अनुच्छेद 1 -- हिन्द युवा धनो | अनुच्छेद-2 -तुम पियो गरल वही अमृत बने विकास का |
ज्योति पुत्र साधकों ! तुम हँसो रुदन बने - प्रफुल्ल गीत हास का ||
चेतना नयी भरो
- भारती वसुन्धरा को उज्ज्वल विहान दो तामसी निशा हरो |
तुम चलो ललाट पर दहकता ज्वाल खण्ड हो जन-जन सह भाग ऐक्य के वितान तानदो
श्वास की झकोर क्षिप्र वेग मे प्रचण्ड हो |
तुम जगो धरा जगे | अनुच्छेद -3-तुम बढ़ो तो सिर झुका पहाड़ राह् छोड़ दें |
तुम चढो गगन कॅपे भीत हो समुद्र की हिलोल शोर छोड़ दें ||
दीप्ति के विराट शिखर को नवल उठान दो वक्ष वज्र सा करो
लौह शिरा में भरो |
शांति के कपोत नभ भरें अभय महान् दो |
भारती वसुन्धरा को उज्ज्वल विहान दो
ज्योति पुत्र साधकों ! तुम हँसो रुदन बने - प्रफुल्ल गीत हास का ||
चेतना नयी भरो
- भारती वसुन्धरा को उज्ज्वल विहान दो तामसी निशा हरो |
तुम चलो ललाट पर दहकता ज्वाल खण्ड हो जन-जन सह भाग ऐक्य के वितान तानदो
श्वास की झकोर क्षिप्र वेग मे प्रचण्ड हो |
तुम जगो धरा जगे | अनुच्छेद -3-तुम बढ़ो तो सिर झुका पहाड़ राह् छोड़ दें |
तुम चढो गगन कॅपे भीत हो समुद्र की हिलोल शोर छोड़ दें ||
दीप्ति के विराट शिखर को नवल उठान दो वक्ष वज्र सा करो
लौह शिरा में भरो |
शांति के कपोत नभ भरें अभय महान् दो |
भारती वसुन्धरा को उज्ज्वल विहान दो
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