एक प्रश्न >क्या हम स्वराज्य में रह रहें है ?
यह प्रश्न है जो मानस के सागर में ज्वार बन कर उमड़ता है । किसी गरीब क़ी आह निकलता है -कहाँ है स्वराज्य ? भौतिकता की नीली रोशनी ने हमारे चारो तरफ एक ऐसी रेखा खीच दी है जिसे पार करने में हमे हीनता का आभास होता है । अपनी भाषा बोलने में संकोच और हीनता तो फिर कैसा स्वराज्य?
यह प्रश्न है जो मानस के सागर में ज्वार बन कर उमड़ता है । किसी गरीब क़ी आह निकलता है -कहाँ है स्वराज्य ? भौतिकता की नीली रोशनी ने हमारे चारो तरफ एक ऐसी रेखा खीच दी है जिसे पार करने में हमे हीनता का आभास होता है । अपनी भाषा बोलने में संकोच और हीनता तो फिर कैसा स्वराज्य?
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