लो यह दिन भी बीता शाम ----3 -ममता की डोर - बंधे पक्षी घर आये | दूर आरती-वंदन के स्वर लहाराये || हो गया अधीर कर्मसंकुल मन जग का बहुरंगी सपनों के मदनजाल छाये|| विकलप्राण विरही की पीड़ा के घाव खुले | संध्या की मदिर दृष्टि वाम हो गयी लो यह-------------------------वैख्ररी से संकलित
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