मूल्य संचेतना के प्रतीक श्री कृष्ण- --कृष्ण पूर्ण मानवता की चरम कल्पना है | भारतीय परम्परा में कृष्ण 16 कलाओं के अवतार है सबके आकर्षण के केन्द्र कृष्ण समग्र चेतना संपन्न विराट् मानव है उनका व्यक्तित्व अनिर्वचनीय शब्दातीत और हर प्रकार की व्याख्या से परे है || इसका कारण है उनके व्यक्तित्व में निषेध तत्त्व नही है | उनके जीवन से जुड़ी सम्पूर्ण कथाएं मिथक हैं ;प्रतीक हैं | उन प्रतीको की सहज व्याख्या अनिवार्य हैं अन्यथा मिथ्या अभिप्राय लिए जाते हैं || कृष्ण ने सारी सड़ी गली परम्पराओ मर्यादाओं को तोड़ा और उनका पुनरुद्धार किया | इन्द्र के गर्व को खंडित करके वैज्ञानिक संचेतना के साथ गोवर्धन पर्वत उठाया था | इसका अभिप्राय यह है कि वर्षा पर ही निर्भर रहना उचित नही है और वर्षा के अतिरिक्त गो-वर्धन [गायों के सम्वर्धन } पर बल दिया | जिससे अर्थ व्यवस्था में सुधार हो | माखन लीला ; मटकी फोड्ना यह सब सामाजिक क्रांति के प्रतीक है जो श्रम करता है उसका फल उसे ही मिलना चाहिए | खेल-खेल में क्रांति का उद्घोष करना कृष्ण का नया क्रांति पथ था |आत्मा परमात्मा के बीच कोई भेद नही है इस तथ्य को समझाने के लिए चीर हरण लीला का प्रतीक प्रस्तुत किया || गोपियाँ प्राय: शुद्ध जीवात्माएँ है | उनके ऊपर का अन्तिम वासना रूपी वस्त्र को हटाना ही चीर हरण था | शांति के सारे उपाय करने के बाद राजतंत्र का गर्व को खण्डित करने के लिए कंस का वध किया और जरासंध का वध कराया |पूरा महाभारत का युद्ध मूल्य प्रतिषठापना के लिए ही हुआ था जिसके महानायक और सारथी कृष्ण ही थे शांति के सारे उपाय करने के बाद जब दुर्योधन ने "सूच्यग्रम् नैव दास्यामि विना युद्धेनकेशव " कहा तब कृष्ण ने महायुद्ध का शंखनाद किया और अर्जुन से कहा युद्धस्व विगतज्वर:-- अब बिना अन्तर्द्वन्द के युद्ध करना है कृष्ण धर्म के सारथी बने | कृष्ण स्वस्थ राजनीतिज्ञ स्वस्थ कूटनीतिज्ञ बनकर मूल्य संचेतना के प्रतीक बने | सामाजिक मूल्यों की रक्षा के लिए अंधविश्वास रूढियों का खंडन किया पर्यावरण शुद्धि के लिए कालिये नाग रुपी प्रदूषण को खत्म किया उनकी सारी रासलीला कुछ प्रतीकों के साथ सांस्कृतिक चेतना की प्रतीक थी |
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