मातृ दिवस पर विशेष-जसोदा हरि पालने झुलावै
हुलरावै दुलरावै मल्हावै जो सोई कुछ गावै
मेरे लाल को आओ निदरिया काहे न आनि सुलावै
तू काहै न बेगि सो आवै तोको कान्ह बुलावै |---------------
आज मातृदिवस है | माँ बालक का पालन पोषण करती है | संस्कार देती है | वो ही बालक की प्रथम शिक्षिका भी है विश्व के महान् दार्शनिक वैज्ञानिक और संतो को रुप आकार देने वाली माँ है | मातृभूमि के लिये बलिदान होने की शिक्षा भी माँ देती है लेकिन आज सन्दर्भ बदलने लगे है |आज आर्थिक प्रतिस्पर्धा का युग है | भौतिक सुविधाओंं के प्रति आकर्षण भी बढ़ता जा रहा है | महिलाओं को बाहर जाना ही होता है बच्चों को नौकर या आया पर छोड़ना पड़ता है | बच्चा आया के संस्कारों पर पलता है | यह सब अब अत्यन्त आवश्यक होता जारहा है | मातृत्व का बोझ लेने की इच्छा क्षीण होती जारही है | सहजीवन व्यतीत करना सहज लगने लगा है वात्सल्य और ममत्व को ग्रहण के साथ दायित्व भी बढ़ता है जिसे उठाना मुश्किल लगता है | मातृ-दिवस पर यह विचारणीय है
हुलरावै दुलरावै मल्हावै जो सोई कुछ गावै
मेरे लाल को आओ निदरिया काहे न आनि सुलावै
तू काहै न बेगि सो आवै तोको कान्ह बुलावै |---------------
आज मातृदिवस है | माँ बालक का पालन पोषण करती है | संस्कार देती है | वो ही बालक की प्रथम शिक्षिका भी है विश्व के महान् दार्शनिक वैज्ञानिक और संतो को रुप आकार देने वाली माँ है | मातृभूमि के लिये बलिदान होने की शिक्षा भी माँ देती है लेकिन आज सन्दर्भ बदलने लगे है |आज आर्थिक प्रतिस्पर्धा का युग है | भौतिक सुविधाओंं के प्रति आकर्षण भी बढ़ता जा रहा है | महिलाओं को बाहर जाना ही होता है बच्चों को नौकर या आया पर छोड़ना पड़ता है | बच्चा आया के संस्कारों पर पलता है | यह सब अब अत्यन्त आवश्यक होता जारहा है | मातृत्व का बोझ लेने की इच्छा क्षीण होती जारही है | सहजीवन व्यतीत करना सहज लगने लगा है वात्सल्य और ममत्व को ग्रहण के साथ दायित्व भी बढ़ता है जिसे उठाना मुश्किल लगता है | मातृ-दिवस पर यह विचारणीय है
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