शनिवार, 6 दिसंबर 2014

kalam

शिक्षक की कलम से- शिक्षक पद गरिमा से  पूर्ण पद है वह राष्ट्र  का भविष्य बनाता है ऐसे  भविष्य निर्माता को बहुत को हल्के से लिया जाता है विशेषकर हिन्दी और संस्कृत के शिक्षक को अत्यन्त  दयनीय  बनाकर प्रस्तुत किया जाता है यहां तक कि जितने भी धारावाहिक या चलचित्र है उनमें शिक्षक को विदूषक के रुप में प्रस्तुत किया जाता है यह अनुभव इस कलम ने विद्यार्थी काल से किया है तब भी क्षोभ होता था आज भी है इस प्रसंग कई बार समाचार पत्रो में लिखा भी है || एक बार एक साक्षात्कार में कुछ लड़कियों से जीवनसाथी के चयन के बारे में पूछा तो प्रथम वरीयता थी प्रशासनिक अधिकारी की दूसरी वरीयता चिकित्सक तीसरी इंजीनियर चौथी वरीयता में बेचारा शिक्षक  जब मेरे परिवार  में मुझ से पूछा गया तो मैंने चौथी वरीयताको अपनी प्रथम वरीयता बताया बात यहां नहीं खत्म होती शिक्षक में भी भेद  करके देखा जाता है यह हिन्दी का शिक्षक है या अँग्रेजी का |अँगरेजी का होगा स्मार्ट होगा और हिन्दी का होगा तो मोटा चश्मा पहने होगा विदूषक की कल्पना साकार की जाती है मुझे आज तक यह बात समझ में नहीं आयी कि अँगरेजी जानकर कौन सा ज्ञान बढ़ जाता है  हमारे संस्कृत साहित्य में सारा ज्ञान है और विदेशियों ने इस का अध्ययन  किया और अपनी मोहर लगा दी | योग विश्व को भारत की देन है मानसिक दासता से ग्रस्त लोगो को योग  कहने में शर्माते है योगा कहते है |अँगरेजी का मारा समाज  किधर जा रहा है एक साधारण व्यक्ति रोटी बाद में खायेगा अपने बच्चों को तथाकथित अँगरेजी स्कूल में पढाकर गर्व महसूस  करता है चाहे उसको अँगरेजी समझ ना आती हो इन्ही अंगरैज़ी  स्कूलों में एक शिक्षिका का नए तरीके से अपमान होता है और एक समाचार  बन कर रह जाता है | एक बच्ची दो  चोटी  करके काजल लगाकर आती है तो उसे सजा मिलती है| कब मेरा देश इस दलित गलित मानसिकता निकलेगा शिक्षकत्व कब आदर पायेगा कब मेरी साथ यह कहेगा गर्व से कहो  कि हम शिक्षक है हिंदी पढ़ाते  है जो अँगरेजी  से ज्यादा शक्ति शाली है जो हमारे राष्ट्र की अस्मिता है

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