गुरुवार, 18 मई 2017

हमारा व्यक्तित्व कैसे बनता है क्या आपका पद आपके व्यक्तित्व को बनाता है क्या महेंगे  कपड़े या आभूषण  बंगला कार अन्य भौतिक सुविधाएँ आपके व्यक्तित्व का निर्माण करती है ! एक शब्द में कलम लिखेगी  `नहीं`!  आपके व्यक्तित्व को बनाता  है आपका सौम्य व्यवहार अपने पद के प्रति समर्पण ! कोई पद  कोई कार्य  छोटा बड़ा नही होता अपनी कार्य शैली से छोटे पद को भी rain bow का फ्रेम दे सकते है ! इस लेखनी केसंपर्क ऐसे कई व्यक्तित्व आये है जो बहुत बड़े पद पर रहकर भी  बहुत विनीत और कर्त्तव्य- निष्ठ है ! कई ऐसे भी  है जो अपनी कार्य शैली से नही अपितु बाह्य तड़क भड़क  से प्रभावित करते है उन्हें अपनी भाषा में बात करने में शर्म महसूस होती है ! अँगरेजी बोलेंगे चाहे ग़लत हो और लोग उनसे प्रभावित भी होते है !  हम अपने भावों विचारों को अपनी भाषा में सशक्त और प्रभाव शाली ढंग से व्यक्त कर सकते है ! भौतिक सुविधाएँ हमारा साधन है साध्य नही है साध्य तो हमारे पद की गरिमा और उससे जुड़े कर्तव्य है पद के अनुरूप ही वेश- भूषा का चयन हो इसी से व्यक्तित्व का बाह्य स्वरूप निखरता है व्यक्तित्त्व बनता है आत्म -विस्तार से! अब आत्म विस्तार  कैसे  हो यह अलग प्रश्न है !कई लोग समान व्यवसाय के ही लोगो से ही मिलना पसंद करते है उन्होंने अपने चारों तरफ़ एक होरा बनाया होता है जिसे अहम् ego  कहा जा  सकता है उससे बाहर निकलने में उन्हें    हीनता  महसूस करते है यह उनके संकीर्ण व्यक्तित्व का परिचायक है "समय नही मिलता है"  यह एक कारण उनके पास होता है जोलोग अहम् को तोड़कर सामाजिक गतिशीलता  में रूचि रखते है  उनका ही आत्म विस्तार होता है  वो समाज में अधिक पसंद किए जाते है ! अच्छा  व्यक्तित्व  मनोदैहिक गुणों का संगठित  रुप है इसमे अनेक पक्ष है जिसका अध्ययन मनोविज्ञान करता है ! यहां में प्रसादजी की कामायनी
 की कुछ पंक्तियां  उद्द्धृत करना चाहूँगी-"सब भेद भाव भुलवा कर दु;ख-सुख को दृश्य बनाता ;
                                   मानव कह रे !"यह मै हूँ "यह विश्व नीड़ बन जाता |









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