हे मात्तु श्री |तुझको प्रणाम>> हे वन्दनीय :अभिनंद्नीय
हे मातुश्री ! तुझको प्रणाम ||
तू धरती माँ ! तू वसुधा है |
तेरा अॅचल है हरा भरा |
दोहन की कला सीखनी है--
जिससे अमृत नित रहे झरा |
तेरे पय से पोषित होकर
कर सकें जगत् में धन्य नाम |
हम करते है संकल्प मात
एकता बनेगी लौह शक्ति |
शत-शत करोड़ कंठो के स्वर
बन एक करेंगे मुखर भक्ति ||
सन्नद्ध रहेंगे हम तत्पर
तेरी रक्षा को अष्टयाम ||
हे मातुश्री ! तुझको प्रणाम ||
तू धरती माँ ! तू वसुधा है |
तेरा अॅचल है हरा भरा |
दोहन की कला सीखनी है--
जिससे अमृत नित रहे झरा |
तेरे पय से पोषित होकर
कर सकें जगत् में धन्य नाम |
हम करते है संकल्प मात
एकता बनेगी लौह शक्ति |
शत-शत करोड़ कंठो के स्वर
बन एक करेंगे मुखर भक्ति ||
सन्नद्ध रहेंगे हम तत्पर
तेरी रक्षा को अष्टयाम ||
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