सोमवार, 14 अप्रैल 2014

bhavana

 भावना - -हनुमानजी हमारे आदर्श है | आराध्य है |  हमारे सारे कष्टों को दूर् करते है कलम उनको शत् शत् नमन करती है
         पवन तनय संकट हरन मंगल  मूरति   रुप
         राम लखन सीता सहित हृदय बसोहु सुर भूप
हनुमान राम के भक्त थे |उनकी भक्ति कोई साधारण नही थी | राम तो उनके रोम रोम में थे |उनके हृदय में थे | अपने राम के लिए वो सब कुछ करने को  तैयार थे |राम  भी उनकी अगाध श्रद्धा को देख् भाव विवह्ल होते थे |राम उनके सेवा समर्पण के आगे नत मस्तक थे| राम ने उनके सेवा भाव और उपकार का वंदन करते हुए कहा है .>सुनु कपि तोहि समान उपकारी  नही कोउ सुर नर मुनि तनुधारी | अपने आराध्य  के गुणों को धारण करते हुए राम के सेवक बने रहे अपने सेवा भाव से ही सबके पूज्य बने
         ह्नुमानजी ने यह सिद्ध किया कि कोई व्यक्ति पद के कारण महत्व पूर्ण नही  होता अपितु अपनी कर्त्तव्यनिष्ठा से पद को मह्रत्त्व्पूर्ण बना देता है |  

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