बुधवार, 5 मार्च 2014

सांस्कृतिक प्रदूषण +++++++
              सम+कृति इन दो शब्दों के योग से संस्कृति शब्द बना है |सम=अच्छी तरह कृति ‌‌‌=किये गये| हृद्य को पवित्र करने                वाली  साधनाओ को संस्कृति कहते है | मानव -मानस- सागर में अनेक प्रकार की भावनाओं का उत्थान -पतन चलता है |भावनाएँ दो प्रकार की होती है- -रागमयी और द्वेषमयी | रागमयी भावनाएँ हृदय से हृदय को जोड़ती है |द्वेषमयी भावनाएँ परस्पर ईर्ष्या घृणा अलगाव पैदा करती है |रागमयी भावनाएँ ही संस्कृति को पुष्ट करती है |दर्शन.धर्म. साहित्य.कला.आचार-विचार >ये संस्कृति के अंग है 
      दर्शन जीवन को देखने की दृष्टि के साथ-साथ सृष्टि जीवन के मूल प्रश्नों पर विचार और समधान प्रस्तुत करता है |दर्शन ही बताता है कि एक ही ब्रह्म है जो सृष्टि के कण-कण में व्याप्त है| धर्म उन नियमों का समूह है जो व्यष्टि-समष्टि के कल्याण के लिए है | धर्म अंत :अनुशासन है | साहित्य और कला भावना और सौन्दर्य के माध्यम से मानवता का दीप जलाती है || हम सब मोती एक लड़ के है > कह कर विश्व बन्धुत्व की भावना की जोत  साहित्य  ने  जलायी है |
       आज ये सारी  भावनाएँ  समाप्त होती जा रही है| भौतिकता की ओर बढ़ते कदमो के कारण जीवन चेतना खत्म हो रही है |
मूल्यहीनता ; निर्वासन और आओ हम अतीत को भूले --यह ही सोच बनती जा रही है | व्यष्टि - हित प्रमुख है | आचार व्यवहार सब मात्र औपचारिकता है | धर्म दर्शन की मूल भावना भौतिकता में कहीं खो गयी है||यही सांस्कृतिक प्रदूषण है || 
     मत सीमित आकार करो रे 
      जीवन का  श्रृंगार करो  रे ||   इसी भावना से  प्रदूषण खत्म  हो सकता है    
              

   

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