मंगलवार, 11 मार्च 2014

 प्रणय का रंग **************** फागुन मास एक ऐसा मास है जिसमे प्रकृति नववधू का वेश धारण  करके सबसे अधिक शोभा  प्राप्त  करती है |इस समय सारा द़ृश्य ऐसा होता है मानो प्रकृति नववधू का वेश धारण करके अपने प्रियतम ऋतुराज से मिलने जा रही हो |
        इस प्रणय रागिनी को  होली अपने रंग देती है | होली पर सृष्टि का अंगअंग प्रेम और अनुराग से भर जाता है | आत्मा-परमात्मा के मधुर मिलन का अलौकिक रूप दिखायी पड़ता है |                                                श्याम ने जो उड़ाया अबीर "औ" गुलाल
                                                             गाल पर राधिका के कहर ढा गया |                    साकेत में गुप्तजी ने लिखा है -    रागी फूलों ने पराग से भर ली अपनी झोली
                            और ओस ने केसर  उनके स्फुट सम्पुट में घोली |
                            होली     होली      होली || -------    फागुन मास के लगते ही फाग के रंग उड़ने लगते है|| होली बसन्त-उत्सव का ही एक अंग है| इसमे हम प्रकृति की रमणीयता को मानस में उतार कर उसके साथ एकाकार  होकर   उत्सव मनाते है |रंग के इस खेल में ईश्वरीय आनन्द की अनुभूति होती है | रागात्मक भावनाएँ होली के रंगों में खिल उठती है || मानवीय मूल्य साकार हो उठते है| होली के रंग जाति धर्म भाषा प्रदेश की सीमाओं को तोड़ कर मानवता के विशाल प्रांगण में रंगोली सजा देते है| इस तरह होली राष्ट्रीय .मानवीय चेतना से रंग देने वाला पर्व है  इसमे  प्रेम की मधुरता .राग का संगीत है|
          प्रणय का रंग  फागुन ने    उड़ाया
          मत्त केसर गन्ध कण कण में समाया
          नियम संयम तोड़ मुनि मन ध्वंसकरी
          शर कहां  से मदन मादन ने चलाया


             

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