बुधवार, 22 अप्रैल 2015


 कल्पना के गीत तुमने बहुत गाये |
 लो धरा का गीत सुन लो में सुनाता ||
      वक्ष से जिसके सुधा की  धार बहती |
      वह  धरा जो पावनी मंगलमयी  है||
      चेतना के स्पर्श से जड को जगाती |
      मातृ रूपा वत्सला मंगल मयी  है ||
  उस धरा -वंदन - नमन के स्वर सुनता |
  लो धरा का गीत सुन लो  में सुनाता ||
     यह धरा है :  आदमी रहता यहाँ  है |
     आदमी जो सृष्टि की अनुपम कला है |
     आदमी है : प्यार का उत्सव  यहाँ है ||
     राग का  आलोक ऐसा फिर  कहाँ ?          
 मानवी उत्कर्ष की   गाथा    सुनाता |
 लो धरा का गीत सुन लो ; में सुनाता ||
     यह धरा तो उत्सवों -मेलों भरी है |
    चटखती  कलियां यहाँ मधुरस लुटाती |
    नूपुरी  झंकार की  मादक हँसी   भी
    खेत की पकती फ़सल के गीत गाती
 धरा के मधु मिलन के चिर स्वर सुनाता ----  वैखरी का भाव- कवि  के. जे. भटनागर
लो-----------------------------------------आशा भटनागर


   















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