संध्या के तट पर पक्षियों का कलरव ऐसा लग रहा है जैसे मंगल गान कर रहे हो फूल खुश हो कर अपना सौरभ यत्र तत्र फैला रहे है मानो कह रहे हो कि हम काँटों मेँ भी रह कर खुश है और मनुष्य अतिसुख पाकर भी दुखी है यह व्यथा महा नगरों की है सबसे बडी बात है मन की संतुष्टि | शुभ संध्या
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