हिन्दी का राजभाषा के रुप में एक विश्लेषण - --- . आज हिन्दी दिवस है | राष्ट्र की अस्मिता को नमन | इस सन्दर्भ में अनेक विद्वानों के विचार जानने का अवसर मिला | इसी प्रसंग में उल्लेख है - विश्व में हिन्दी की स्थिति चौथे स्थान पर नही है अपितु दूसरे स्थान पर है जो उसका स्थान चौथे नम्बर बताते है वे हिन्दी की बोलियों मैथिली भोजपुरी राजस्थानी आदि को बोलने वालों की संख्या को अलग करके देखते है जबकि ये हिन्दी अभिन्न अंग है किसी भाषा के अंतर्गत उसका एक मानक रुप होता है |हिन्दी की 5 विभाषाऍ है और 18 बोलियां है | ये सब हिन्दी के परिवार में ही है | अॅग्रेजी के समर्थक हिन्दी के सामने अन्य भाषाओं को खड़ा कर देते है और राजनैतिक विवाद खड़ा हो जाता है | भारत की सभी भाषाऍ सम्माननीय ; समृद्ध और प्रिय है | वे हिन्दी की ही बहिनें है इन सबका विकास होना चाहिए लेकिन संविधान के अनुच्छेद 343 में राजभाषा और संपर्क भाषा के रुप में हिन्दी को स्वीकार किया है | राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी अन्य भाषाओं के शब्द रुपी मोती ग्रहण करे | यदि हिन्दी भाषी अन्य भाषाओं को पाठ्यक्रम में पढ़ें भी तो प्रति दिन के व्यवहार में ना आने के कारण भूल जायेंगे | हिन्दी राजभाषा है उसको वैसा ही आदर मिलना चाहिए | राष्ट्र भाषा भावनाओं से जुड़ी है इसका विकास और पल्लवन जनता और साहित्यकारों द्वारा होता है सबसे शुभ दिन वो होगा जब हिन्दी को राजभाषा और राष्ट्रभाषा का सम्मान मिलेगा | कलम उस दिन की प्रतीक्षा मे है
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