शुक्रवार, 7 मार्च 2014

नारी शक्ति को नमन-------हे सर्वं मंगले ! तुम महती:
        अपना दुःख अपने पर सहती |
                    कल्याणमयी वाणी कहती :
          तुम क्षमा निलय में हो रहती ---प्रसादजी ने उपर्युक्त पंक्तियों में नारी को कल्याण स्वरूपा कह कर नमन किया है | आज नारी सशक्तिकरण की बात बार-बार कही जा रही है |साहित्य मे तो यह बात हमेशा कही गयी है | एक नहीं दो-दो मात्राये नर से भारी नारी कह कर नारी को शक्ति प्रदान की गयी है |प्रश्न यह है कि जब नारी को देवी:श्रद्धा कहा गया तो फिर नारी कब और क्यों अक्षम हो गयी? समय -समय पर नारी की स्थिति में परिवर्तन हुआ है | मनु- स्मृति में कहा गया है कि जहां नारी की पूजा होती है वहां देवताओं का निवास होता है धीरे- धीरे नारी की स्थिति बदलने लगी | रामायण काल में धोबी के कहने मात्र से सीता -निष्कासन से नारी की गरिमा के आगे प्रश्न लग गया ?महाभारत काल में नारी के चीर -हरण करने  का प्रयास किया गया | मध्य काल में नारी भोग्या बन कर राह गयी | पुन ; जागरण काल में  नारी के  उत्थान के प्रयास हुए |आधुनिक काल में नारी ने स्वयं की पह्चान बनायी |लेकिन नारी यहां भी अक्षम रही | मैँ नीर भरी  दुःख  बदली कह कर दर्द को व्यक्त किया |आज स्थिति यह कि महानगरीय नारी विद्रोह कर रही है | ग्रामीण अँचल में चेतना की किरण क्षीण है| मध्यम वर्ग की नारी अभी भी संघर्ष रत है ऐसी ही नारी को  कलम  नमन करती है || प्रसाद्जी के शब्दों में------------  नारी ‍‍‍! तुम केवल श्रद्धा हो                   
                                             विश्वास रजत पग तल में  
                                              पीयूष स्त्रोत सी बहा करो
                                              जीवन के सुन्दर समतल मॆं       
                                             

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