मंगल उत्सव -----| रचयिता के. जे. भटनागर
यह मंगल उत्सव का क्षण है |
उस मधुमय की लीला चेतन |
उस विराट् का वैभव नर्तन |
उसके पदचापो की अस्फुट
ध्वनि मिश्रित पायल की रुनझुन |
कण-कण अणु-अणु में बिखरी जो :
सुन तन्मय होने का क्षण है || यह-----
नीरस शोभा हीन जगत् के
ये भौतिक बंधन जड़ लगते |
रूखे ह्रदयहीन बंधों के
निर्मम भावों के शव ढोते ||
उस उल्लास मधुर सागर में
डूब डूब तिरने का मन है || यह--------
तुम आओ : विराट् बाहों में
लो मुझको सायास बाँध लो
आलोकों के मधु वैभव मे
श्वासो के उदगीथ साध लो
प्रिय के मधुर मिलन के क्षण में
जाग-जाग सोने का मन है | यह------शब्द रंग -आशा भटनागर
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