सोमवार, 29 सितंबर 2014

kanyapoojan

कन्या पूजन की सार्थकता -अब अष्टमी आ रही है घर -घर से कन्याओं  को पुकारा जायेगा बहुत अच्छा हे यह सब |   मानस के सागर में अनेक प्रश्न  ज्वार भाटे की तरह उठते रहते है क्या वास्तव में हम कन्या पूजन के अधिकारी  है? क्या बालिका जो अभी नन्हीं सी कली है उसको खिलने का अवसर समाज  में मिलता  है | कितनी सुरक्षित है वह? प्रतिदिन दूरदर्शन कहता है कि नाबालिक हवस का शिकार हुई | स्कूल हो ; पार्क  हो सड़क हो सब जगह  हवस उसका पीछा करती रहती है | आज कन्या पूजन है कल वही कन्या हवस  का शिकार होगी | मध्यकाल में सुरा सुंदरी का चलन प्रारम्भ हुआ था तब समाज में अनेक विकृतियां उत्पन्न हुई थी अनेक महान विभूतियों  के प्रयासों से  भारत  में चेतना का सूर्य उदित हुआ अभी उसका पूरा प्रकाश फैला भी नही है कि भारत के व्योम पर काले बादल दिखने लगे है  बाल विवाह :कन्या भ्रूण हत्या: जैसी समस्याएँ पुन; जीवित होगी| जब तक बालिका का कंचिका का कौमार्य सुरक्षित नही है तब तक कन्या पूजन का कोई अर्थ नही | अष्टमी  एक संकल्प दिवस 'कन्या सुरक्षा  दिवस"  के रुप में आयोजित  होना चाहिए | सरकारी स्तर पर कितने प्रयास हो आवश्यकता है मन के भीतर के शिव संकल्प की | ऐसा नही हुआ तो हर घर में दुर्गा होगी जो अनेक रुप में रक्तबीज जैसे राक्षस का संहार करेगी | कन्या तो गंगा है कन्या सोन परी सी परिवार को सजाती है रिमझिम सी शांत  भी रहती है झिलमिल तारा सी चमकती है | सभी बौद्धिक वर्ग  से निवेदन है कि कन्या पूजन को सार्थक करे  

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