गुरुवार, 2 अक्तूबर 2014

नमामि भक्त वत्सलम्--- भारतीय वांगमय[वांड्मय} की शोभा है राम कथा और उसके कौस्तुभ मणि  है श्री राम || वैसे तो रामकथा का  प्रथम उन्मेष वाल्मीकि रामायण से है उसके बाद से राम कथा  की सरिता अखंड रूप से प्रवाहित रही| कालिदास ने रघुवंश में भी राम कथा  है | उत्तर रामचरित भवभूति  का प्रसिद्ध नाटक है  लेकिन तुलसी ने रामचरित मानस   में रामकथा की ऐसी भागीरथी प्रवाहित  की कि जितना स्नान करो उतना कम लगता है केशव की रामचंद्रिका और फिर गुप्त जी का साकेत |साकेत में उर्मिला केन्द्र में है किन्तु साकेत में राम का जो स्वरुप प्रस्तुत किया है वह आज  सब  के लिए प्रेरक है |  राम के माध्यम से पर्यावरण के प्रति सजगता  : कर्म निष्ठ्ता : आत्म विश्वास  को   है समाज में सबका मर्यादित व्यवहार हीअपेक्षित है राम ने स्वयम् कहा कि में आर्यों के आदर्श  को बताने आया हूँ  | जो शापित है  भय ग्रस्त  है राम उनके विश्वास है | राम का मनुष्यत्व धारण करने का  उद्द्येश्य  आत्म सुख नही है  अपितु दूसरो का दुःख दूर् करना ही प्रमुख  है  वह करुणानिधि है साकेत में राम नर में ईश्वरता का आभास कराने का प्रयास कराते है |  
         राम कहते है कि भव में नव वैभव व्याप्त कराने  आया 
                          नर को ईश्वरता प्राप्त करने आया 
                         संदेश यहां मै नही स्वर्ग का  लाया 
                         इस भूतल को ही स्वर्ग बनाने आया |
जिनको रावण राज्य में असभ्य वानर कह कर अलग कर दिया था | राम  ने उन्हे गले लगाया और कहा "बहु जन वन में है बने ऋक्ष-वानर से में दूँगा अब आर्यत्व उन्हें निज़ कर से"राम ने   इन लोगों  में शिक्षा और संस्कृति के विकास की बात कही|आज की राजनीति के लिएराम का चरित्र प्रेरणा है || सामाजिक व्यवस्था  के लिए प्रकाश  की किरण है  राम इसलिए भगवान है क्योकि उन्होंने सदेव अपरिमित वर्ग के कल्याणका चिंतन किया इसीलिये राम ईश्वर है राम धर्म स्वरूप है राम का विरोध धर्म का  विरोध  है धर्म का विरोध है राम का  विरोध है  राम वो विराट  चेतना है जो सब में  रमण  करती  है अथवा सब जिसमें रमण  करते है  

         

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