मंगलवार, 4 मार्च 2014

एक  प्रश्न >क्या हम  स्वराज्य  में  रह  रहें  है ? 
यह प्रश्न  है  जो  मानस  के  सागर  में ज्वार बन   कर  उमड़ता  है ।  किसी  गरीब  क़ी  आह  निकलता  है  -कहाँ  है स्वराज्य ? भौतिकता की  नीली रोशनी  ने हमारे  चारो  तरफ एक ऐसी  रेखा खीच दी  है जिसे  पार करने में  हमे हीनता  का आभास होता है  ।  अपनी  भाषा  बोलने में   संकोच  और   हीनता   तो  फिर कैसा  स्वराज्य? 

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