मन में ऐसी प्यास भरो रे----जैसी प्यास पपीहे के प्राणों में :
तड़पन भर जाती है ----------|
प्रिय की सुधा - वृष्टि मे रच-पच
गीत मधुर पी-पी जाती है |
ऐसी प्यास कि जिसको गंगा जल -
न तॄप्ति का कण दे पाता |
ऐसी प्यास कि जिससे टूक -टूक |
हो जाये जग से नाता
मीठी स्वप्निल अगन जगाए
मन में ----------------------- परम् पिता परमात्मा का वंदन शुभ सुबह
तड़पन भर जाती है ----------|
प्रिय की सुधा - वृष्टि मे रच-पच
गीत मधुर पी-पी जाती है |
ऐसी प्यास कि जिसको गंगा जल -
न तॄप्ति का कण दे पाता |
ऐसी प्यास कि जिससे टूक -टूक |
हो जाये जग से नाता
मीठी स्वप्निल अगन जगाए
मन में ----------------------- परम् पिता परमात्मा का वंदन शुभ सुबह
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