शनिवार, 27 सितंबर 2014

shakti poojan

शक्ति पूजा - एक विश्लेषण  आज कल शक्ति पूजा के दिन है ये नौ दिन आश्विन मास के नवरात्रि {नव  शक्तियों से संयुक्त ] आश्विन  मास  नवरात्रि भगवती का शयन काल है राम  की  शक्ति साधना से यह शयन - नवरात्र पूर्ण चैतन्य हुआ | इस प्रसंग को महाप्राण  कवि निराला ने अपने शिखर काव्य राम की शक्ति पूजा में अधिक मुखरित  किया है | इस  कथा  का    उल्लेख   परम्परागत  राम काव्यो में नहीं है | इस कथा का मूल स्रोत  देवी भागवत शिवमहिम्न स्तोत्र तथा कृत्तिवास रामायण  में है | राम की शक्ति  पूजा में निराला जी  ने अपनी तूलिका से  इस कथा  को   नया रंग दिया है | राम रावण का युद्ध चरम पर है |मेघनाथ   आदि का वध  हो चुका है | उस दिन  के युद्ध में राम अमोघ बाण  लक्ष्य भ्रष्ट होते है अथवा रावण को गोद में लिए श्यामा देवी राम को क्रोध से देखती है |राम के बाण मार्ग मे ही भस्म हो जाते है | हनुमान जी को छोड़  कर अन्य सब  मूर्छित प्राय; हो जाते है उस दिन का युद्ध समाप्ति पर है राम सीता मुक्ति कैसे होगी यह सोचकर निराश है |अवसाद की मुद्रा में राम को देख कर विभीषण आदि राम को चैतन्य करने का प्रयास  करते है |राम कह उठते है-"अन्याय जिधर है उधर है शक्ति'' तब जामवंत उन्हें दुर्गा की उपासना करने को कहते है | राम  108 इंदीवर से माँ की पूजा का संकल्प ले कर पूजा में लीन हो जाते है उनकी चेतना; कुण्डलिनी शक्ति मूलाधार स्वाधिष्ठान मणिपूर;अनाहत ;दिव्य आज्ञा चक्रों  को पार करके सहस्रार चक्र  तक पहुँचती है साधना का चरम क्षण  है तभी रात्रि के दूसरे पहर में श्यामा देवी हँस कर अन्तिम फूल चुरा ले जाती है राम  अन्तिम पुरश्चरण  के लिए फूल खोजते है ना मिलने पर विकल हो जाते है तभी अंत;चेतना में प्रकाश होता है कि  माता मुझे राजीव नयन कहतीं थी  अभी दो नेत्र रुपी कमल शेष है  इस संकल्प के साथ अपना दक्षिण नयन रुपी कमल अर्पित करने के लिए उद्यत होते है तभी देवी प्रकट होकर  आशीर्वाद देती है -होगी जय होगी जय हे पुरुषोत्तम नवीन कह महाशक्ति राम के वदन  में हुई लीन- --  कहने का अभिप्राय यह है  क़ि  राम ने साधना से स्वयं के आत्म विश्वास  को चैतन्य किया |शक्ति पूजा से अभिप्राय यह ही है कि अपने भीतर  की शक्ति  को जाग्रत करें | देवी पूजन सात्विक शक्ति का आह्वान  है असत् पक्ष के विनाश के लिए सत् की स्थापना केलिये  सात्विक शक्ति को चैतन्य करना आवश्यक है और आत्म बल सुदृढ़ करना जरूरी है | निराला  के शब्दों  में -जन रंजन-चरण कमल धन्य सिंह गर्जित | 
                             यह मेरा प्रतीक मात ! समझा में इंगित |    
                             इसी  भाव  से करूँगा  अभिनन्दित                              

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