मंगलवार, 5 अगस्त 2014

लो यह  दिन भी बीता  शाम ----3 -ममता  की डोर - बंधे पक्षी घर आये |
                          दूर आरती-वंदन के  स्वर   लहाराये || 
                          हो गया अधीर कर्मसंकुल मन जग का 
                          बहुरंगी सपनों के   मदनजाल   छाये||
                          विकलप्राण विरही की पीड़ा के घाव खुले |
                          संध्या की  मदिर दृष्टि वाम  हो  गयी
                                  लो यह-------------------------वैख्ररी से संकलित

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