लो यह दिन भी बीता शाम हो गयी
सूरज का रथ आया थक संध्या के द्वारे |
उन्मद हो द्वारिक ने पाटल के दल वारे ||
आगम से प्रियतम के मुग्धा सी सन्ध्या के --
ठगे ठगे नैन जैसे रह गये उघारे ||
लज्जा की लाली-सी दौड़ गयी दूर् तलक ;
प्रीति खुली मुग्धा बदनाम हो गयी |
लो यह दिन भी बीता शाम हो गयी ||
पूना की शाम कुछ ऐसी ही है
सूरज का रथ आया थक संध्या के द्वारे |
उन्मद हो द्वारिक ने पाटल के दल वारे ||
आगम से प्रियतम के मुग्धा सी सन्ध्या के --
ठगे ठगे नैन जैसे रह गये उघारे ||
लज्जा की लाली-सी दौड़ गयी दूर् तलक ;
प्रीति खुली मुग्धा बदनाम हो गयी |
लो यह दिन भी बीता शाम हो गयी ||
पूना की शाम कुछ ऐसी ही है
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