रविवार, 4 मई 2014

prakrtik sampda

भारत देश है मेरा >भाग3-- धरती सबकी माँ  > ------>>भारत में अनन्त प्राकृतिक सम्पदा है उसका उचित दोहन अनिवार्य है   तभी सामाजिक न्याय स्थापित हो सकता है |  दोहन सही हो फिर वितरण सही हो |  मात्र शक्तिशाली हो कर स्वयं के लिए संग्रहण करना उचित नही है | इस प्रकार की नीति क्रांति लाती है | कवि दिनकर जी ने लिखा है> है सबको मृति का पोषक रस पीने का - जब तक समाज की अन्तिम सीढ़ी पर स्थित व्यक्ति को लाभांश  न पहुँचे तब तक विकास पूरा नही होता |भारत को स्वतन्त्र हुए 67 वर्ष हो गये है फिर भी आम आदमी पूछता है कि अटका कहां स्वराज्य? भारत में अभी भी कई गाँव ऐसे है जो विकास की प्रतीक्षा में है |   नगर तो महानगर बन गये है    लेकिन इन महानगरों में ऐसी झोपड़ी भी है जो चेतना के दीपक की प्रतीक्षा में है | शिक्षा का प्रकाश भी इनसे अभी भी रूठा हुआ है | ऐसे में ग्रामीण अंचल अज्ञान के अंधकार  में जी रहा है  वह अपने आस् पास के वातावरण  से अपरिचित ही है  उसमें सामाजिक चेतना का अभाव है | यह अभी भी अंधविश्वास  आड्म्बर  रूढिवादिता की दल-द्ल में फंसा है |दलित गलित मान्यताओं में उलझा हुआ कमजोर मानवीय संसाधन सिद्ध हो रहा है | कभी-कभी तो ऐसा लगता है  कि वह स्वयम्‌ अपने शोषण का दीप जला रहा है |जिनको वो भगवान मानता है वो ही उसकी इस हालत के लिए जिम्मेदार है वो ही उसको अनंत सम्पदा से दूर् रखता है  |धरती पुत्र अपनी माँ के अंचल दूर् है | उनके श्रम का शोषण हो रहा है ऐसा देख् कर तो धरा की नींव भी हिल जाती है| इस लेख्निनी की कामना है कि---विजय हो श्रम की श्रमिक की -गुनगुनाता 
                                           लो धरा के गीत सुनलो में सुनाता ||   

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