लो यह दिन भी बीता-------2 किरणों के पांखी ने सोनेके पंख धरे |
इंद्र्जाल फैला वह गया जाने किस मग रे |
रक्तिम -सी काई मे सूरज के पग फिसले--|
पश्चिम के सागर में डूब गया तल गहरे ||
किरणों के जाल हुए व्यर्थ खोज लाने में |
हर कोशिश दिन की नाकाम हो गयी ||
लो यह-----------------------------------------------
इंद्र्जाल फैला वह गया जाने किस मग रे |
रक्तिम -सी काई मे सूरज के पग फिसले--|
पश्चिम के सागर में डूब गया तल गहरे ||
किरणों के जाल हुए व्यर्थ खोज लाने में |
हर कोशिश दिन की नाकाम हो गयी ||
लो यह-----------------------------------------------
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