शुक्रवार, 14 मार्च 2014

उड़त गुलाल रंग भीने >... होली रंगों का त्योहार है | इन रंगों में लौकिक -अलौकिक दोनोँ रंग समाहित है| लौकिक रंग प्रेम की रस- रंग भरी फुहार छोड़ते है |दूसरी तरफ अलौकिक रंग में रंगी आत्मा प्रियतम से मिलने के लिये आकुल है | अपने हृदय रुपी आँगन में प्रेम के रंग की रंगोली सजाती है प्रेम का गुलाल लगाना चाहती है| ऐसा ही प्रेम कृष्ण ने बरसाने में बरसाया था | रंगों की फुहार से जीवन चेतना जगायी थी |आत्मा -परमात्मा का मिलन तो था ही | जीवन में आशा. उल्लास.उत्सव के महत्व का संदेश भी दिया|  
      बृज में होली रे रसिया की गूँज आज भी बृज में सुनायी देती है | खेलत कैसो गुमान सुनो वृषभानु किशोरी में सात्विक प्रेम की अभिव्यक्ति  है| कबीर की आत्मा भी परमात्मा से फाग खेलने को विकल है  ---कैसो होरी खेलूँ पिया संग दुविधा रार मचायी रे |मीरां को तो कृष्ण के  अभाव में होली खारी लगती है >किण संग खेलूँ होली ;पिया तज गये अकेली | होली आनन्द .उल्लास का पर्व है यह  संकेत परमात्मा ने दिया है|मीरां ऐसे ही आनन्द  में डूबी है|जहां बिना वाद्य के संगीत बिना स्वर के रागनिया  हो रहीं है| अनाहत की ध्वनि रोम रोम में समा रही है|इस होली के रंग में शील -संतोष का केसर है |प्रीति की पिचकारी है |यह पर्व मूल्यों की रक्षा का है|पर्व है  प्रेम के रंग में रंगने का है | स्नेह् का गुलाल लगाने का है | 

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