रविवार, 10 मई 2015

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मातृ दिवस पर विशेष-जसोदा हरि पालने झुलावै
                  हुलरावै दुलरावै मल्हावै जो  सोई कुछ  गावै
                  मेरे लाल को आओ निदरिया काहे न आनि सुलावै
                  तू काहै न  बेगि सो आवै तोको कान्ह  बुलावै |---------------
आज मातृदिवस है | माँ बालक का पालन पोषण करती है | संस्कार देती है | वो ही बालक  की प्रथम शिक्षिका भी है विश्व के महान् दार्शनिक वैज्ञानिक और संतो को   रुप आकार  देने वाली माँ है | मातृभूमि के लिये बलिदान  होने की शिक्षा भी माँ देती है लेकिन आज सन्दर्भ बदलने लगे है |आज आर्थिक प्रतिस्पर्धा का युग है | भौतिक सुविधाओंं के प्रति आकर्षण भी बढ़ता जा रहा है | महिलाओं को बाहर जाना ही होता है बच्चों को नौकर या आया पर छोड़ना पड़ता है | बच्चा आया के संस्कारों पर  पलता है | यह सब अब अत्यन्त आवश्यक होता जारहा है | मातृत्व  का बोझ लेने की इच्छा क्षीण होती जारही है | सहजीवन व्यतीत करना सहज लगने लगा है  वात्सल्य और ममत्व  को ग्रहण के साथ दायित्व भी बढ़ता  है  जिसे उठाना मुश्किल लगता है | मातृ-दिवस पर यह विचारणीय है

      

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