शुक्रवार, 4 जुलाई 2014

> राजनीति में मूल्य संचेतना >राजनीति एक प्रकार से राज्य नीति है जो देश की व्यवस्था को चलाने के लिए पतवार का कम करती है लेकिन अब राजनीति एक लक्षणा बन गयी है |परस्पर विवाद तो राजनीति है परस्पर मतभेद तो राजनीति है कहने का अभिप्राय है कि व्यंग आरोप प्रत्यारोप राजनीति है | इसी रंग में रंगी है राजनीति किन्तु इससे राजनीति [राज्य की नीति] का वास्तविक स्वरूप धूमिल हो रहा है स्वच्छ राजनीति जो देश के संचालन का मापदंड है |उसको मूल्यों का आधार चाहिए | मूल्य नैतिक मापदंड है जो विवेक का सूर्य प्रकाशित करते है जो ह्मारे जीवन को संयमित करता है मूल्य एक प्रकार का ऋत् चक्र है जिसका पालन राम ने भी किया था | राम ने विराट नैतिक चक्र की रक्षा के लिए राक्षसो का वध किया बाली का वध किया |रावण का वध किया कृष्ण ने भी जब अधर्म अविवेक को राज्य की नीति पर हावी होते देखा तो अर्जुन को धर्म की रक्षार्थ युद्ध की प्रेरणा दी | आज भारतीय व्योम पर अनेकनेक समस्याए ही इसका कारण यही है कि विराट नैतिक चक्र की आवेह्लना हो रही है स्वार्थ के लिए प्रकृति से अनाचार सामाजिक मर्यादाओ की हत्या : मै ही सुखी रहू बस |ऐसी धारणा ही राज्य की नीति को विद्रुप करती है >

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें