनकी सारी रासलीला कुछ प्रतीकों के साथ सांस्कृतिक चेतना की प्रतीक थी |
गुरुवार, 14 अगस्त 2014
sundar h bharat mera
सुंदर है भारत मेरा -- ओ मेरे भारत के माथे सुंदर मुकुट विराजे |
इसको नमन करें||
भारत माँ का मुख रे उज्ज्वल चंदा - सा दमकावै |
झलमल हीरों की माला सा गंगाजल झलकावै ||
रे भइया इसको नमन करें ||
छ:ऋतुएं अप्सरियों- सी सतरंगी साड़ी पहने |
नर्त्तन करतीं आतीं पहने नव फूलों के गहने ||
रे--------------------------||
फूलों की घाटियॉ खगों के कलरव से भर जातीं |
गाते मेघ मल्हार ; कोकिला पंचम स्वर में गाती ||
रे------------------------------||
गेहूँ की बालियॉ ज्वार मक्का के दाने झरते ||
खेतों में रंगों -गंधों के वैभव सपने भरते ||
रे-------------------------||
पर्वों की धरती यह -होली फाग सुनाती आवै |
दीपो की माला से अम्बर को ललचाती जावै ||
रे----------------------------- || राष्ट्र को समर्पित
इसको नमन करें||
भारत माँ का मुख रे उज्ज्वल चंदा - सा दमकावै |
झलमल हीरों की माला सा गंगाजल झलकावै ||
रे भइया इसको नमन करें ||
छ:ऋतुएं अप्सरियों- सी सतरंगी साड़ी पहने |
नर्त्तन करतीं आतीं पहने नव फूलों के गहने ||
रे--------------------------||
फूलों की घाटियॉ खगों के कलरव से भर जातीं |
गाते मेघ मल्हार ; कोकिला पंचम स्वर में गाती ||
रे------------------------------||
गेहूँ की बालियॉ ज्वार मक्का के दाने झरते ||
खेतों में रंगों -गंधों के वैभव सपने भरते ||
रे-------------------------||
पर्वों की धरती यह -होली फाग सुनाती आवै |
दीपो की माला से अम्बर को ललचाती जावै ||
रे----------------------------- || राष्ट्र को समर्पित
बुधवार, 13 अगस्त 2014
geet
आज फिर गीत गुन गुनाना है-------------------------------
आज फिर गीत गुन गुनाना है
राग फिर प्यार का सुनाना है
बाँध ममता की डोर में फिर से-
आज बिछडो का दिल मिलाना है ||
कभी सतलुज की धार रूठी हो-
गर्म हो ब्रहमपुत्र का जल भी ||
आज गंगा के उजले अँचल में-
सारी नदियों का जल बहना है ||
ह्म सभी मोती एक लड के है
हमको लड़ के यहां न रह्ना है
तार सप्तक बजेंगे वीणा में-
स्वर तो फिर एक झन झनाना है |
वत्सला मेरी भारती माता -
इसके अंचल का कर्ज़ बाकी है |
चन्दनी गंध से भरी माटी-
इसको फिर शीश पर चढ़ाना है ||
आज फिर गीत गुन गुनाना है
राग फिर प्यार का सुनाना है
बाँध ममता की डोर में फिर से-
आज बिछडो का दिल मिलाना है ||
कभी सतलुज की धार रूठी हो-
गर्म हो ब्रहमपुत्र का जल भी ||
आज गंगा के उजले अँचल में-
सारी नदियों का जल बहना है ||
ह्म सभी मोती एक लड के है
हमको लड़ के यहां न रह्ना है
तार सप्तक बजेंगे वीणा में-
स्वर तो फिर एक झन झनाना है |
वत्सला मेरी भारती माता -
इसके अंचल का कर्ज़ बाकी है |
चन्दनी गंध से भरी माटी-
इसको फिर शीश पर चढ़ाना है ||
मंगलवार, 12 अगस्त 2014
matushree
हे मात्तु श्री |तुझको प्रणाम>> हे वन्दनीय :अभिनंद्नीय
हे मातुश्री ! तुझको प्रणाम ||
तू धरती माँ ! तू वसुधा है |
तेरा अॅचल है हरा भरा |
दोहन की कला सीखनी है--
जिससे अमृत नित रहे झरा |
तेरे पय से पोषित होकर
कर सकें जगत् में धन्य नाम |
हम करते है संकल्प मात
एकता बनेगी लौह शक्ति |
शत-शत करोड़ कंठो के स्वर
बन एक करेंगे मुखर भक्ति ||
सन्नद्ध रहेंगे हम तत्पर
तेरी रक्षा को अष्टयाम ||
हे मातुश्री ! तुझको प्रणाम ||
तू धरती माँ ! तू वसुधा है |
तेरा अॅचल है हरा भरा |
दोहन की कला सीखनी है--
जिससे अमृत नित रहे झरा |
तेरे पय से पोषित होकर
कर सकें जगत् में धन्य नाम |
हम करते है संकल्प मात
एकता बनेगी लौह शक्ति |
शत-शत करोड़ कंठो के स्वर
बन एक करेंगे मुखर भक्ति ||
सन्नद्ध रहेंगे हम तत्पर
तेरी रक्षा को अष्टयाम ||
सोमवार, 11 अगस्त 2014
PRNAM
हे ! अभिनन्दनीय भारत तुझे प्रणाम- भारत 68वां स्वतन्त्रता दिवस मनाने जा रहा है 15 अगस्त के प्रात: की सूर्य की पहली किरण हमारे तिरंगे का स्वागत करके कहेगी - हे ! अभिनन्दनीय भारत तुझे प्रणाम | हर वर्ष की भाँति के इस बार भी लाल किले से तिरंगा लहरा कर भारत की स्वतंत्रता का संदेश विश्व को मिलेगा | हम स्वतंत्र है अर्थात् अपने तंत्र के अधीन् हमारा अपना शासन -यह भाव जन -जन तक पहुँचाने की आवश्यकता है |अब वो समय आगया है |भारत का जन मानस "स्व" "तंत्र" के सही अर्थों को जाने | 68 वर्षो में भी अभी तक यह हमें लगता क्यों नहीं कि हम स्वतन्त्र है ? इसका कारण स्पष्ट है कि दलित गलित मानसिकता- -- ;लार्ड मेंकाले का प्रभाव जो हमारे मानस पर छाया हुआ है | हम अपनी संस्कृति ; अपनी भाषा ; परम्पराओ ; आदर्शों से दूर् होते जारहे है |इस बार सत्ता परिवर्तन हुआ है | कलम नई सरकार से ऐसी आशा करती है कि देश को लार्ड मेंकाले की नीली छाया से बचाये | आज सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति संचेतना आवश्यक है | हर क्षेत्र का आधार नैतिक चक्र हो |भौतिक -आध्यात्मिक मूल्यों का समन्वय हो राज्य की नीति शुद्ध और पारदर्शी हो | जन कल्याण की भावना की गंगा से ओत प्रोत हो |आर्थिक उन्नति के लिए भौतिक संसाधन और मानवीय संसाधनों की प्रगति आवश्यक है आध्यात्मिकता के गर्भ से उत्त्पन्न विवेक के सूर्य की भी आवश्यक है | मानस ऐसे ही भारत का अभिनंदन करना चाहता है - चेतना नयी हो; नये पथ का वरण
आगे ही आगे हों बढ़ते चरण |
अंधता के कूप में पड़े सड़े गले
जन -मन में सतत ज्योति का झरण |
मानव -संकल्पों के मुक्ति -दंड से-
जड़ता के भूत को भगाते रहो तुम | राष्ट्र को समर्पित भाव
आगे ही आगे हों बढ़ते चरण |
अंधता के कूप में पड़े सड़े गले
जन -मन में सतत ज्योति का झरण |
मानव -संकल्पों के मुक्ति -दंड से-
जड़ता के भूत को भगाते रहो तुम | राष्ट्र को समर्पित भाव
रविवार, 10 अगस्त 2014
asmita
68वां स्वतन्त्रता दिवस -इस बार भारत 68वां स्वतन्त्रता दिवस मनाने जारहा है | दस वर्षो बाद कुछ नया दिखेगा | लाल किले से प्रधान मंत्री मोदी ध्वजा रोहण करेगें || लगता है इस बार भारतीय संस्कृति का तिरंगा लहरायेगा | तिरंगा भारत की अस्मिता का प्रतीक है | इसमे केसरिया रंग तेजस्विता का प्रतीक है | हरा रंग हरियाली का प्रतीक है ; खुशहाली का प्रतीक है श्वेत रंग शान्ति का प्रतीक है |चक्र प्रगति का प्रतीक है || इस बार लाल किले से इस बात का मूल्यांकन होगा कि 68वर्षो में हमने कितनी प्रगति की है ? भविष्य के लिए कुछ संकल्प होंगे यह आवश्यक भी है क्योकि भारत को नये संकल्पों के वितान की आवश्यकता है | आशा हैैं कि एक बार फिर लाल किले से विवेकानंद की स्वर लहरी गूँजेगी | भारत और भारतीय संस्कृति का उज्ज्वलतम रुप विश्व के मानचित्र पर अंकित होगा |दस वर्षो के बाद भारत एक बार फिर अँगड़ाई ले रहा है || जनमानस को नयी सरकार से बहुत उम्मीद है | आज आम आदमी यह चाहता है कि उसे यह लगे कि वह ऐसे वास्तविक रूप से स्वतंत्र है || हमने राजनैतिक स्वतन्त्रता तो प्राप्त कर ली लेकिन मानसिक दासता से अभी स्वतन्त्र नही है | माननीय प्रधानमंत्री से ऐसी आशा है कि वह् भारत को इस दासता से मुक्ति दिलायेंगे || भारत -स्वाभिमान का यह तिरंगा लहर -लहर कर कहे कि मेरी अपनी संस्कृति है "अपनी भाषा है इसके साथ कोई समझौता नही | तिरंगा हमारा मान है शान है वैख्ररी का भाव कुछ इसी प्रकार से है यह भाव हमारी प्रेरणा है - 'चेतना से मन जगमगाते रहो तुम
भारती का कण -कण जगाते रहो तुम ||
भावो की लहरे उठती रहेगी जो राष्ट्र को समर्पित रहेंगी |
भारती का कण -कण जगाते रहो तुम ||
भावो की लहरे उठती रहेगी जो राष्ट्र को समर्पित रहेंगी |
शनिवार, 9 अगस्त 2014
9a 1944
वन्दन का यह दीप समर्पित करते तुमको | श्रद्धा का यह गीत समर्पित करते तुमको || यह वन्दन 9अगस्त1942 के भारत छोडो आन्दोलन में शहीद हु़ए वीरों के लिए है || ऐसे नीव के प्रस्तरो के लिए वैख्ररी का यह भाव समर्पित है| बहिनें रोली तिलक लगाती : दो आँखें आँसू बरसाती | माँ अपने कम्पित हाथों से निज दुलार को पथ दिखलाती मातृभूमि के अॅचल में चिर- निद्रा में सोता बलिदानी | जब तक अमर ज्योति जगती है | तब तक गीत लिखे जायेंगे ||
शुक्रवार, 8 अगस्त 2014
bharti
भारती माँ भारती माँ भारती ;माँ भारती |
हम उठाएँ सूर्य मस्तक पर-हमें तेरी शपथ है |
हम उठाएँ हिम-शिखर भुज-दण्ड में -तेरी शपथ है ||
हम करें भ्रूभंग नभ हो त्रस्त ; गर्जन शांत करले |
हम बढ़े तो सिर झुका - सागर विनय का मौन धर ले |
फूल तारे अहर्निश तेरी उतारें आरती |
भारती माँ भारती माँ भारती ;माँ भारती ||
चेतना नूतन भरे .संकल्प से मन दीप्त कर ले |
वज्र- सा सीना करें हम धमनियों में लौह भर ले |
सतत आगे बढें .शांति-विकास का हो लक्ष्य नूतन |
एक हो सारी धरा सहभागिता का करें वन्दन ||
विजयश्री मणिमाल . मोती हीरको को वारती |
भारती .माँ : भारती :माँ भारती : माँ भारती राष्ट्र को समर्पित | 68वे स्वतंत्रता दिवस का अभिनंदन
भारती माँ भारती माँ भारती ;माँ भारती |
हम उठाएँ सूर्य मस्तक पर-हमें तेरी शपथ है |
हम उठाएँ हिम-शिखर भुज-दण्ड में -तेरी शपथ है ||
हम करें भ्रूभंग नभ हो त्रस्त ; गर्जन शांत करले |
हम बढ़े तो सिर झुका - सागर विनय का मौन धर ले |
फूल तारे अहर्निश तेरी उतारें आरती |
भारती माँ भारती माँ भारती ;माँ भारती ||
चेतना नूतन भरे .संकल्प से मन दीप्त कर ले |
वज्र- सा सीना करें हम धमनियों में लौह भर ले |
सतत आगे बढें .शांति-विकास का हो लक्ष्य नूतन |
एक हो सारी धरा सहभागिता का करें वन्दन ||
विजयश्री मणिमाल . मोती हीरको को वारती |
भारती .माँ : भारती :माँ भारती : माँ भारती राष्ट्र को समर्पित | 68वे स्वतंत्रता दिवस का अभिनंदन
हम उठाएँ सूर्य मस्तक पर-हमें तेरी शपथ है |
हम उठाएँ हिम-शिखर भुज-दण्ड में -तेरी शपथ है ||
हम करें भ्रूभंग नभ हो त्रस्त ; गर्जन शांत करले |
हम बढ़े तो सिर झुका - सागर विनय का मौन धर ले |
फूल तारे अहर्निश तेरी उतारें आरती |
भारती माँ भारती माँ भारती ;माँ भारती ||
चेतना नूतन भरे .संकल्प से मन दीप्त कर ले |
वज्र- सा सीना करें हम धमनियों में लौह भर ले |
सतत आगे बढें .शांति-विकास का हो लक्ष्य नूतन |
एक हो सारी धरा सहभागिता का करें वन्दन ||
विजयश्री मणिमाल . मोती हीरको को वारती |
भारती .माँ : भारती :माँ भारती : माँ भारती राष्ट्र को समर्पित | 68वे स्वतंत्रता दिवस का अभिनंदन
गुरुवार, 7 अगस्त 2014
अनुच्छेद 1 -- हिन्द युवा धनो | अनुच्छेद-2 -तुम पियो गरल वही अमृत बने विकास का |
ज्योति पुत्र साधकों ! तुम हँसो रुदन बने - प्रफुल्ल गीत हास का ||
चेतना नयी भरो
- भारती वसुन्धरा को उज्ज्वल विहान दो तामसी निशा हरो |
तुम चलो ललाट पर दहकता ज्वाल खण्ड हो जन-जन सह भाग ऐक्य के वितान तानदो
श्वास की झकोर क्षिप्र वेग मे प्रचण्ड हो |
तुम जगो धरा जगे | अनुच्छेद -3-तुम बढ़ो तो सिर झुका पहाड़ राह् छोड़ दें |
तुम चढो गगन कॅपे भीत हो समुद्र की हिलोल शोर छोड़ दें ||
दीप्ति के विराट शिखर को नवल उठान दो वक्ष वज्र सा करो
लौह शिरा में भरो |
शांति के कपोत नभ भरें अभय महान् दो |
भारती वसुन्धरा को उज्ज्वल विहान दो
ज्योति पुत्र साधकों ! तुम हँसो रुदन बने - प्रफुल्ल गीत हास का ||
चेतना नयी भरो
- भारती वसुन्धरा को उज्ज्वल विहान दो तामसी निशा हरो |
तुम चलो ललाट पर दहकता ज्वाल खण्ड हो जन-जन सह भाग ऐक्य के वितान तानदो
श्वास की झकोर क्षिप्र वेग मे प्रचण्ड हो |
तुम जगो धरा जगे | अनुच्छेद -3-तुम बढ़ो तो सिर झुका पहाड़ राह् छोड़ दें |
तुम चढो गगन कॅपे भीत हो समुद्र की हिलोल शोर छोड़ दें ||
दीप्ति के विराट शिखर को नवल उठान दो वक्ष वज्र सा करो
लौह शिरा में भरो |
शांति के कपोत नभ भरें अभय महान् दो |
भारती वसुन्धरा को उज्ज्वल विहान दो
मंगलवार, 5 अगस्त 2014
सोमवार, 4 अगस्त 2014
sham
लो यह दिन भी बीता-------2 किरणों के पांखी ने सोनेके पंख धरे |
इंद्र्जाल फैला वह गया जाने किस मग रे |
रक्तिम -सी काई मे सूरज के पग फिसले--|
पश्चिम के सागर में डूब गया तल गहरे ||
किरणों के जाल हुए व्यर्थ खोज लाने में |
हर कोशिश दिन की नाकाम हो गयी ||
लो यह-----------------------------------------------
इंद्र्जाल फैला वह गया जाने किस मग रे |
रक्तिम -सी काई मे सूरज के पग फिसले--|
पश्चिम के सागर में डूब गया तल गहरे ||
किरणों के जाल हुए व्यर्थ खोज लाने में |
हर कोशिश दिन की नाकाम हो गयी ||
लो यह-----------------------------------------------
रविवार, 3 अगस्त 2014
mitrta
मित्रता एक सात्विक भाव है जो मानस सागर की गहराइयों से उठकर मस्तिष्क के आकाश का स्पर्श करता है आज ऐसा भाव कम देखने को मिलता है आज मित्रता का आधार स्वार्थ है या वासना | राम ने वनवास के समय पशु पक्षी नर वानर सब उनके थे |मित्रता के इसी भाव से कृष्ण अर्जुन के सारथी बने सुदामा के चरण अश्रु जल से धोये मित्र भाव ने चावल के दाने पर सारा सुख दे दिया द्रौपदी को सखी माना और उसकी लाज बचाई | मित्र की परख कष्ट की कसौटी पर ही होती है विश्व मित्रता दिवस पर यही कामना है कि सारी वसुधा एक परिवार बन जाए | सभी मित्रों को नमन
शनिवार, 2 अगस्त 2014
jyotit
सूर्य की पहली किरण को नमस्कार सबके लिए आज का दिन शुभ हो |
सरस्वती वंदन ----मंगलमयि ! वर् दो
सत्त्व पूर्ण मधुमय किरणो से भरे रंगे स्वर दो |
टूटे ध्वांत जटिल मायाक्रम ;
छँटे निराशाजन्यमलिन भ्रम |
स्नेहदीप्त उल्लास -मधुरिमा से जीवन भर दो |
यौवन-उष्मा मुकुलित हों तन |
तव उदार ममता पूरित मन |
बुद्धि धवल अद्ध्यात्म ज्योति से ज्योतित कर दो |
सरस्वती वंदन ----मंगलमयि ! वर् दो
सत्त्व पूर्ण मधुमय किरणो से भरे रंगे स्वर दो |
टूटे ध्वांत जटिल मायाक्रम ;
छँटे निराशाजन्यमलिन भ्रम |
स्नेहदीप्त उल्लास -मधुरिमा से जीवन भर दो |
यौवन-उष्मा मुकुलित हों तन |
तव उदार ममता पूरित मन |
बुद्धि धवल अद्ध्यात्म ज्योति से ज्योतित कर दो |
sham
लो यह दिन भी बीता शाम हो गयी
सूरज का रथ आया थक संध्या के द्वारे |
उन्मद हो द्वारिक ने पाटल के दल वारे ||
आगम से प्रियतम के मुग्धा सी सन्ध्या के --
ठगे ठगे नैन जैसे रह गये उघारे ||
लज्जा की लाली-सी दौड़ गयी दूर् तलक ;
प्रीति खुली मुग्धा बदनाम हो गयी |
लो यह दिन भी बीता शाम हो गयी ||
पूना की शाम कुछ ऐसी ही है
सूरज का रथ आया थक संध्या के द्वारे |
उन्मद हो द्वारिक ने पाटल के दल वारे ||
आगम से प्रियतम के मुग्धा सी सन्ध्या के --
ठगे ठगे नैन जैसे रह गये उघारे ||
लज्जा की लाली-सी दौड़ गयी दूर् तलक ;
प्रीति खुली मुग्धा बदनाम हो गयी |
लो यह दिन भी बीता शाम हो गयी ||
पूना की शाम कुछ ऐसी ही है
शुक्रवार, 1 अगस्त 2014
aabhas
प्रकृति गोद भरती फूलों से-
पर्वत सजते हिम -किरीट से |
नदियॉ प्रिय-आलिंगन करतीं -
कोकिल चातक चुहिल किलकते |
रजनी के अँचल में रजनी--
गन्धा -से तारक मुस्काते |
जब तक झरने झरते जाते गीत की सरगम के साथ शुभ सुबह
तब तक गीत लिखे जायेगे
पर्वत सजते हिम -किरीट से |
नदियॉ प्रिय-आलिंगन करतीं -
कोकिल चातक चुहिल किलकते |
रजनी के अँचल में रजनी--
गन्धा -से तारक मुस्काते |
जब तक झरने झरते जाते गीत की सरगम के साथ शुभ सुबह
तब तक गीत लिखे जायेगे
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