शनिवार, 2 अगस्त 2014

sham

लो यह दिन भी बीता  शाम हो गयी
सूरज का रथ आया थक संध्या  के द्वारे |
 उन्मद हो द्वारिक ने पाटल के दल वारे ||                    
आगम  से प्रियतम के मुग्धा सी सन्ध्या के --
 ठगे  ठगे नैन  जैसे  रह   गये  उघारे ||
 लज्जा की लाली-सी दौड़ गयी दूर् तलक ;
प्रीति खुली  मुग्धा   बदनाम हो   गयी |
लो यह दिन भी बीता शाम हो गयी ||
                             पूना की शाम कुछ ऐसी ही है

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें