मंगलवार, 9 दिसंबर 2014

      शब्दों का उपहार पहली बार-
 तुम मेरे प्राणों की परिमिति
 तुम मेरे  स्पंदन  की  भाषा |
 ओ मेरे उल्लास मधुर स्वर--
 तुम   मेरे जीवन  की आशा ||
    तुम मेरे श्वासो की सरगम
    तुम गतिलय मेरे गीतो की
    ओ मेरे उत्ताप-शिथिल अधि-
    मानस की  चेतना मदिर-सी |
  तुम वासना  मुक्त   मादकता
  तुम शाश्वत अनुराग-भरित-मन |
  प्राणों का कर  स्पर्श  राग से-
  तन मन में भार दिए ज्योति कण
       तुम कोमल नवनीत -  सदृश हो
       शोभा-थकित्त चकित-सी पल-पल ||
       वाणी मधुमय खग कल- कूजन |  
       मन  जैसे  पावन     गंगा जल ||
   तुम मेरे प्राणों  की   सम्बल ;
   तुम मेरे मन  की     अवलम्बन |
   अंतस्  के   गीतो    की माला --
   से  अर्पित  करता      अभिनंदन

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