धरती दिवस के उपलक्ष्य में लिखी कविता "कल्पना के गीत तुमने-----" उत्कृष्ट रचना है जो यह स्मरण कराती है कि धरती हमारी माँ है |माता: भूमि: पुत्रो अहम् पृथिव्या:|| धरती मेरी माता है में उसका पुत्र हूँ | धरती सदा अपनी संतान के लिए मंगल कामना करती है | यह धरती उत्सव मेलों से भरी है लेकिन मानव के स्वार्थ ने इसको विद्रूप बनाना शुरू कर दिया है | इसको चाहिए समता ममता और शुभ संकल्प के दीपों की आराधना | इसको सत्य शिव सुन्दरम् के पुष्प चाहिए || क्षमता न्याय प्रियता के गीत इसको पसंद है |यह नही चाहती कि सकीर्ण मानसिकता की कीचड़ इसके आँचल अपावन करे | जब कभी भी यह शोषण के दानव को विहंसता देखती तो हिल जाती है | यह क्रोधित होती है |इसका यह क्रोध कभी अतिवृष्टि तो कभी भूकंप के रूप में प्रकट होता है | धरती चाहती है कि इसके आँगन में श्रम की पूजा हो | श्रमिक को उसकी मेहनत फल मिलें | धरती -पुत्रों के श्रम का सम्मान होना चाहिए -- वैखरी का भाव है---
तुम धरती के बेटे . मिट्टी में रच पच कर बीजों की लहलही फ़सल का स्वर्ग बनाते |
हल की फालो की तीखी कलम बनाकर ; धरती के सीने पर महाकाव्य लिख जाते |
श्रद्धा और वंदन का भाव धरती के बेटे को समर्पित है |
तुम धरती के बेटे . मिट्टी में रच पच कर बीजों की लहलही फ़सल का स्वर्ग बनाते |
हल की फालो की तीखी कलम बनाकर ; धरती के सीने पर महाकाव्य लिख जाते |
श्रद्धा और वंदन का भाव धरती के बेटे को समर्पित है |
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