गुरुवार, 12 फ़रवरी 2015

utasav


 मंगल उत्सव -----| रचयिता के. जे. भटनागर 
  यह मंगल उत्सव का क्षण है |
     उस मधुमय की लीला   चेतन  |
     उस विराट् का  वैभव   नर्तन |
     उसके पदचापो की    अस्फुट 
     ध्वनि मिश्रित पायल की रुनझुन |
  कण-कण अणु-अणु में बिखरी जो :
   सुन तन्मय होने का   क्षण है || यह-----
       नीरस   शोभा हीन  जगत्   के 
     ये भौतिक  बंधन   जड़  लगते |
     रूखे   ह्रदयहीन  बंधों    के 
     निर्मम भावों  के  शव   ढोते ||
 उस उल्लास   मधुर    सागर में 
 डूब डूब  तिरने का  मन  है || यह--------
    तुम आओ :   विराट् बाहों में
    लो मुझको सायास बाँध  लो
    आलोकों के मधु वैभव मे
श्वासो के उदगीथ साध   लो 
 प्रिय के मधुर  मिलन के क्षण में 
    जाग-जाग सोने का  मन  है | यह------शब्द रंग -आशा भटनागर




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