सोमवार, 28 दिसंबर 2015

raj hans

मेरे मन का राज हंस बोला मुझसे: जीवन  विराट है इसमे कहीँ उपवन है तो पहाड  तो  पठार कही झरने है तो कहीँ दुर्गम घाटिया  कभी  घना जंगल | उपवन में फूल  तुम्हे ही खिलाने है | पहाड़ और पठार के बीच  तुम्हें ही पगडंडी  बनानी है | घने जंगल में से रास्ता तुमको ही निकालना है |  मेरे मन का राज हंस  बोला झरनो कि कल - कल में संगीत है उसे सुनो  फूलों की महक  अपने भीतर महसूस करो  | मन के राजहंस से मैंने कहा हम तो प्रकृति से बहुत दूर् जा रहे है  जीवन आपा धापी के मार्ग पर चल रहा है  निराशा घुटन  भौतिक सुखो की लालसा  उसे संग्रहण करने कामना  के कारण प्रकृति का  विद्रुप रुप ही नज़र  आता है | सुख और सुख यही लक्ष्य रहा गया है |मन के राज हंस ने कहा आओ मेरे पास बैठो सुनो यमुना के तीर से आने वाली ध्वनि इसमे है कृष्ण की वंशी के स्वर | जो हमेशा शुभता की ओर ले जाती है |मानस में शुभता -शुभ्रता होगी तभी संगीत सुन पाओगे |मन के राज हंस ने कहा कि सबको शुभ संध्या कहो |



















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