शब्दों का उपहार पहली बार-
तुम मेरे प्राणों की परिमिति
तुम मेरे स्पंदन की भाषा |
ओ मेरे उल्लास मधुर स्वर--
तुम मेरे जीवन की आशा ||
तुम मेरे श्वासो की सरगम
तुम गतिलय मेरे गीतो की
ओ मेरे उत्ताप-शिथिल अधि-
मानस की चेतना मदिर-सी |
तुम वासना मुक्त मादकता
तुम शाश्वत अनुराग-भरित-मन |
प्राणों का कर स्पर्श राग से-
तन मन में भार दिए ज्योति कण
तुम कोमल नवनीत - सदृश हो
शोभा-थकित्त चकित-सी पल-पल ||
वाणी मधुमय खग कल- कूजन |
मन जैसे पावन गंगा जल ||
तुम मेरे प्राणों की सम्बल ;
तुम मेरे मन की अवलम्बन |
अंतस् के गीतो की माला --
से अर्पित करता अभिनंदन
तुम मेरे प्राणों की परिमिति
तुम मेरे स्पंदन की भाषा |
ओ मेरे उल्लास मधुर स्वर--
तुम मेरे जीवन की आशा ||
तुम मेरे श्वासो की सरगम
तुम गतिलय मेरे गीतो की
ओ मेरे उत्ताप-शिथिल अधि-
मानस की चेतना मदिर-सी |
तुम वासना मुक्त मादकता
तुम शाश्वत अनुराग-भरित-मन |
प्राणों का कर स्पर्श राग से-
तन मन में भार दिए ज्योति कण
तुम कोमल नवनीत - सदृश हो
शोभा-थकित्त चकित-सी पल-पल ||
वाणी मधुमय खग कल- कूजन |
मन जैसे पावन गंगा जल ||
तुम मेरे प्राणों की सम्बल ;
तुम मेरे मन की अवलम्बन |
अंतस् के गीतो की माला --
से अर्पित करता अभिनंदन
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