बुधवार, 10 सितंबर 2014

darpan

भाव दर्पण -भारत माता का मंच पर प्रवेश चारों तरफ देखकर कुछ परेशान होती है चारो तरफ पानी ही पानी बादलो की गर्जन सुन कर माँ परेशान होकर कहती है यह कैसा कोलाहल यह कैसी गरजन दामिनि क्रोधित हो कर क्यों दमक रही है दूर् कहीँ प्रकृति को देख् कर भारतमाँ वहाँ जाकर पूछती है प्रकृति तुम क्यों इतनी भीगी हुई हो | प्रकृति.>देखो माँ तुम्हारा स्वर्ग चंदा सा कश्मीर  कैसे पानीपानी हो रहा है |लगातार हो रही वारिश  से मेरा अंग अंग भीग र हा है मेरी तो छोडो जन सैलाब सैलाब में बह रहा है लाखो लोग बेघर हो गए है | भारत माँ>>यह तबाही में भी देख रही हूँ |पहले उत्तराखंड  मेरा मुकुट भीगा ना मालुम कितने लोगो ने जल समाधि लेली और अब मेरा स्वर्ग मेरा चंदा सा कश्मीर -प्रकृति एक बात बताओ कहीं यह सब तुम्हारी नाराजगी के कारण तो नही  |  ऐसा ही है प्रकृति ने उत्तर दिया | मनुष्य  बहुत स्वार्थी हो गया है दोहन की जगह  शोषण कर रहा है मेरे सीने पर कुल्हाड़ी मार मार कर घाव कर दिए है | मुझे अपने अमृत से सीचने वाली नदियों मे विष घोल रहा है |प्रकृति तुम ठीक कह रही हो मनुष्य ने अपना मनुष्यत्व खो दिया है भारत माता ने उत्तर दिया |भारत माता ने कहा ऐसे कठिन समय मेरे सैनिक पुत्रो जिस कर्मठता और साहस परिचय का  दिया  है  |उससे में खुश हूँ |उनको में नमन करती हूँ | प्रकृति तुम उदास मत हो मेरा वर्तमान सजग है |उसने तिरंगे को साक्षी  मानकर जो संकल्प  लिए है उससे मै आशन्वित हूँ | मेरा भारत सुंदर भी होगा स्वस्थ भी होगा | प्रकृति ने भारत माता से कहा >में आपसे बहुत खुश हूँ मेरा सुख दुःख आप का ही है मेरा सौंदर्य भी आपका है में आपको नमन करती हूँ | भारत माता ने कहा > तुम आश्वस्त रहो आने वाला कल तुम्हारी झोली में खुशियों के फूल डालेगा  |  अब में भी चलती हूँ | तुम्हारी सुंदर साँझ को नमन

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