रावण अभी मरा नही --हर वर्ष विजयदशमी मानते है अधर्म पर धर्म की विजय का पर्व है यह सत् की असत्त् पर विजय का पर्व है हर वर्ष रावण मारते है लेकिन पता नही क्यो ऐसा लगता है कि रावण मरा ही नही रावण मरेगा कैसे वह तो हमारे अन्दर छिप कर बैठा है जो मारता है वो किसी कलाकार की कृति है जिसमे महिनों श्रम करके रंग भरें है जब रावण जलता है तो उसे दुःख होना चाहिए लेकिन वह् खुश होता है क्योकि उसकी कलाकृति की रावण जलने से पहले खूब प्रशंसा होती है |अब जरा विचार करे बुराई एक प्रतीक को बनाने में महीनों का श्रम लगा पैसा लगा | हजारों लोगों को साक्षी बनाकर उसे जलाया जाता है खूब ख़ुशियाँ मनाते है कि आज बुराइयों के प्रतीक रावण को जला दिया लेकिन आस पास देखा तो रावण तो हँस रहा है वो तो अभी जिंदा है उसके सबसे बड़ा सिर तो अहंकार ही है फिर लोभ लालच मद मोह माया ईर्ष्या द्वेश वासना आसक्ति यह सब रावण के दस सिर है जब यह सब खत्म हो तब समझो हमने रावण को जीता | राम ने जिस रावण को मारा था वह परम् ज्ञानी और राजनीति का प्रकांड पंडित था | तिनके ओट में सीताजी बात करती थी | उसका साहस नही था कि वो सीता जी के साथ कोई अमर्यादित बात करे | मात्र कुदृष्टि रखने पर ही वह् पाप का भागी बना शिव भक्त होने पर भी उसमें अहंकार था |उसने एक समुदाय को असभ्य कह कर राज्य से निष्कसित कर दिया था |रावण ने अपने भाई विभीषण को लत मार कर सभा से बाहर कर दिया था रावण निरंकुश राजतंत्र का प्रतीक था इसीलिये राम ने उसका वध किया |आज रावण कितने रूपों में है सबसे बुरा रुप तो वासना का है जो डेढ़ वर्ष की बच्ची को भी हवस का शिकार बनाता है | एक बुरा रुप वो है जो देश रुपी वृक्ष की डालें काट कर अपना घर भरता है गरीब की झोपड़ी में दिया भी नहीं जलता भव्य स्वर्ण भवनों में रोशनी का कोई आर पार नही ऐश्वर्य तो उनका दास है ये गरीबों का हक् छीन कर ऐश करना उनका अधिकार है इन रावणों को कौन मरेगा ? सोचो| देश को आज ऐसे रक्षक राम की जरूरत है सबको राम बनने की जरूरत है| आशा भटनागर ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें