शनिवार, 12 अप्रैल 2014

vyatha

भारत की व्यथा - मैँ भारत हूँ | अपना दर्द कई वर्षों से सीने मे दबाये बैठा हूँ | दर्द क्या है यह सब जानते है पर इसका इलाज कोई नही करता | अपराध करके भी अपराध बोध नहीं | देश भक्ति या मेरे प्रति समर्पण दिखाना तो मात्र दिखावा है अन्दर ही अन्दर ये लोग मुझे  बहुत घाव दे रहे है | भ्रष्टाचार. महँगाई .घोटाले बलात्कार यह सब क्या है | मेरी सीमाओं पर मेरे रक्षकों का जब रक्त बहता है तो काँप उठता हूँ |मेरे भीतर भी  कोलाह्ल मेरे बाहर भी कोलाहल  | ऐसा क्यों? अफसोस जब बाढ़ ही खेत को खायेगी तो फिर खेत का रक्षण कैसे होगा |में तो ऐसा ही देख् रहा हूँ | तुलसीदासजी ने कहा है > मुखिया मुख सो चाहिये खान पान कहॅ एक पालै पौसै सकल अंग तुलसी सहित विवेक | आज तो ऐसा नही हो रहा है | मुखिया का मुख तो अपना ही पेट भर रहा है| सन् 2014 में चुनाव से नेतृत्व बदलेगा | कौन मुझे प्राण वायु देगा ?अनीति  अनीति   से जब हाथ मिलायेगी तो मेरे चारों ओर अ‍ॅधेरा ही है| मेरी जनता से विनती  है कि अविवेक के कुहासे को हटाओ और विवेक के सूर्य जाग्रत करो | जो देश के हित में है वो कार्य करो | ओ मेरे जन मानस कोयल और  कौआ > >>> इन दोनों के मध्य अन्तर करना सीखो |संविधान में तुम्हें जो गौरव प्राप्त है उसकी रक्षा तुम्हे ही करनी है |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें