सोमवार, 25 मई 2015

sandhya

 संध्या के तट पर पक्षियों का कलरव  ऐसा लग रहा है जैसे मंगल गान कर रहे हो फूल खुश  हो कर  अपना सौरभ यत्र तत्र  फैला रहे है मानो कह रहे हो कि हम काँटों मेँ भी रह कर खुश है और मनुष्य  अतिसुख पाकर भी दुखी है  यह व्यथा महा नगरों की है सबसे बडी बात है मन की संतुष्टि | शुभ संध्या

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